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जानें- आखिर क्यों करें दुनिया के सबसे खूबसूरत लोकतंत्र के लिए मतदान…

हमारे देश (भारत) का लोकतंत्र यहां के मतदाताओं के निर्णय पर टिका है। लोकतंत्र के निर्माण का कारीगर मतदाता है। मतदाता प्रत्यक्ष मतदान करे या अप्रत्यक्ष हीरो मतदाता को ही माना जाता है। पर दुर्भाग्य है कि मतदाता सिर्फ चुनाव तक हीरो है। चुनाव के बाद चुना हुआ प्रतिनिधि उसका मालिक बन जाता है जबकि चुनाव के बाद चुने हुए प्रतिनिधि को ‘जन-सेवक’ की भूमिका निभानी चाहिए। लोकतंत्र की नींव, मतदाता और चुने हुए प्रतिनिधि के विश्वास पर टिका है। विधायक या सांसद जनता के सेवक और संविधान के संरक्षक हैं। वे लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी हैं।
चुनाव सरकार को संवैधानिक मान्यता प्रदान करते हैं, चुनाव चुनी हुई सरकार की कार्यप्रणाली पर अपनी मोहर लगाते हैं। चुनाव सरकार और शासन को वैधता प्रदान करते हैं। अत: स्वयं सिद्ध बात हुई कि लोकतंत्र की नींव मतदाता है। लोकसभा, राज्य की विधानसभाओं, महानगरपालिकाओं या पंचायतों के चुनाव भारत का मतदाता प्रत्यक्ष और राज्यसभा, राज्यविधान परिषदों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव मतदाता अप्रत्यक्ष रूप से करता है।
भारत के लोकतंत्र का ‘नायक’ मतदाता है। मैं गर्व से कह सकता हूं, इक्का-दुक्का उदाहरण छोड़ दें तो भारत के लोकतंत्र का वास्ताविक हीरो मतदाता है, वोटर है। यहां का मतदाता चुपचाप पोलिंग बूथ पर जाएगा, वोट गिराएगा और घर आ जाएगा। आप लाख पूछो नहीं बताएगा, वोट किस को डाला है। मतदाता की यही विशेषता लोकतंत्र की मूल भावना है। भारत का मतदाता 16 बार लोकसभा के चुनावों में अपने मतदान का सफल प्रयोग करके आ गया है। भारत का सौभाग्य कहेंगे कि मतदाता ने चुपचाप अपने वोट से सत्ता परिवर्तन कर दिया।
पड़ोसी देशों में सत्ता परिवर्तन खून-खराबे, रक्तपात से होता है वहीँ हमारे यहां मतदान से…! पाकिस्तान, बंगलादेश, म्यांमार, श्रीलंका, अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों का हाल दुनिया जानती है। फिर क्यों न हम भारत के मतदाता का अभिनंदन करें, स्वागत करें। अंत: मुझे मतदाताओं से निवेदन करना है कि इस बार भी सत्रहवीं लोकसभा के लिए निर्भय होकर मत-दान करें।
भय, पक्षपात, स्वार्थ, लालच या दबाव में मतदान न करें। मतदाता को लोकतंत्र की रक्षा, क्षेत्र के विकास और संविधान-प्रदत्त अधिकारों के लिए मतदान करना है। इसमें दबाव कैसा? भय कैसा? लालच क्यों? लोकतंत्र स्वतंत्र भाव से चलता है। फिर दान तो लोक कल्याण के लिए किया जाता है या निजी जिंदगी में मोक्ष प्राप्ति के लिए? आप तो अपना मत,- दान करने जा रहे हैं तो फिर किसी से क्या डरना?
लोकतंत्र में भी मतदान देश और संविधान की रक्षा के लिए किया जाता है। वोट बेखौफ होकर डालिए। दान स्वार्थ भावना से ऊपर उठकर कीजिए। धर्म, जाति, पार्टी, लोभ, लालच मतदान में नहीं आना चाहिए। मतदान स्वतंत्र, वोट मतदाता का निजी अधिकार है। इसमें किसी का भी हस्तक्षेप लोकतंत्र की जड़ों को खोखला कर देगा। भारतवर्ष का लोकतंत्र दुनिया का विशालतम और सफलतम लोकतंत्र है जिसमें मतदाता सदैव केन्द्र बिंदु में रहेगा।
राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे मतदाता को भ्रष्ट न करें। उसे अपने निजी अधिकार का स्वतंत्र प्रयोग करने दें। प्रतिनिधि जिसने मतदान लिया है, मतदाता से बड़ा नहीं हो सकता। दान लेने वाला सदैव, सिर झुका कर दान प्राप्त करे। मतदाता पात्र व्यक्ति को ही अपना मतदान करे। दान के महत्व को देने-लेने वाले दोनों समझें। प्रजातंत्र में शासन जनता द्वारा चलाया जाता है। जनता को एक बार मूर्ख बनाया जा सकता है, हर बार नहीं। मतदाता एक हीरो की भूमिका पहले ही निभाता आया है और निभाता रहेगा। मतदाता लोकतंत्र के उगते सूर्य को देखे। आने वाली पीढिय़ों के भविष्य को देखे।
मतदाता वोट के महत्व को जाने। एक-एक वोट का महत्व क्या है। स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की निर्वाचित सरकार मात्र एक वोट से गिर गई थी…! कुछ मतदाता सोचते हैं, मेरे एक वोट न डालने से क्या होगा? मैं वोट नहीं डालूंगा तो आसमान तो नहीं गिर पड़ेगा। मैं जोर देकर कहूंगा-अवश्य गिर पड़ेगा। मतदाता के एक वोट पर लोकतंत्र का महल खड़ा है। हमें वोट डालने का यह अधिकार अनेक कुर्बानियों से मिला है। इसलिए वोट अवश्य डालो और सभी से डलवाओं भी। सारे कामकाज छोड़ दो , सबसे पहले वोट दो।
मैं चुनाव आयोग को साधुवाद देता हूं उसने बहुत बहुमूल्य सुधार चुनाव प्रणाली में किए हैं। चुनावों में सुधारों का यह क्रम रुकना नहीं चाहिए।
भारत की प्रभुसत्ता, गणतंत्रतात्मक प्रणाली और लोकतंत्र की नींव को मजबूत बनाना चुनाव आयोग का उत्तरदायित्व है। चुनाव आयोग प्रजातंत्र की सफलता के लिए कुशल एवं निष्पक्ष चुनाव व्यवस्था को अनिवार्य बनाए। याद रखें अगर चुनाव तंत्र दोषपूर्ण है या कुशल नहीं है या गैर ईमानदार लोगों द्वारा संचालित होता है तो प्रजातंत्र का अर्थ ही बेकार हो जाएगा। न्यायपूर्ण मतदान चुनाव का एकमात्र उद्देश्य हो। मतदाता का महत्व चुनाव आयोग पहचाने। षड्यंत्रों से चुनाव दूर रहे। भ्रष्ट-साधनों के मोह में मतदाता न फंसे। चुनाव आयोग अपने आप में प्रभु बने। लोकतंत्र के मूल भाव में पहुंचे।
जानें सोलहवीं लोक सभा के बारे में :-
सोलहवीं लोक सभा के सदस्य 2014 के आम चुनाव के बाद चुने गए, जो कि 7 अप्रैल 2014 से 12 मई 2014 के मध्य 9 चरणों में संपन्न हुए थे। परिणाम 16 मई 2014 को आये थे। भारतीय जनता पार्टी (जो कि राजग का हिस्सा है) ने 543 में 282 सीटें प्राप्त कर पूर्ण बहुमत हासिल की। भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीद्वार नरेन्द्र मोदी ने 26 मई 2014 को भारत के पन्द्रहवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को महज 44 सीटें ही मिल पायीं। इस लोक सभा का पहला सत्र 4 जून से 11 जुलाई 2014 के मध्य शुरू हुआ पर दुर्भाग्य से सोलहवीं लोक सभा को विपक्ष का कोई नेता नहीं मिला। क्योंकि भारतीय संसद के नियमानुसार, इस पद को पाने के लिए किसी दल के पास कम से कम लोक सभा के कुल सदस्यों का 10% सदस्य होना आवश्यक होता है। इसलिए मैं आपसे बार-बार यहीं कहूंगा कि वोट देने जरूर जाएं। * संकलन – राजेश जायसवाल (जय भारत)