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IPL नीलामी 2020: पानी पूरी बेचा, टेंट में सोया, आज IPL ने बनाया करोड़पति!

उत्तर प्रदेश/मुंबई (राजेश जायसवाल): शस्वी जायसवाल…ये उस क्रिकेटर का नाम है जो अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इस युवा खिलाड़ी के बारे में जब महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को पता चला तो वो भी उस उभरते क्रिकेटर से मिलने के लिए खुद को नही रोक पाए!
अपने जीवन मे तमाम संघर्षों का सामना करते हुए १७ वर्षीय यशस्वी जायसवाल, मुंबई के मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के गार्ड के साथ तीन साल तक टेंट में रहकर सिर्फ एक सपने के सहारे मुश्किल वक्त काट दिया। तब यह खिलाडी ११ साल का था। वो सपना था एक दिन भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेलना।
करीब छह साल बाद अब यशस्वी १७ साल के हो चुके हैं, ये कमाल का मिडल ऑर्डर बल्लेबाज़ अब श्रीलंका दौरे के लिए भारत की अंडर-१९ के लिए खेलने के लिए तैयार है। मुंबई के अंडर-१९ कोच सतीश समंत ने यशस्वी के बारे में बताते हुए कहा, उसका फोकस और खेल की समझ कमाल की है।

यशस्वी के पिता भूपेंद्र जायसवाल

जो लोग मुझे पागल कहते थे वो आज साथ में फोटो खिंचवाते हैं
उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के सुरियावां बाजार में रहने वाले यशस्वी के पिता भूपेंद्र आज भी भदोही में पेंट की एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। भूपेंद्र कहते हैं कि बेटे ने मेरा सपना पूरा कर दिया। जो लोग मुझे पागल कहते थे वो आज साथ में फोटो खिंचवाते हैं। जो कहते थे कि बेटे के पीछे बर्बाद हो जाओगे, आज वही लोग पेपर हाथों में लेकर आते हैं। फक्र से कहते हैं, मोंटी (यशस्वी का घर का नाम) हमारा बच्चा है।

युवा क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल

यूं मुंबई पहुंचा यशस्वी
बचपन से ही यशस्वी को क्रिकेटर स्टार बनने का जुनून था। दो भाइयों में छोटा यशस्वी दस साल की ही उम्र में पिता से मुंबई जाने की जिद की। पिता भी बेटे की प्रतिभा को भांप रहे थे। इसलिए, उन्होंने उसे नहीं रोका। मुंबई के वर्ली इलाके में रहने वाले एक रिश्तेदार संतोष के यहां यशस्वी को भेज दिया। यशस्वी ५-६ महीना वहीं रहे। वह यहां से आजाद मैदान में प्रैक्टिस करने जाते थे। लेकिन, रिश्तेदार का घर छोटा था। इतनी जगह नहीं थी वहां लंबे समय तक रह पाते।
पिता बताते हैं, आजाद मैदान में कई महीने उसे ग्राउंड के बाहर ही दूसरे बच्चों के साथ खेलना पड़ा। नेट तक नहीं पहुंच पाया। इसके बाद रिश्तेदार संतोष यशस्वी को आजाद ग्राउंड ले गए। वहां पर उनका एक परिचित ग्राउंडमैन सुलेमान था। उनसे बात करके यशस्वी को वहीं पर रहने की व्यवस्था करवाई। यहां करीब तीन साल तक यशस्वी टेंट में रहा और क्रिकेट की सभी बारीकियां सीखीं।

मैंने बुलाया, लेकिन बोला-पापा नहीं आऊंगा
पिता कहते हैं कि उन तीन सालों में उसने बहुत संघर्ष किया। जमीन पर सोता था कीड़े और चींटी काटते थे। फोन करके कहता था-पापा बहुत चींटी काटती है। मैंने कहा- बेटा तकलीफ बहुत है तो वापस क्यों नहीं आ जाते। लेकिन, उसने कहा- पापा बूट पालिश कर लूंगा। लेकिन, मैं बिना कुछ बने वापस नहीं आऊंगा। ये तकलीफें पापा मुझे एक दिन आगे बढ़ाएंगी। आप परिवार का ख्याल रखिएगा।

मुंबई में गोलगप्पे बेचे, दूध की दुकान पर सफाई की
पिता भूपेंद्र बताते हैं कि मुंबई में यशस्वी ने आजाद मैदान के बाहर गोलगप्पे की दुकान पर काम किया। कालबादेवी में एक दूध डेयरी पर भी काम किया। वहां सफाई करने के एवज में उसे रोजाना २० रुपए मिलते थे। वहां ५ महीने काम किया। उस दूधवाले ने काम से यह कहकर यशस्वी को निकाल दिया कि सिर्फ खेलता और सोता है। मैं यहां से २००० रुपए भेजता हूं। लेकिन अब वक्त काफी कुछ बदल गया। अब यशस्वी का कंपनियों से एक करोड़ रुपए का कांट्रैक्ट हो चुका है। गुरुवार को आईपीएल नीलामी में जब २० लाख रुपये बेस प्राइज वाले इस खिलाड़ी को राजस्थान रॉयल्स ने जब २.४ करोड़ रुपये की बोली लगाकर अपने खेमे में किया तो एक बार फिर उनके संघर्षों की याद ताजा हो गई।

मां बोलीं-कभी उसके लिए एक खिलौना नहीं खरीदा
बेटे की उपलब्धि से खुश मां कंचन कहती हैं, कभी उसके लिए (यशस्वी) एक खिलौना नहीं खरीदा। एक साल कि उम्र थी तब पापा के साथ रुम में बैट-बॉल खेला करता था। उसकी जिद्द से हारकर मुंबई भेजा। वह बहुत सी तकलीफों को बताता भी नहीं था। चीटियां काटकर आंख और चेहरा फुला देती थीं। जिसने उसे ताना दिया उसका मुंह बेटे ने बंद कर दिया।

एक मुलाकात और बदली तकदीर
पिता के मुताबिक, यशस्वी १३ साल की उम्र में अंजुमन ए इस्लामिया की टीम से आजाद ग्राउंड पर लीग खेल रहा था। इस दौरान ज्वाला सर आए, उनकी सांताक्रूज में एक एकेडमी है। वह यशस्वी के खेल से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उससे पूछा-कोच कौन है तुम्हारा? उसने जवाब दिया कोई नहीं। यशस्वी ने कहा कि मैं बड़ों को देखकर सीखता हूं। उन्होंने बताया कि इसके बाद ज्वाला सर ने मुझसे बात की। दो दिन बाद वह यशस्वी को अपनी एकेडमी ले गए। यह उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट था।

यशस्वी का चुनौती भरा सफर
बहुत कम ही लोग जानते हैं कि अपने मुश्किल समय में यशस्वी अपना खर्च चलाने के लिए मुंबई के आजाद मैदान पर पानी-पूरी बेचते थे। यशस्वी का यह चुनौती भरा सफर आसान नहीं था। इस बारे में उन्होंने एक बार कहा था, मुझे यह अच्छा नहीं लगता था क्योंकि जिन लड़कों के साथ मैं क्रिकेट खेलता था, जो सुबह मेरी तारीफ करते थे, वही शाम को मेरे पास पानी-पूरी खाने आते थे। यशस्वी ने कहा कि उन्हें ऐसा करने पर बहुत बुरा लगता था लेकिन उन्हें यह करना पड़ा क्योंकि उन्हें जरूरत थी। लेकिन इसके बावजूद कई रातों को उन्हें भूखा सोना पड़ता था।

यशस्वी ने संघर्ष के दिन याद करते हुए कहा, रामलीला के समय मेरी अच्छी कमाई हो जाती थी। मैं यही दुआ करता था कि मेरी टीम के खिलाड़ी वहां न आएं। लेकिन कई खिलाड़ी वहां आ जाते थे। मुझे बहुत शर्म आती थी। मैं हमेशा अपनी उम्र के लड़कों को देखता था। वो घर से खाना लाते थे। मुझे तो ख़ुद बनाना था और ख़ुद ही खाना था। दोपहर और रात का खाना टेंट में मिलता था इसके अलावा नाश्ता दूसरों के भरोसे होता था। टेंट में मैं रोटियां बनाता था। वहां बिजली नहीं थी इसलिए हर रात केंडल लाइट डिनर होता था।
मैं दिन में इतना व्यस्त रहता था कि कब शाम हो जाती थी पता ही नहीं चलता था। लेकिन रात काटनी उतनी ही मुश्किल थी। मुझे रात में अपने परिवार की बहुत याद आती थी। कई बार मैं सारी रात रोता था। मुंबई अंडर-१९ टीम में सिलेक्शन से पहले आज़ाद मैदान में सब जानते थे कि एक युवा होनहार बल्लेबाज़ को मदद की ज़रूरत है। जल्द ही एक लोकल कोच ज्वाला सिंह यशस्वी से मिले और उन्हें कोचिंग देनी शुरू कर दी।
ज्वाला ख़ुद कम उम्र में उत्तर प्रदेश से बाहर निकले थे। ज्वाला ने कहा, यशस्वी में मुझे अपना बचपन दिखता है। वो १२ साल का रहा होगा और उसे ‘ए’ लेवल के गेंदबाज़ का सामना करने में कोई परेशानी नहीं आई। जब मैं यूपी से मुंबई आया था तो मेरे पास भी रहने के लिए घर नहीं था। कोई गॉडफादर या बताने वाला नहीं था। यशस्वी प्रतिभावान है। पिछले ५ साल में उसने ४९ शतक लगाए हैं।
ज्वाला ने कहा, मैं मुंबई के सिलेक्टर्स का धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने यशस्वी के हुनर को पहचाना। मुझे उम्मीद है कि वो कड़ी महनत करेगा और इस मौके का पूरा फायदा उठाएगा।

संघर्ष से सफलता का नाम हैं, यशस्वी जायसवाल
‘यशस्वी’ कड़ी मेहनत व संघर्ष से विजेता बनने वालों में वह नाम हैं, जो अपनी लगन और जूनून से तमाम परेशानियों को घुटने टेकने पर विवश कर दिया। आज यशस्वी कई कड़े संघर्षों के बाद क्रिकेट के मैदान पर अपनी सफलता की कहानी लिख रहे हैं। यशस्वी इन दिनों भारतीय अंडर-१९ टीम में बतौर ओपनर क्रिकेट खेलते हैं और वह अंडर-१९ वर्ल्ड कप मिशन में जाने वाली टीम इंडिया में अहम खिलाड़ी भी हैं।

देश के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने घर बुलाकार गिफ्ट किया बैट
पिता कहते हैं, अप्रैल २०१९ में बेटी की शादी हुई थी, तब यशस्वी ने काफी मदद की। ज्वैलरी का खर्च उठाया। मेरे लिए जींस, कोट और मां के लिए साड़ी और भाई के लिए कपड़े लाया था। वह बताते हैं कि कुछ दिन पहले महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने मुंबई में यशस्वी को अपने घर बुलाकर ४० मिनट तक मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने यशस्वी को बैट गिफ्ट किया और टिप्स भी दी।