Uncategorised

मुहर्रम: शहादत का संदेश, मोहर्रम की अहमियत…

विश्व ने अगणित दु:खदायी, वीभत्स, दिल को छलनी कर देने और आत्मा को झकझोरने वाली घटनाएं और मातम करने वालों के आंसुओं के दरिया बहते देखे होंगे। मगर इतिहास के किसी भी दौर में मनुष्य ने इतने अधिक आंसु न बहाए होंगे और मातम न किया होगा जितना कि दिल को काट देने वाली करबला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन की शहादत पर! मोहर्रम की अहमियत इस कारण भी है कि यह इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है। हजरत इमाम हुसैन का जन्म इस्लामी कैलेंडर के अनुसार तीन शाबान चार हिजरी (8 जनवरी, 626) सोमवार को हुआ था।
हदीसों से ज्ञात होता कि रसूलल्लाह हजरत मुहम्मद को अपने नवासे इमाम हुसैन से बड़ा स्नेह था। हजरत इमाम हुसैन अपने नाना और साहाबा-ए-कराम के संरक्षण में पले-बढ़े। इसीलिए हजरत इमाम हुसैन के अंदर वही विशेषताएं आ गई जो उनके नाना में थीं। सच बोलना, निडर रहना, इंसाफ-पसंदी, मनुष्यता, धैर्य, सत्यता, सहन शक्ति आदि विशेषताएं हजरत इमाम हुसैन में थीं, जिनके कारण उन्होंने यजीद और उसके साथियों का अंतिम सांस तक मुकाबला किया। हिजरी साल 61 में विश्व का दुर्भाग्य था कि अत्याचार के घटाटोप बादलों में वह जगह घिर गई थी, जिसने अच्छाई का पाठ सबको पढ़ाया था। दरअसल, हुआ यह था कि हुजूर के निजाम-ए-आशूरी की बजाय इस जगह पर डिक्टेटरशिप का राज हो गया था। लोकतंत्र के स्थान पर तानाशाह यजीद ने गद्दी पर अधिकार जमा लिया था। वह स्थान जहां पर हजरत अबुबकर सिद्दीक, हजरत उमर फारूक, हजरत उस्मान गनी और हजरत अली जैसे दिग्गज संत रहते थे, वहां पर जालिम और जाबिर बादशाह का राज हो गया था, इस व्यक्ति ने एक धनी परिवार में आंख खोली थी, बड़े नखरों से इसका पालन-पोषण किया गया था। वह भोगी-विलासी था, कुत्तों को लड़वाना, कबूतरबाजी, नाच गाने की महफिल सजाना, अय्याशी करना-सब उसकी रुचियां थीं। इसके पिता हजरत मुआविया ने इसे सीधे रास्ते पर लाने का कड़ा यत्न किया परंतु कोई लाभ न हुआ। उस समय इस्लामी राज को चलाने के लिए एक मुजलिस-ए-शूरा कमेटी हुआ करती थी, जिसमें देश के अच्छे लोगों का चुनाव किया जाता था। यजीद और उसके आदमियों ने सब नेक आदमियों को मरवा डाला। बेईमान व क्रूर लोगों के सहयोग से नई सरकार का गठन किया। जगह-जगह न्याय का गला घोंटा जाने लगा। यही हालात थे जिनको देख हजरत इमाम बेचैन हो गए और निर्णय लिया कि कंसरूपी यजीद से निबटा जाए। यजीद के साथियों ने यत्न किया कि किसी प्रकार हजरत इमाम हुसैन व उनके साथियों को खरीद लिया जाए। मगर हुसैन व उनके साथी टस से मस न हुए। बस फिर क्या था, यजीद ने अपनी घिनौनी प्रवृत्ति के अनुसार कड़े से कड़ा अत्याचार करने का निर्णय ले लिया। यजीदी फौज ने छोटे-छोटे दूध पीते बच्चों को प्यासा तड़पाया। महिलाओं के तंबुओं में आग लगाई। इमाम हुसैन के बड़े लड़के अली अकबर की लाश को तलवारों से भेद कर तड़पाया। छोटे बेटे अली असगर ने बाप की गोद में प्यास व जख्मों की ताब न लाकर दम तोड़ दिया। अपने बीमार बेटे जैनुल आबिदीन और लाडली बेटी सकीना को लाचार तड़पते देखा और यजीद, शिमर व अन्य साथी यह देख-देख ठिठोलियां करते रहे। हुसैन चाहते तो यजीद की जी-हजूरी स्वीकार कर सारे दु:खों से छुटकारा प्राप्त कर लेते परंतु आप हक के मार्ग से न हटे। तभी फैज अहमद ने कहा है: सब्र-ओ-रजा, इताअत-ओ-जुर्रत का पेशवा/सच पूछिए तो हासिल-ए-कुरान हुसैन है।
मैदान-ए-जंग में जब इमाम हुसैन अकेले रह गए तो यजीदी सेना ने चारों ओर से तीरों की बौछार कर दी। दूसरी ओर से शिमर ने नेजों (भालों) के प्रहार आरंभ कर दिए। प्यास से आधी जान पहले ही निकल चुकी थी। प्यास बुझाने फरात नहर की ओर बढ़े और चुल्लू से पानी पीना ही चाहा कि हसीन बिन नमीर ने तीर मारा। चेहरा खून-खून हो गया। आप प्यासे ही लौट आए। कमजोरी के कारण खड़े होने की भी ताकत न रही। तभी शिमर ने प्रोत्साहन दिया। जरआ-बिन-शरीक तमीमों ने तलवार चलाई। फिर सनन बिन नखई ने हुसैन के सर को धड़ से पृथक कर दिया। तड़पते हुए बिन सर के शरीर को जहां-जहां से भी गोदा जा सकता था, उसने उसे गोद दिया जब तक कि वह ठंडा नहीं पड़ गया। आने वाली नस्लों के लिए हुसैन और उनके परिवार का बलिदान परम बलिदान बन गया। पं. नेहरू के शब्द थे, ‘इमाम हुसैन की जिंदगी ने हमें यह सबक सिखाया है कि किस तरह हक-ओ-सदाकत (सच्चाई और अधिकार) के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी दी जा सकती है।

मोहर्रम में ताजिया का महत्व: इस्लाम धर्म का प्रमुख त्यौहार माना जाता है मोहर्रम। इन दिनों ताजिए का निर्माण किया जाता है। ताजिया बांस की कमाचियों पर रंग-बिरंगे कागज, पन्नी आदि चिपका कर बनाया हुआ मकबरे के आकार का वह मंडप जो मुहर्रम के दिनों में मुसलमान लोग हजरत इमाम हुसैन की कब्र के प्रतीक रूप में बनाते हैं और जिसके आगे बैठकर मातम करते व मासिये पढते हैं। यह इराक में बनी हजरत इमाम हुसैन की यादगार की प्रतिकृतियां है।

  • राजेश जायसवाल