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महाराष्ट्र: सत्ता के लिए घमासान जारी, राजनैतिक भूचाल की आशंका…

मुंबई, (सुरेंद्र मिश्र): महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की सत्ता के लिये घमासान जारी है। मुख्यमंत्री पद और अहम विभागों के लिए भाजपा-शिवसेना के बीच छिड़ी जंग ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही है। राज्य के प्रमुख दलों की गतिविधियों को देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि राज्य की राजनीति में एक नया भूचाल आना निश्चित है!
बता दें कि शिवसेना भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी है। लगभग तीन दशक से दोनों पार्टियाँ साथ-साथ चुनाव लडती रही हैं। दोनों दलों ने १९९५ में एक साथ चुनाव भी लड़ा था लेकिन हाल के वर्षों में दोनों पार्टियों के बीच खटास बढ़ती गई।
राष्ट्रीय राजनीति में मोदी के उदय के बाद भाजपा की ताकत में अचम्भा इजाफा हुआ और वह सत्ता में ज्यादा हिस्सा मांगने लगी। महाराष्ट्र में लम्बे समय से बड़े भाई की भूमिका निभा चुकी शिवसेना छोटा भाई बनने के लिए तैयार नहीं थी। इसी कारण २०१४ के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। और भाजपा बड़े दल के रूप उभरी। इसके बाद शिवसेना को मजबूरन छोटे भाई की भूमिका स्वीकार करनी पड़ी। तभी से शिवेसेना की स्थिति घायल शेर जैसी हो गयी है, जो हमेशा भाजपा को नीचा दिखाने का अवसर ढूंढती रहती है। केंद्र और राज्य सरकार में साथ-साथ रहने के बावजूद शिवसेना भाजपा को घेरने का कोई मौका नहीं छोडती है।
हालिया लोकसभा चुनाव में मजबूरियों के चलते दोनों दल एक बार फिर साथ आये लेकिन तभी से शिवसेना लगातार बड़े भाई का रुतबा हासिल करने के लिए हाथ-पांव मार रही थी। विधानसभा चुनाव आते-आते धारा ३७० को लेकर देशभर में जो माहौल बना उससे सहमी शिवसेना फिर भाजपा की ही शर्तों पर विधानसभा चुनाव लड़ने को तैयार हो गयी। चुनाव परिणाम आने पर जब शिवसेना को लगा कि भाजपा उसकी मदद के बिना सरकार नहीं बना सकती तो वह आक्रामक हो गयी और सत्ता में बराबरी का हिस्सा मांगने लगी। अब उसकी इच्छा है कि मुख्यमंत्री का पद ढाई-ढाई साल के लिए बांटा जाये और गृह, वित्त, नगरविकास और राजस्व जैसे मलाईदार विभागों में से कुछ विभाग उसे दिए जाएं। मगर भाजपा ना तो मुख्यमंत्री का पद ही शिवसेना को देना चाहती है और ना ही अहम मंत्रालयों से ही दावा छोड़ने के लिए तैयार है। हाँ शिवसेना को इस बार दो तीन मंत्री पद ज्यादा देने की तैयारी भाजपा की तरफ से जरुर दर्शाई गयी है।
इन्हीं अंतरविरोधों के चलते अभी तक राज्य में सरकार का गठन नहीं हो पाया है। चर्चा है कि शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी की मदद से राज्य में सरकार बनाने की कोशिश कर रही है। विधानसभा चुनाव में मैन आफ दि मैच बनकर उभरे महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य शरद पवार से मिलने वालों का ताँता लगा हुआ है। लेकिन शरद पवार ने अभी तक अपना पत्ता नहीं खोला है इसलिए रहस्य से पर्दा नहीं उठ पा रहा है। इस मसले पर शरद पवार क्या भूमिका अपनायेंगे, इसका कोई आकलन नहीं लग पा रहा है।
उधर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को कन्विंस करने के लिए राज्य के प्रमुख कांग्रेसी नेता दिल्ली में डेरा डाले हुये हैं लेकिन कांग्रेस ने भी अभी तक कोई स्पष्ट भूमिका नहीं ली है। इस बीच पता चला है कि भाजपा ५ नवंबर को अकेले ही सरकार बनाने जा रही है। देवेन्द्र फडणवीस की ताजपोशी के लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।
जानकार लोगों का कहना है कि इस मसले पर महाराष्ट्र इस बार कई अप्रत्याशित घटनाओं का साक्षी बन सकता है। फिलहाल इस प्रकरण अंत कुछ भी हो लेकिन यह बात सच है कि सरकार के गठन का इंतजार कर रही राज्य की जनता को नेताओं का यह नाटक बिल्कुल रास नहीं आ रहा है।