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काशी में एकादश ज्योतिर्लिंग प्रतिनिधियों की अगुवाई में किया गया बाबा का जलाभिषेक

वाराणसी, ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी यानी निर्जला एकादशी पर गुरुवार को काशीवासियों ने बाबा श्री काशी विश्वनाथ का 1008 कलश जल से अभिषेक किया। एकादश ज्योतिर्लिंग प्रतिनिधियों की अगुवाई में शंख ध्वनि, डमरुओं की थाप व वाद्ययंत्रों की झंकार के बीच डा. राजेंद्र प्रसाद घाट से कलश यात्रा निकाली। हर हर महादेव के उद्घोष व भजन-कीर्तन से पूरा क्षेत्र गुंजा दिया।

सुप्रभातम् की ओर से संयोजित 20वीं वार्षिक श्रीकाशी विश्वनाथ अनूठी यात्रा का डा. आरपी घाट पर गौरी-गणेश व गंगा पूजन से शुभारंभ किया गया। केदारघाट से 108 कलश लिए भक्तों का जत्था पहुंचा और इसे शामिल करते हुए 1008 गंगाजल पूरित कलशों का पूजन किया गया। इसके साथ ही पूरा इलाका हर हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा। सिर पर कलश उठाए श्रद्धालुओं का जत्था आगे बढ़ा और पताका लहराई। शंखों में 21 युवाओं ने ध्वनि फूंकी और 40 सदस्यीय डमरु दल ने गड़गड़ाहट बिखेरते हुए वातावरण को शिवमय किया। बैंड पर हर-हर महादेव शम्भो की धुन पर मगन मन श्वेत वस्त्रधारी नंगे पांव चल रहे महिला-पुरुष भक्त झूमे। हिम शिवलिंग, कांचीकामकोटि मठ्म परमाचार्य और अनूठी कलश यात्रा के परिकल्पनाकार स्व. राजकिशोर गुप्ता की छवि सहेजे रथ समेत आकर्षक झांकियों ने लोगों में ऊर्जा का संचार किया। दशाश्वमेध, गौदौलिया, बांसफाटक, ज्ञानवापी होते हुए यात्रा श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर पहुंची और सर्वमंगल की कामना से देवाधिदेव महादेव को गंगा-गोमती और प्रयाग संगम का जल व दूध समर्पित किया।वहीं सुबह से गंगा के घाटों पर लोगों स्‍नानदान कर पूजा-अर्चन किया। जगदंबा तुलस्यान, केशव जालान, निधिदेव अग्रवाल, सुब्रह्मण्यम मणि आदि ने संयोजन किया।

निराजल व्रत रख गंगा में लगाई दीर्घायुष्य कामना की डुबकी : ज्येष्ठ मास की एकादशी यानी निर्जला एकादशी पर गुरुवार को सनातन धर्मियों ने निराजल व्रत रख गंगा स्नान किया। श्रीहरि का पूजन-अनुष्ठान व दान कर दीर्घायुष्य व आरोग्य के साथ ही जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति और चारो पुरुषार्थो की प्राप्ति का जतन किया। इस निमित्त आराध्य देवों का सविधि से ध्यान व पूजन अनुष्ठान किया तो ऋतु अनुसार शीत प्रदायक वस्तुओं का दान भी किया। इसके लिए बुधवार रात से ही गंगा घाटों पर पूर्वांचल समेत कई जिलों से श्रद्धालुओं की जुटान हुई और पूरी रात में घाट की सीढियां श्रीहरि मय रही। यहां पथरीले प्लेटफार्मों पर लोगों ने सोए-बैठे प्रभु का ध्यान किया। हरिकीर्तन, लोक से जुड़े देवी आराधना के गीतों व भजनों से दशाश्वमेध घाट, शीतलाघाट, पंचगंगा, केदारघाट समेत गंगा का किनारा गुंजाते रहे। भोर से ही स्नान दान का क्रम शुरू हुआ। तमाम श्रद्धालुओं ने घाट पर ही बाटी- चोखा समेत विभिन्न पकवान बनाए। पुरोहितों को भोजन करा कर उन्हें साम‌र्थ्य अनुसार वस्त्र, छाता, स्वर्ण, जलपूरित कलश, चीनी आदि दान किया। शास्त्रों के अनुसार केवल निर्जल एकादशी का व्रत-स्नान करने से ही एक वर्ष की 26 एकादशी का फल प्राप्त हो जाता है। मान्यता है कि तिथि विशेष पर बगैर जल ग्रहण किए स्नान-दान-ध्यान से पूरे वर्ष परिवार पर किसी तरह का संकट नहीं आता है।