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राफेल डील पर मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी राहत

नई दिल्ली , सुप्रीम कोर्ट ने फ्रांस के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के सौदे में कथित अनियमितता और भ्रष्टाचार की कोर्ट की निगरानी मे जांच की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि डील में किसी भी तरह की अनियमितता नहीं हुई है, लिहाजा जांच की कोई जरूरत नहीं है। मोदी सरकार के लिए कोर्ट का यह फैसला बड़ी राहत है, खासकर तब जब करीब 6 महीने बाद ही लोकसभा चुनाव होने हैं। हालांकि, इस फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हो सकती है जिसका संकेत याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण दे चुके हैं। आइए, राफेल विवाद पर सिलसिलेवार ढंग से नजर डालते हैं और गंभीर सवालों के घेरे में आने से लेकर सुप्रीम कोर्ट से बेदाग ठहराए जाने तक के इसके सफर को देखते हैं। सबसे पहले तो यह जानना जरूरी है कि पिछले करीब 2-3 सालों से विवादों के केंद्र में रही राफेल डील आखिर है क्या। दरअसल, भारत और फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 23 सितंबर, 2016 को 7.87 अरब यूरो (लगभग 59,000 करोड़ रुपये) के सौदे पर हस्ताक्षर किए। सौदा दोनों देशों की सरकारों के बीच हुआ है। भारतीय एयर फोर्स के अपग्रेडेशन के प्लान के तहत यह डील हुई है। इन जेट्स को फ्रांस की दसॉ कंपनी ने तैयार किया है। विमान की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होगी।

फेल सौदे पर औपचारिक तौर पर दस्तखत से पहले ही इस पर विवाद की शुरुआत हो गई थी। भारत और फ्रांस की सरकार के बीच हुए इस करार पर 23 सितंबर 2016 को दस्तखत हुए थे, लेकिन विवाद उससे डेढ़ साल पहले ही शुरू हो गए। दरअसल, अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस के दौरे पर पहुंचे। उस दौरान दोनों देशों में 36 राफेल जेट की खरीद पर सहमति बनी। इसका ऐलान 10 अप्रैल 2015 को पीएम मोदी और तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद के संयुक्त बयान में किया गया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तभी इस पर यह कहकर सवाल उठाया कि 126 विमानों के बजाय सिर्फ 36 विमानों की खरीद क्यों हो रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सुरक्षा मामलों पर संसदीय समिति की मंजूरी के बिना ही प्रधानमंत्री मोदी ने सौदे का ऐलान किया, जो गलत है।

सितंबर 2016 में सौदे पर दोनों देशों के बीच दस्तखत हुए और इसी के साथ विवादों का पिटारा खुल गया। विपक्ष और खासकर कांग्रेस एक के बाद एक आरोप लगाती रही। विमान की कथित तौर पर बहुत ऊंची कीमत पर सवाल उठे। कांग्रेस का आरोप था कि पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 126 विमानों को जिस कीमत पर खरीदने की बात हो रही थी, मोदी सरकार उससे बहुत ज्यादा कीमत पर विमान खरीद रही है। अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस भी दसॉ की ऑफसेट पार्टनर में से एक थी। इस पर सवाल उठे। राहुल गांधी ने सीधे-सीधे पीएम मोदी पर आरोप लगाया कि वह अनिल अंबानी को फायदा पहुंचा रहे हैं। आरोप लगा कि सरकारी कंपनी हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की कीमत पर अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाया गया। मोदी सरकार इन आरोपों को लगातार खारिज करती रही। इस बीच, फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने यह कहकर विवाद को और हवा दे दी कि दसॉ को ऑफसेट पार्टनर के तौर पर रिलायंस डिफेंस का ही नाम दिया गया था, लिहाजा उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। ओलांद के इस दावे को दसॉ और भारत सरकार ने सिरे से खारिज किया।

हालिया विधानसभा चुनावों में राफेल डील का मुद्दा जोर-शोर से उठा। अगले 6 महीने में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। कांग्रेस इस मुद्दे को लगातार धार दे रही थी ताकि 2019 के चुनाव में मोदी सरकार के उस दावे की हवा निकाल सके कि हमारे कार्यकाल में भ्रष्टाचार का एक भी मामला सामने नहीं आया। हालांकि, अब मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राहत की सांस ले सकती है। अब कांग्रेस जेपीसी जांच की मांग कर रही है, लिहाजा विवाद थमता तो नजर नहीं आ रहा लेकिन सुप्रीम कोर्ट के क्लीन चिट से अब तक बैकफुट पर दिख रही मोदी सरकार और बीजेपी को नई ऊर्जा जरूर मिल गई है।