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मुंबई: मटका किंग रतन खत्री का लंबी बीमारी के बाद निधन

मुंबई: भारत में सट्टेबाजी के दिग्गज माने जाने वाले ‘मटका किंग’ के नाम से मशहूर रतन खत्री का मुंबई में निधन हो गया। वह 88 साल के थे। परिवार के सूत्रों ने जानकारी दी कि वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और उन्होंने मुंबई सेंट्रल स्थित नवजीवन सोसाइटी में अपने घर में अंतिम सांस ली। सिंधी परिवार से आने वाले खत्री बंटवारे के समय अपनी युवावस्था में पाकिस्तान के कराची से मुंबई आए थे।
मटका किंग के नाम से मशहूर खत्री को मटका (1962 में मुंबई में शुरू हुए जुआ के एक प्रकार मटका) को बदलने का श्रेय जाता है। इसके बाद मटका देश में भर में सट्टेबाजी का एक बड़ा रैकेट बन गया और कई दशकों तक उस पर मटका किंग कहे जाने वाले रतन खत्री का राज रहा। हालांकि भारत में किसी भी तरह का जुआ गैरकानूनी है लेकिन इसके बावजूद मुंबई में बड़े पैमाने पर मटका का कारोबार चलता रहा।
बता दें कि मटका में न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज (New York Cotton Exchange) में सूत के खुलने और बंद होने के दामों पर सट्टेबाजी की जाती थी। 1960 के दशक में ये मुंबई के समाज के हर वर्ग के बीच लोकप्रिय था।
खत्री ने शुरुआत में कल्याणजी भगत के साथ मिलकर काम किया था। खत्री ने भगत के साथ वर्ली मटका के मैनेजर के तौर पर काम किया। बाद में इन दोनों के रास्ते अलग हो गए। तब रतन खत्री ने ‘रतन मटका’ की शुरुआत की।

एक करोड़ तक पहुंचता था कारोबार
मटका जिसमें कि काफी सारी पर्चियां पड़ी होती थीं, उसी से ये सट्टेबाजी होती थी। इसका हर दिन का कारोबार एक करोड़ तक पहुंचता था।
सट्टेबाजी, मटका या लॉटरी नंबर गेम के तौर पर काफी प्रचलित हैं। ये सभी खेल मुंबई में अंग्रेजों के जमाने से खेले जा रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि मटका की लोकप्रियता के चलते उस समय न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज मार्केट खोलने और बंद करने के पैसे लिया करता था। 1960 के दशक में मटका ने मुंबई के युवाओं का ध्यान अपनी ओर खूब खींचा और ये उनके बीच काफी लोकप्रिय भी रहा। पिछले कई दशकों में कई लोगों को मटका की लत लग गई थी। खत्री के जाने के मटका और सट्टा बाजार में हलचल मच गई।