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कृषि कानून वापसी पर शरद पवार बोले- चुनाव में विरोध के डर से लिया फैसला

मुंबई: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के मुखिया व पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने शुक्रवार को कहा कि भाजपा नीत केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश और पंजाब में आगामी चुनावों में विरोध के डर से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। वरिष्ठ नेता पवार के मुताबिक, किसानों के संघर्ष को भुलाया नहीं जा सकता है। पवार ने कहा, जैसे-जैसे यूपी और पंजाब के चुनाव करीब आए और खासकर जब भाजपा के लोगों ने हरियाणा और पंजाब और कुछ अन्य राज्यों के गांवों में किसानों की प्रतिक्रिया देखी। वे इस पहलू को नजरअंदाज नहीं कर सके और आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया। पवार ने कहा कि जो हुआ वह अच्छा है, लेकिन हम यह नहीं भूल सकते कि इस सरकार ने एक ऐसा परिदृश्य बनाया, जिसमें किसानों को एक साल तक संघर्ष करना पड़ा। पवार ने तीन कृषि विधेयकों को पेश करने और उन्हें बिना किसी चर्चा के और राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना जल्दबाजी में पारित करने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की।
महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में पत्रकारों से बात करते हुए पवार ने कहा कि जब मैं 10 साल तक कृषि मंत्री था, तब भाजपा ने संसद में कृषि कानूनों का मुद्दा उठाया था, जो उस समय विपक्ष में थी। मैंने एक वादा किया था कि खेती एक राज्य का विषय है और इसलिए हम राज्यों को विश्वास में लिए बिना या चर्चा के बिना कोई निर्णय नहीं लेना चाहेंगे। मैंने व्यक्तिगत रूप से सभी राज्यों के कृषि मंत्रियों के साथ-साथ मुख्यमंत्रियों के साथ दो दिवसीय बैठक की, उनके साथ विस्तृत चर्चा की और उनके द्वारा दिए गए सुझावों को नोट किया। इसी तरह देश में कृषि विश्वविद्यालयों के साथ-साथ कृषि विश्वविद्यालयों से भी राय मांगी गई थी। हम कृषि कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू करने वाले थे, लेकिन हमारी सरकार का कार्यकाल समाप्त हो गया और नई सरकार सत्ता में आई। पवार ने आगे कहा कि 2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने बिना चर्चा और राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना तीन कृषि विधेयक पेश किए। उन्होंने कहा कि इन विधेयकों का संसद में सभी विपक्षी दलों ने विरोध किया और इसकी कार्यवाही रोक दी गई और वाकआउट किया गया। हालांकि, सत्ता में बैठे लोगों ने जोर देकर कहा कि वे विधेयकों को जारी रखेंगे और उन्हें जल्दबाजी में पारित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि इसकी प्रतिक्रिया के रूप में देश में विभिन्न स्थानों पर विशेष रूप से दिल्ली की सीमाओं पर, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और पश्चिमी यूपी में विरोध प्रदर्शन किए गए। एनसीपी नेता ने कहा कि किसानों ने संघर्ष शुरू किया और मौसम की परवाह किए बिना दिल्ली की ओर जाने वाली सड़कों पर बैठ गए, यह आसान नहीं था, लेकिन किसानों ने अपनी समस्याओं से समझौता किए बिना एक साथ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। हम भी संपर्क में थे। हम उनके संघर्ष को सलाम करते हैं…! यह अच्छा है कि विवादित तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया गया है, लेकिन किसानों को जिस संघर्ष से गुजरना पड़ा, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

बता दें कि शुक्रवार को पीएम मोदी ने तीन कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान कर दिया था। इसके बाद अब सूत्रों से खबर मिली है कि इस बुधवार होने वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में ही कृषि कानून को वापस लेने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दे दी जाएगी।
कानून वापसी का ऐलान करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि हम किसानों को समझा नहीं सके इसलिए इन कानूनों को वापस ले रहे हैं! पीएम ने कहा कि कानून वापस ले रहे हैं लेकिन हम अपने प्रयासों के बावजूद किसानों के हित की बात कुछ किसानों को समझा नहीं पाए। इसको समझाने का भरपूर प्रयास किया गया लेकिन हम असफल रहे।
गौरतलब है कि केंद्र द्वारा लाए गए कृषि कानूनों को लेकर लंबे समय ले किसान सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं। ऐसे में सरकार के इस फैसले से उन्हें आखिरकार राहत मिली है।
हालांकि, किसान नेताओं का कहना है कि सरकार के साथ अभी भी कई मुद्दों पर बातचीत करना बाकी है।

प्रधानमंत्री को इतना भी मीठा नहीं होना चाहिए: टिकैत
कानून वापसी के ऐलान के बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने तंज कसते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री को इतना मीठा भी नहीं होना चाहिए। 750 किसान शहीद हुए, 10 हजार मुकदमे हैं। हम बगैर बातचीत के हम कैसे चले जाएं। प्रधानमंत्री ने इतनी मीठी भाषा का उपयोग किया कि शहद को भी फेल कर दिया। टिकैत ने कहा, हलवाई को तो ततैया भी नहीं काटता। वह ऐसे ही मक्खियों को उड़ाता रहता है।