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बनारस की शान में चार चाँद लगा रहा है ‘लाल खां का मकबरा’

लाल खां का रौजा

वाराणसी, अपनी ऐतिहासिकता और पौराणिकता के लिए विश्व भर में मशहूर बनारस, यहाँ के घाटों और मंदिरों के लिए तो जाना ही जाता है साथ ही यहाँ के कुछ एक मकबरे भी इसे अपने में ख़ास बनाते हैं, ऐसे ही मकबरों में बनारस के एक छोर पर गंगा घाट किनारे स्थित, लाल खां का रौजा भी है, जिसकी शान देखते ही बनती है।
लाल खां के इस शानदार रौजे यानी मकबरे की नक्काशी इतनी खूबसूरत है कि इसे देखने के लिए लोग काफ़ी दूरी तय कर बनारस आते हैं, हालांकि लोगों को इसके इतिहास के बारे में काफी कम जानकारी है।
लाल खाँ का मकबरा काशी में मुग़ल काल के दौरान बनाये गए मकबरों में से एक है। कैंट रेलवे स्टेशन से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मकबरा राजघाट पुल यल मालवीय ब्रिज के किनारे पड़ता है। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (IGNCA) के अनुसार ‘लाल खाँ’ मुगलकाल में फर्रूखसियर के शासन काल में काशी के स्थानीय शासक थे जिनका महल राजघाट के पास ही था, जो अब लाल घाट के नाम से जाना जाता है।
हालांकि कुछ लोगों का ये भी मानना है कि लाल खाँ, काशी नरेश बलंवत सिंह के सिपहसालार थे और उन्होंने काशी नरेश के सामने यह इच्छा जताई की थी कि मरने के बाद भी वो काशी में ही पनाह चाहते हैं ताकि रामनगर किले का दीदार कर सकें। इसलिए राजा बलवंत सिंह ने उन्हें यह जगह दे दी थी। सन् 1770 में बलवंत सिंह का निधन हो गया। जिसके बाद तत्कालीन काशी नरेश ने 1773 में पूर्वजों के सम्मान में इस मकबरे का निर्माण कराया, जिसे लाल खां का नाम दिया गया।
तो आइये आज आपको इस ऐतिहासिक और खूबसूरत इमारत से रूबरू कराते हैं, जो काशी की अनमोल धरोहरों में शामिल है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं वाराणसी के राजघाट क्षेत्र में गंगा के तट पर मौजूद लाल खां का रौजा (मकबरा) खुद में बनारस का इतिहास समेटे हुआ है। इसका निर्माण सन 1773 में हुआ था। विशालकाय कैम्पस में खूबसूरत मकबरे में वीर योद्धा लाल खां का मजार है। इसी मकबरे के भीतर ही उनके परिवार के दो सदस्यों की मजार भी मौजूद हैं। लाल खां तत्कालीन काशी नरेश के सेनापति थे। उन्होंने अपनी वीरता से काशी के विस्तार और विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया था। जीवन के अंतिम दिनों में काशी नरेश ने उनसे कुछ मांगने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि कुछ ऐसा इंतजाम करें कि मृत्यु के बाद भी वो महल की चौखट के दीदार कर सकें। काशी नरेश ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए लाल खां की मृत्यु के बाद राजघाट में उन्‍हें दफन कराया। यहां उनका भव्य मकबरा बनवाया।
मुगलकालीन स्थापत्य और वास्तुकला का सुंदर शिल्पकारी इस मकबरे पर साफ़ नज़र आता है। एक आयताकार भू-भाग पर स्थित इस नीले गुम्बदाकार रौजे (मकबरा) के चारों ओर समान दूरी पर चार बुर्ज बने हुए हैं, जिसमें से एक बुर्ज शेरशाह सूरी राजमार्ग के बनने के बाद सड़क के दूसरी ओर चला गया।

खुदाई के दौरान मिले थे प्राचीन अवशेष
फ़िलहाल ये मकबरा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है, और कुछ समय पूर्व, खुदाई के दौरान यहां काशी से जुड़े प्राचीन समय के कुछ अवशेष भी मिले थे। इस रौजे के प्रवेश द्वार पर उर्दू में इसके इतिहास के बारे भी पढ़ा जा सकता है। लाल खां का ये ऐतिहासिक रौजा भारत के प्राचीन सभ्यताओं के अवशेषों में से एक है। अगर आपको कला और स्थापत्य में रूचि है तो आप एक बार इस आलीशान इमारत को ज़रूर देखें। रविवार को छोड़कर ये मकबरा सूर्योदय से सूर्यास्त तक आम लोगों के लिए खुला रहता है। और इसे देखने के लिए आपको २५ रूपये शुल्क देना पड़ेगा।

खुदाई के दौरान यहां काशी से जुड़े प्राचीन समय के कुछ अवशेष भी मिले

इनके नाम पर है काशी का मोहल्‍ला ‘चौहट्टा लाल खां’
लाल खां और इनके मकबरे की शोहरत के चलते बनारस के इस पुराने मोहल्‍ले को नाम मिला है ‘चौहट्टा लाल खां’। करीब पांच किलोमीटर इलाके में बसा ये मोहल्‍ला लाल खां के अलावा आजकल के एक मशहूर सेलेब्रिटी के कारण भी चर्चा में रहा है। इसी मोहल्ले में फिल्म अभिनेता आमिर खान का ननिहाल है। यहीं उनकी मां ने अपना बचपन बिताया था। आमिर खान ने अपने 51वे जन्मदिन पर एक इंटरव्‍यू के दौरान बताया कि वो अपनी नानी का पुराना घर और उसकी जमीन खरीदकर अपनी मां को गिफ्ट करना चाहते हैं। हालाँकि अब यहाँ के ज़मीन मालिक बद्री नारायण का कहना है कि वे इसे बेचना नहीं चाहते हैं।

वाराणसी से राजेश जायसवाल की रिपोर्ट