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वरिष्ठ परिचालन अधिकारी नरपत सिंह का महानतम त्याग! ऐसा त्याग हम भी करना चाहते हैं…

छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (फाइल फोटो)

मुंबई: कुछ त्याग इतना आकर्षित करते हैं या यूं कहें कि इतना प्रोत्साहित करते हैं कि हर व्यक्ति उसे करना चाहेगा। यहां बात हो रही है मध्य रेल मुंबई मंडल के वरिष्ठ परिचालन अधिकारी नरपत सिंह की, जो लॉकडाउन का पूरा फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। नरपत सिंह कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित अपने घर न जाकर सीएसएमटी में स्थित सरकारी रेस्ट हाउस का पूरा-पूरा आनंद फ्री में लेकर त्यागमूर्ति बन चुके हैं। दो माह से इसीलिए घर ना जाना कि घर पर वृद्ध माताजी व दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनको किसी तरह का कोई संक्रमण न हो जाए। अपने परिवार को सुरक्षित रखने की सोच ने उन्हें सरकारी रेस्ट हाउस का फोकट का मेहमान बना दिया। वही व्यक्ति जो अपने परिवार को सुरक्षित करने के कारण रेलवे का (सरकारी ) दामाद बना बैठा है और अपने को त्यागमूर्ति बता रहा है, वहीं दूसरी ओर मुंबई मंडल के रेलवे कर्मचारी जिनकी बिल्डिंग कोरोना के प्रकोप के चलते सील कर दी गई है उन कर्मियों को जबरदस्ती घर से बाहर निकाल कर ड्यूटी करवाने को आमादा है और इस कार्य में लगे ये महाशय पुलिस की भी मदद मांगने में तनिक भी शर्मिंदगी महसूस नहीं कर रहे हैं। यानी आम रेलकर्मी से 200 गुना सुरक्षित रहने के बावजूद ये अधिकारी महाशय घर नहीं जाना चाहते, पर एक आम रेलकर्मी जिसके घर में माता-पिता एवं छोटे-छोटे बच्चे हो सकते हैं को संक्रमित बिल्डिंग से बाहर बुलाकर ड्यूटी करवाने व अन्य स्टाफ में संक्रमण फैलाने के लिए आमादा हैं। क्या मजदूर या उसके परिवार के जीवन का कोई अर्थ नहीं? सीनियर डी ओ एम नरपत सिंह महाशय ध्यान दें, यह त्याग नहीं भीरूपन है। सरकारी सुविधाओं का दुरुपयोग है। जब रेलकर्मियों ने अपने कार्यस्थल में बोला कि हम अपने बच्चों की सुरक्षा के चलते घर नहीं जाना चाहते हम रेलवे को कार्य करके देते रहेंगे, पर हमारा निवेदन है कि हमारे रहने का इंतजाम रेलवे करे, तो अधिकारियों ने एक सिरे से कर्मचारियों की मांग को खारिज कर दिया।
आज रेल संचालन से जुड़ा स्टाफ अपनी जान पर खेलकर और अपने बीवी बच्चों की तथा परिवारिक सदस्यों की चिंता किए बिना, रेलवे को दिन-रात अपनी सेवाएं देकर गाड़ियां चला रहा है और सीनियर डी ओ एम महाशय रेस्ट हाउस में बैठकर 4500 गाड़ियां चलाने की बात कहकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। हो सकता है कि मूढ़ रेलवे बोर्ड भी इस बात को सही मान ले और सीनियर डीओएम महोदय की पीठ भी थपथपा दे। प्राइवेटाइजेशन होने का एक यह भी बहुत बड़ा कारण है। यदि फिगर निकालेंगे तो आम दिनों में जितनी मालगाड़ियां चलती है लॉकडाउन पीरियड में एसेंशियली सर्विस के नाम पर उससे कहीं अधिक माल गाड़ियां चलाई गई। उद्योगपतियों के व्यक्तिगत स्वार्थ को साधने के लिए चाटुकार अधिकारियों ने रेलवे को धोकर पी डाला, और पूंजीपतियों की स्वार्थ सिद्धि में खुलकर सहयोग दिया। रेलवे स्टाफ ने जान पर खेलकर गाड़ियां चलाई और स्वयं श्रेय लेने में जरा सा भी नहीं हिचक रहे हैं।
या तो सीनियर डीओएम् मुंबई, मंडल और मुख्यालय के सैकड़ों अधिकारियों के बीच एकमात्र देशभक्त अधिकारी हैं, या फिर लगता है इनको अपनी सोच का इलाज कराना होगा। क्योंकि महत्वपूर्ण पद पर आसीन सरकारी अधिकारी की सोच सही होना ही राष्ट्रहित में है, अन्यथा बंटाधार होने में देर नहीं लगेगी। संकलन रिपोर्ट- राजकुमार द्विवेदी