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काशी में गंगा घाट यूनेस्को की संभावित विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल, यूपी टूरिज्म ने जारी किया पोस्टर

वाराणसी: पवित्र नदी गंगा के किनारे बसा ‘काशी’ भारत का प्राचीनतम शहर है। उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे ‘बनारस’ और ‘काशी’ भी कहते हैं। हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है। धार्मिक नगरी वाराणसी काशी विश्‍वनाथ मंदिर का घर है जो भगवान शिव को समर्पित है। इसमें बारह ज्‍योतिर्लिंगों में से एक स्‍थापित हैं।
काशी के गले में चंद्रहार की तरह लिपटे गंगा के घाटों को विश्व धरोहर स्थलों की संभावित सूची में शामिल किए जाने पर यूपी टूरिज्म ने पोस्टर जारी किया है। इसमें गंगा घाट की दिव्य छटा को प्रदर्शित करते हुए इस उपलब्धि को मील का पत्थर बताया है।
दरअसल, काशी में बाबा विश्वनाथ का दरबार और गंगा की धार देश-दुनिया के आकर्षण का केंद्र है। इसकी एक झलक पाने के लिए दूर देश से सैलानी खींचे चले आते हैं।
यहां एक ओर गंगधार पर उतरती सूर्य की किरणें और दूसरी ओर घाटों की छटा यानी सुबह-ए-बनारस की झांकी देख भाव विभोर हो जाते रहे हैं। संध्याकाल दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती में भी हाजिरी लगाते रहे हैं।
कोरोना काल में बंदिशों के कारण भले ही पर्यटकों का आना-जाना कम हुआ हो लेकिन इसे देखने-समझने और महसूस करने के लिए हर साल 60 से 65 लाख तक पर्यटक व तीर्थयात्री यहां आते रहे हैं। स्नान, ध्यान के साथ ही ज्ञान गंगाा में गोते लगाते रहे हैं। इस सूची में पहले स्‍थान पर वाराणसी का गंगा घाट, दूसरे स्‍थान पर कांचीपुरम के मंदिर, तीसरे स्‍थान पर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व, चौथे स्‍थान पर हीरे बेंकर महापाषाण स्‍थल, पांचवें स्‍थान पर मराठा सैन्‍य वास्‍तुकला और छठवें स्‍थान पर जबलपुर का भेड़ाघाट, लमेटाघाट को शामिल किया गया है।

दरअसल, काशी में गंगा का विशेष महत्व है। यहां जीवन से मरण तक के अनुष्ठान-विधान गंगा से जुड़े हैं। जाह्नवी से यह काशी का अनूठा नाता ही है जो तीज-त्योहार से लेकर अनूठे जल उत्सवों तक जाता है। इसमें सबसे विख्यात है देव दीपावली, जिसमें मानो आसमान से उतर कर झिलमिल करती दीपमालिकाओं के रूप में सितारों का एक नया जहां ही गंगधार पर उतर आता है। इसे देखने के लिए पूरा बनारस घाटों की ओर तो देशी विदेशी-सैलानी भी उमड़ते रहे हैं। लगभग ढाई दशक में कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल मनाया जाने वाला यह देवों की दीपावली का त्योहार शहर बनारस के लक्खा मेलों में सर्वोच्च स्थान बना चुका है। अभी पिछले साल इसकी आभा निरखने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बनारस चले आए थे।

सारनाथ को दो दशक से इस सूची में स्थान
सारनाथ स्थित पुरातात्विक खंडहर और अन्य संबंधित पुरावशेष दो दशक से यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की संभावित सूची में शामिल है। पर्यटन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, बनारस आने वाले सैलानियों में लगभग 25 फीसद इस स्पाट को देखने आते हैं। अभी पिछले साल ही यूनेस्को के विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिए भारतीय सर्वेक्षण विभाग की ओर से एक बार फिर यूनेस्को को पुरातात्विक खंडहर परिसर में मिले पुरावशेषों का डोजियर बनाकर दिल्ली स्थित पुरातत्व विभाग मुख्यालय को भेजा जा चुका है।
वास्तव में महात्मा गौतम बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ के पुरातात्विक खंडहर में उत्खनन के दौरान करीब ढाई हजार वर्ष से भी अधिक पुराने पुरावशेष मिल चुके हैं। पुरा विशेषज्ञों का मानना है कि इस परिसर में धर्मराजिका व धमेख स्तूप, प्राचीन मुलगंध कुटी बौद्ध विहार अवशेष, सात महाविहार व 300 मनौती स्तूपों का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था। यहां मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त, परवर्ती गुप्त काल व गहड़वाल काल तक निर्माण कार्य होते रहे।

यूनेस्को ने सिटी आफ म्यूजिक का दिया मान
बनारस की रगों में संगीत घुला हुआ है। मान्यता है कि भगवान शिव के डमरू से संगीत का उद्भव हुआ। वही देवाधिदेव महादेव काशी पुर के अधिपति हैं। उन्हें काशीपुराधिपति कहा जाता है और उनका नगर संगीत के लिए देश – दुनिया में जाना जाता है। यहां का बनारस घराना विश्व विख्यात है। इसने संगीत जगत को एक से एक नगीने दिए जिन्होंने इस विधा को विश्व में प्रचारित-प्रसारित किया। यहां हर तीज-त्योहार, पर्व उत्सव से संगीत जुड़ा है। इसे देखते हुए यूनेस्को ने क्रिएटिव सिटी के तहत 11 दिसंबर 2015 को वाराणसी को ‘सिटी ऑफ म्यूजिक’ के रूप में मान दिया। यूनेस्को की वेबसाइट पर क्रिएटिव सिटी के तौर पर इस शहर की उपलब्धियों को सहेजते हुए विशेष पेज भी तैयार किया गया है। इसमें शहर बनारस की सांगीतिक समृद्ध गुरु-शिष्य परंपरा को स्थान दिया गया है।