ब्रेकिंग न्यूज़मनोरंजनमहाराष्ट्रमुंबई शहरशहर और राज्य …जब फिल्म “शोले” की शूटिंग के दौरान धर्मेंद्र ने चलाई गोली तो बाल-बाल बच गए थे अमिताभ बच्चन! 24th January 2025 networkmahanagar 🔊 Listen to this राजेश जायसवाल / मुंबई 15 अगस्त 1975 फिल्म जगत के लिए एक दिन था। इसी दिन भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक ”शोले” सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। आज 50 साल बाद भी शोले का वहीं जलवा बरकरार है। इस फिल्म को बनने में पूरे 6 साल लगे थे, फिल्म का बजट 1 करोड़ से बढ़कर 3 करोड़ हो गया था। इसके निर्देशक रमेश सिप्पी बताते हैं कि उम्मीद नहीं थी कि शोले फिल्म 35 करोड़ का बिजनेस करेगी। 20 साल तक इसकी कमाई का रिकॉर्ड कोई फिल्म नहीं तोड़ पाई। मुंबई के मिनर्वा टॉकीज में पांच साल चली थी शोले! ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट के 2002 के “सर्वश्रेष्ठ 10 भारतीय फिल्मों” के एक सर्वेक्षण में इसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। 2005 में 50वें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में इसे पचास सालों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी मिला! शोले को भारत में बनी अब तक की सबसे प्रभावशाली फ़िल्मों में से एक माना जाता है। जिसके लिए भारत सरकार ने डायरेक्टर रमेश सिप्पी को 2013 में पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया था। वैसे तो उन्हें अनेकों बड़े पुरस्कार प्रदान किये जा चुके हैं। उन्होंने दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक ‘बुनियाद’ का भी निर्देशन किया था। हिंदी सिनेमा के मशहूर डायरेक्टर रमेश सिप्पी 23 जनवरी को अपना 78वां जन्मदिन मनाया। फिल्म से जुड़ी कई दिलचस्प बातें हैं- फिल्म की कहानी मशहूर लेखक सलीम जावेद ने लिखी थी। शोले के डायरेक्शन के लिए पहले प्रकाश मेहरा को अप्रोच किया गया था। प्रकाश मेहरा ने बिजी शेड्यूल का हवाला देते हुए फिल्म को डायरेक्ट करने से मना कर दिया। इसके बाद ये फिल्म डायरेक्टर रमेश सिप्पी की झोली में जा गिरी। रमेश सिप्पी बताते हैं कि उन दिनों ज्यादातर सीन असली तौर पर फिल्माना पड़ता था। फिल्म में पहले सूरमा भोपाली का किरदार नहीं था, इसे बाद में जोड़ा गया। संजीव कुमार ने जिस ठाकुर बलदेव सिंह का रोल निभाया वो राइटर सलीम के ससुर यानी सलमान खान के नाना का नाम था, वो आर्मी के रिटायर्ड अफसर थे। …जब ठाकुर बनने के लिए अड़ गए थे धर्मेंद्र फिल्म के स्टार कास्ट को फाइनल करने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। स्टार्स का मानना था कि फिल्म की पूरी कहानी गब्बर और ठाकुर के ईर्द-गिर्द ही है। हर कोई इन्हीं दो रोल को निभाना चाहता था। ऐसे में स्टार कास्ट फाइनल करने में रमेश सिप्पी को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। संजीव कुमार शुरुआत से गब्बर का रोल करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने डायरेक्टर के सामने दांत काले करने और बाल कटवाने की पेशकश की थी, लेकिन बाद में उन्हें ठाकुर का रोल मिला। वहीं ठाकुर का ये रोल धर्मेंद्र करना चाहते थे। धर्मेंद्र की इस ख्वाहिश से फिल्म डायरेक्टर रमेश सिप्पी धर्म संकट में पड़ गए, लेकिन डायरेक्टर रमेश सिप्पी के एक ट्रिक ने ठाकुर का रोल संजीव की झोली में डाल दिया। दरअसल, रमेश सिप्पी ने धर्मेंद्र से कहा कि अगर तुम वीरू का रोल करोगे तो तुम्हारा स्क्रीन टाइम हेमा मालिनी (ड्रीम गर्ल) के साथ ज्यादा रहेगा, वरना ये रोल संजीव को ही देना पड़ेगा। हेमा मालिनी के साथ ज्यादा स्क्रीन शेयर करने के लालच में धर्मेंद्र ‘वीरू’ के रोल के लिए मान गए। हेमा मालिनी का ये नाम (ड्रीम गर्ल) डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने ही शोले की शूटिंग के दौरान ही रखा था। वो उन्हें इसी नाम से बुलाते थे। सलमान खान के नाना का नाम पर था ठाकुर का किरदार फिल्म में ठाकुर का रोल सबसे प्रभावशाली था। असल में सलीम खान के ससुर का नाम ठाकुर बलदेव सिंह था जो सेना के रिटायर्ड ऑफिसर थे। बाद में मेकर्स ने फिल्म में सेना के ऑफिसर को पुलिसकर्मी के रोल में तब्दील कर दिया था लेकिन नाम वही रखा। गब्बर के रोल के लिए डायरेक्टर की पहली पसंद थे डैनी गब्बर के रोल के लिए डायरेक्टर रमेश सिप्पी की पहली पसंद डैनी थे। उस वक्त डैनी इंडस्ट्री के टॉप विलेन थे, लेकिन वो फिल्म ‘धर्मात्मा’ की शूटिंग में व्यस्त थे। जिसके चलते उन्होंने शोले फिल्म के लिए मना कर दिया। फिर सलीम ने अमजद खान की सिफारिश इस रोल के लिए की। एक नाटक में अमजद खान की एक्टिंग सलीम को बहुत पसंद आई थी जिसे देखने के बाद उन्होंने अमजद खान का नाम डायरेक्टर रमेश सिप्पी को सुझाया था। फिल्म की शूटिंग के पहले दिन अमजद खान को ”कितने आदमी थे” डायलॉग बोलना था, लेकिन वे ठीक से नहीं बोल पा रहे थे। लगभग पचास रीटेक हुए लेकिन वे डायलॉग नहीं बोल पाए। तभी डायरेक्टर रमेश सिप्पी टेंशन में आ गए और उन्हें आराम करने के लिए भेज दिया। ये बात अमजद खान को बहुत परेशांन कर गई और पूरी रात नहीं सो पाए। अगले दिन अमजद खान के दो-तीन टेक में ही सीन को पूरा कर दिया। गब्बर का वो डायलॉग जो आज भी लोग नहीं भूले हैं। रियल लाइफ डाकू से प्रेरित है गब्बर का किरदार एक बार सलीम खान के पिता ने उन्हें एक कुख्यात डाकू गब्बर सिंह की कहानी सुनाई थी, जो बहुत सारे कुत्ते पालता था और पुलिसवालों की नाक काट देता था। इसी कहानी के आधार पर सलीम ने फिल्म के डाकू का नाम ‘गब्बर’ रखा था। गुस्साए धर्मेंद्र के हाथों मरने से बचे अमिताभ शोले की क्लाइमैक्स शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन धर्मेंद्र के हाथों मरने से बाल-बाल बचे थे। दरअसल, धर्मेंद्र को क्लाइमैक्स सीन में गोलियां और बारूद इकट्ठा करना था, लेकिन जैसे ही एक्शन बोला जाता तो धर्मेंद्र के हाथों से बार-बार गोलियां गिर रही थीं। दो तीन बार सीन खराब होने के बाद धर्मेंद्र इतने गुस्से में आ गए कि उन्होंने असली गोलियां बंदूक में लगाईं और बंदूक चला दी। इस सीन में अमिताभ बच्चन पहाड़ों में ऊपर की तरफ खड़े थें। धर्मेंद्र के गुस्से में चलाई गई गोली अमिताभ बच्चन के कान के पास से होकर निकली और वो बाल-बाल बच गए। डायरेक्टर रमेश सिप्पी बताते हैं कि उन्होंने क्लाइमैक्स सीन रियल दिखाने के लिए शूटिंग के दौरान असली गोलियों का इस्तेमाल किया था। सूरमा भोपाली का किरादर शुरुआती स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं था फिल्म में दिवंगत जगदीप ने सूरमा भोपाली का किरदार निभाया था। शुरुआत में सूरमा भोपाली का किरदार फिल्म में नहीं था। बाद में राइटर्स को लगा कि फिल्म में और भी कॉमिक पंच की जरूरत है। जगदीप पर एक कव्वाली भी फिल्माई गई थी लेकिन फिल्म का रनटाइम खराब ना हो इसलिए उसे हटा दिया गया। वैसे ही फिल्म का टंकी सीन जहां से वीरू पानी की टंकी पर चढ़कर सुसाइड करने की धमकी देता है, शुरुआत में फिल्म का हिस्सा नहीं था। जावेद अख्तर ने इसे बेंगलुरु एयरपोर्ट जाते वक्त कार में लिखा था। जो फिल्म में असली फिल्माया गया था। डायरेक्टर के पिता ने फाइनेंस किया बजट फिल्म का बजट 1 करोड़ रुपए तय किया था लेकिन समय अधिक लगने से बजट बढ़ता चला गया। उस समय रमेश सिप्पी के पास अधिक पैसे नहीं थे। तब उनके पिता जीपी सिप्पी कहानी से इंप्रेस होकर फिल्म में पैसा लगाने के लिए तैयार हो गए और फिल्म 3 करोड़ में बनकर तैयार हुई थी। क्लाइमैक्स भी बदला गया 15 अगस्त 1975 को फिल्म शोले रिलीज हुई थी। रमेश सिप्पी के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म का क्लाइमैक्स बदला गया था। इस बात का खुलासा खुद रमेश सिप्पी ने किया था। उन्होंने बताया कि फिल्म का क्लाइमैक्स जैसा दिखाया गया, वैसा नहीं था। इमरजेंसी में सेंसर ने फिल्म के क्लाइमैक्स पर आपत्ति जताई थी। असली क्लाइमैक्स सीन में ठाकुर अपने नुकीले जूतों से गब्बर को मार देता है। इस सीन को सेंसर ने कानून का हवाला देकर बदलने को कहा था। इसके बाद 26 दिनों में क्लाइमेक्स को दोबारा से शूट किया गया, जिसमें गब्बर को कानून के हवाले किया गया। 25 करोड़ टिकट बिके, 3 करोड़ में बनी शोले ने कमाए 35 करोड़! मीडिया रिपोर्ट्स का दावा था कि फिल्म ‘शोले’ फ्लॉप हो जाएगी और प्रोड्यूसर को बहुत नुकसान होगा। इन खबरों के बीच सलीम और जावेद को पूरा भरोसा था कि फिल्म अच्छा कमाई करेगी। उन्होंने पेपर में ऐड पब्लिश कराया था जिसमें जिक्र था कि शोले हर राज्य में एक करोड़ से ज्यादा का कलेक्शन करेगी, जो कि इससे पहले किसी भी फिल्म ने नहीं किया होगा। रिलीज के कुछ दिनों बाद माउथ पब्लिसिटी से दर्शकों की संख्या बढ़ती गई। फिल्म ने हर राज्य में लगभग 2-3 करोड़ का कलेक्शन किया था। इस वक्त टिकट का अमूमन प्राइज 1 से 2 रुपए होती थी। कहीं-कहीं 15 रुपए का बालकनी टिकट 200 में बिक रहा था। फिल्म के कुल 25 करोड़ टिकट बिके थे। इस तरह 3 करोड़ के बजट में बनी फिल्म शोले ने 35 करोड़ का कलेक्शन किया। ऐड प्रमोशन के लिए किसी विलेन का अप्रोच! ऐड में कास्ट होने वाले पहले फिल्मी विलेन बने अमजद खान ‘गब्बर’ का रोल इतना फेमस हुआ था कि ब्रिटानिया बिस्किट कंपनी ने अमजद खान को बिस्किट के विज्ञापन के लिए कास्ट किया था। ये पहली बार था कि किसी कंपनी ने ऐड प्रमोशन के लिए किसी विलेन का अप्रोच किया था। इस ऐड के बाद ब्रिटानिया बिस्किट की ब्रिकी दोगुनी बढ़ गई थी। रमेश सिप्पी का जन्म और परिवार पाकिस्तान के कराची 23 जनवरी 1947 को रमेश सिप्पी का जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम रमेश सिफियामनलानी है। रमेश सिप्पी का जन्म पाकिस्तान के सिंधी परिवार में हुआ था। उन्होंने छोटी उम्र से ही काम की जिम्मेदारी संभाल ली थी। कम उम्र में कई वर्षों का एक्सपीरियंस लिए रमेश सिप्पी का अक्सर काम के प्रति लगाव देखकर लोग उनका मजाक भी उड़ाया करते थे। एक बार सलीम-जावेद ने कह दिया था कि रमेश सिप्पी को देखकर नहीं लगता कि उन्होंने कभी बचपन भी जिया होगा। ऐसा लगता है कि वह जन्म लेते ही 21 साल के हो गए। इस फिल्म से मिला था पहला ब्रेक फिल्म निर्माण के गुर सीखने के लिए रमेश सिप्पी ने महज 6 साल की उम्र से सेट पर जाना शुरूकर दिया था। फिल्म ‘शहंशाह’ में रमेश सिप्पी ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया था। इस फिल्म में उनका सिर्फ एक शब्द ‘मम्मी’ था। इस फिल्म में बस यह शब्द कहने के लिए उनको साइन किया गया था। इस तरह से रमेश सिप्पी का इंडस्ट्री में पहला इंट्रोडक्शन हुआ था। लेकिन जब वह बड़े हुए, तो उनका रुझान फिल्म मेकिंग की तरफ हो गया। एक्ट्रेस साधना की उठाई थीं चप्पलें! साल 1971 में रमेश सिप्पी ने फिल्म ‘अंदाज’ से बतौर डायरेक्टर डेब्यू किया था। इससे पहले रमेश सिप्पी ने फिल्म जौहर मेहमूद इन गोवा’ और ‘मेरे सनम’ जैसी फिल्मों में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम किया। वहीं उन्होंने अपने पिता जीपी सिप्पी से भी डायरेक्टिंग के कुछ गुण सीखे। इस दौरान वह सारा काम किया करते थे। उन्होंने एक्ट्रेस साधना की चप्पलें तक भी उठाई हैं। पर्दे के पीछे रहकर रमेश सिप्पी ने शम्मी कपूर से लेकर राजेश खन्ना तक के साथ काम किया है। इस फिल्म से हुए फेमस बता दें कि रमेश सिप्पी ने वैसे तो कई तरह की फिल्में बनाई हैं, लेकिन उनको सबसे ज्यादा फिल्म ‘शोले’ के लिए याद किया जाता है। यह फिल्म आज भी लोग पसंद करते हैं। रमेश सिप्पी ने एक बार बताया था कि इस फिल्म को बनाने के लिए उनके पास बजट नहीं था। ऐसे में उनको यह फिल्म बनाने के लिए अपने पिता जीपी सिप्पी से पैसे लेने पड़े थे। Post Views: 16