दिल्लीब्रेकिंग न्यूज़महाराष्ट्रराजनीति महाराष्ट्र में शुरू हुआ खेला!..तो क्या ऐसे गिर जाएगी उद्धव सरकार? जानें- ताजा समीकरण 21st June 2022 Network Mahanagar 🔊 Listen to this मुंबई,(राजेश जायसवाल): महाराष्ट्र में हुए राज्यसभा चुनाव के बाद सोमवार को विधान परिषद चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 5 सीटों पर शानदार जीत हासिल कर ली। महाराष्ट्र विधान परिषद की 10 सीटों के लिए हुए चुनाव में भाजपा ने सभी पांच सीटों पर जीत पक्की की। जबकि शिवसेना और एनसीपी के 2-2 उम्मीदवार जीते। वहीँ कांग्रेस सिर्फ एक सीट जीत पाई है। ‘कमल’ की जीत के ‘हीरो’ पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस माने जा रहे हैं। इसी जीत ने मंगलवार की अल-सुबह महाराष्ट्र में एक नया सियासी भूचाल ला दिया है। जिससे राज्य की उद्धव सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। महाराष्ट्र सरकार के शहरी विकास मंत्री व शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे की नाराजगी अब शिवसेना को भारी पड़ गई। ख़बर आ रही है कि शिंदे दो दर्जन से ज्यादा विधायकों को लेकर गुजरात के सूरत स्थित एक होटल में ‘खेला’ कर रहे हैं। उन्हें शिवसेना के 26 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। शिंदे के साथ 4 निर्दलीय विधायक भी हैं। रात से ही उनसे पार्टी का कोई संपर्क नहीं हो पाया। ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि क्या उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार खतरे में है? वहीँ सूत्रों के हवाले से ये भी ख़बर आ रही है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एकनाथ शिंदे को उप-मुख्यमंत्री पद की पेशकश की है..? हालांकि, महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि उन्हें ऐसे किसी ऑफर के बारे में जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि शिवसेना विधायकों की नाराजगी इसलिए है क्योंकि लोगों को पैसे से ज्यादा ‘इज्जत’ की जरूरत है। संजय राउत के इसी एरोगेंट बर्ताव की वजह से लोग नाराज हैं। आगे पाटिल ने कहा कि जब भी कोई दोस्त आता है और बोलता है…मैं आता हूं, तो सभी तरह का इंतजाम हम करते हैं और इसी वजह से सीआर पाटिल ने भी उनका इंतजाम किया है। लेकिन यहां हम आपको बता दें कि शिंदे यदि नंबर गेम हासिल करने में कामयाब रहते हैं तो महाराष्ट्र में एक बार फिर बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिल सकता है। जानिए कैसे- भाजपा के पास 106 विधायक हैं। सरकार बनाने के लिए उसे 37 और विधायकों का समर्थन चाहिए, क्योंकि फिलहाल, नंबर गेम का जादुई आंकड़ा घटकर 143 पहुंच गया है। सत्ता के लिए हमने कभी धोखा नहीं दिया और न देंगे: एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र में अचानक आये सियासी भूकंप के बीच शिवसेना से बागी हुए एकनाथ शिंदे का पहला रिएक्शन भी सामने आ चुका है। शिंदे ने ट्वीट कर कहा कि सत्ता के लिए वे कभी धोखा नहीं देंगे! शिंदे ने ट्वीट कर कहा कि हम बालासाहेब के पक्के शिवसैनिक हैं। बालासाहेब ने हमें हिंदुत्व सिखाया है। बालासाहेब के विचारों और धर्मवीर आनंद दिघे साहब की शिक्षाओं पर चलते हुए हमने सत्ता के लिए कभी धोखा नहीं दिया और न कभी धोखा देंगे! उधर बागी शिंदे पर ऐक्शन लेते हुए शिवसेना ने उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा में विधायक दल के नेता पद से हटा दिया है। इस पूरे घटनाक्रम के बीच एकनाथ शिंदे के ठाणे स्थित आवास के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। शिवसेना ने एकनाथ शिंदे के खिलाफ ऐक्शन लेते हुए उन्हें विधायक दल के नेता पद से हटाकर अजय चौधरी को विधायक दल का नेता बनाया है। शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा है कि अनुशासन जिसने भी तोड़ा उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। राउत ने कहा, एकनाथ शिंदे हमारे मित्र हैं, हमारे साथी है। पार्टी में उनका योगदान भी है। उन्होंने ईडी की कार्रवाई के डर से पार्टी से बगावत कर दी है। राउत ने कहा कि हमारे विधायकों से झूठ बोलकर उन्हें कार से ले जाया गया। उन्हें किडनैप किया गया है। हालांकि, राउत ने यह पुष्टि नहीं की कि शिवसेना के कितने विधायक बागी हो चुके हैं? उन्होंने कहा कि करीब 14-15 विधायक सूरत में हैं और हम उनमें से कुछ के लौटने का इंतजार कर रहे हैं। अभी हमारा कोई प्लान नहीं है। हम स्थिति का अवलोकन कर रहे हैं। बीजेपी जो चाहती है करने दीजिए। संजय राउत ने दावा किया कि हमारे कुछ विधायक सूरत से मुंबई आना चाहते हैं लेकिन उन्हें लौटने नहीं दिया जा रहा है। उनके पारिवारिक सदस्य मुंबई में लापता होने की शिकायत दर्ज करा रहा हैं। इनमें नितिन देशमुख की पत्नी भी शामिल हैं। भाजपा के लोग ऑपरेशन लोटस चला रहे हैं। पर ये सफल नहीं होगा। बता दें कि गुजरात भाजपा का किला है। इसी वजह से गुजरात को ‘ऑपरेशन लोटस’ के लिए चुना गया। शिवसेना के बागी विधायकों को अगर मुंबई के किसी होटल में रखा गया होता तो शिवसैनिकों द्वारा तोड़फोड़ करने का डर होता। चूंकि महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार है। इसलिए विधायकों को यहां रखना खतरे से खाली नहीं था। वहीं सूत्रों ने ‘नेटवर्क महानगर’ को बताया कि ‘Le Meridien Hotel’ में पहले 11 कमरे बुक किए गए और सोमवार की रात करीब 10 बजे तक 11 विधायक सूरत पहुंचे और होटल में चेकिंग की। मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में दूसरा बड़ा दल मंगलवार को करीब 1.30 बजे 14 विधायकों के साथ सूरत पहुंचा है। होटल की बुकिंग मुंबई से ही की गई थी। गुजरात के भाजपा नेताओं को देर रात सूचित किया गया था। सभी विधायकों के होटल में पहुंचने के बाद सूरत पुलिस को सुरक्षा मुहैया कराने का निर्देश दिया गया। निर्देश मिलते ही मौके पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किए गए। गुजरात भाजपा के अध्यक्ष सीआर पाटिल मंगलवार सुबह तक सूरत में थे। हालांकि, सूत्रों ने बताया कि उनके करीबी एकनाथ शिंदे और सीआर पाटिल के बीच किसी भी मुलाकात से इनकार कर रहे हैं। जबकि पाटिल मंगलवार सुबह गांधीनगर में अपने निर्धारित योग कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। वह सुबह करीब साढ़े 9 बजे अहमदाबाद पहुंचे थे। शिंदे ने रखी अघाड़ी गठबंधन से शिवसेना के बाहर निकलने की शर्त! सूत्रों की मानें तो एकनाथ शिंदे भले ही मुंबई में नहीं हैं, परन्तु शिवसेना के आला नेताओं ने उनसे बात की है। शिंदे का कहना है कि हम शिवसेना में ही रहना चाहते हैं, लेकिन शिवसेना को कांग्रेस-एनसीपी के साथ बनी सरकार से बाहर निकलना पड़ेगा। क्योंकि इस महाविकास अघाड़ी सरकार में सिर्फ शिवसेना का पतन हो रहा है और सारा फायदा एनसीपी ले रही है। इस सरकार में सारे बड़े-बड़े मंत्रिपद के खाते एनसीपी के पास हैं। शिवसेना के पास महत्वपूर्ण विभाग नहीं हैं। शिवसेना विधायकों को फंड भी नही दिया जा रहा है, जबकि एनसीपी अपने विधायकों को भरपूर फंड कार्यों के लिए दे रही है। एनसीपी शिवसेना को खत्म करने पर तुली है। भाजपा से गठबंधन कर बने सरकार सूत्रों की मानें तो एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के सामने भाजपा से गठबंधन की शर्त रखी है। उद्धव ने शिंदे से बातचीत के लिए मिलिंद नार्वेकर को भेजा था। नार्वेकर और शिंदे के बीच करीब एक घंटे मुलाकात चली। नार्वेकर ने फोन पर उद्धव ठाकरे से शिंदे की बातचीत कराई है। करीब 20 मिनट तक हुई बातचीत में उद्धव ने मुंबई आकर बातचीत का प्रस्ताव रखा, परन्तु शिंदे भाजपा से गठबंधन पर अड़े रहे। यह भी कहा कि पहले उद्धव अपना रुख स्पष्ट करें और यदि गठबंधन पर राजी हैं तो पार्टी टूटेगी नहीं। इस बीच शिवसेना के 3 बड़े नेता सीएम उद्धव ठाकरे के आधिकारिक निवास ‘वर्षा’ बंगले पर हैं। शिवसेना के विधायकों के साथ उद्धव की बैठक शुरू है। बैठक में पार्टी के करीब 33 विधायक मौजूद हैं। इसके पहले सीएम आवास पर उद्धव ठाकरे और उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बीच लंबी मीटिंग हुई। जिसमें बचे हुए शिवसेना विधायकों को लोअर परेल के रिसॉर्ट में शिफ्ट करने का फैसला किया गया। अब देखना यह होगा कि यदि शिंदे के नेतृत्व में बागी विधायक नहीं मानते हैं तो शिवसेना पर टूट के पहाड़ के साथ एमवीए सरकार गिरने का खतरा मंडरा रहा है। इस मुलाकात के बाद अब भाजपा भी एक्टिव हो गई है। सू्त्रों का कहना है कि देवेंद्र फडणवीस आज रात सूरत जा सकते हैं। वे अभी दिल्ली में हैं। इस बीच महाराष्ट्र को लेकर सबसे बड़ा संकेत देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता ने ट्वीट कर दिया- ‘एक था कपटी राजा’। ट्वीट में उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, पर इसे महाराष्ट्र में बदलाव का संकेत माना जा रहा है। फडणवीस पहुंचे दिल्ली राज्य में बदलते सियासी घटनाक्रम के बीच पूर्व सीएम और नेता विपक्ष देवेंद्र फडणवीस भागकर दिल्ली पहुंचे हैं। माना जा रहा है कि यहां वह बीजेपी के आला नेताओं से वर्तमान सियासी हालत पर चर्चा करेंगे। चर्चा है कि अगर महाराष्ट्र में सरकार बदली तो फडणवीस एकनाथ शिंदे को उपमुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। इसके लिए वे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मंजूरी लेने दिल्ली पहुंचे हैं। जिससे प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने में कोई राजनीतिक बाधा न आए। इसके अलावा पार्टी के नेता यह भी जानना चाहते हैं कि शिंदे के साथ आने पर मुंबई और ठाणे समेत 14 नगर निगमों में भाजपा को कितना राजनीतिक फायदा मिलेगा? एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत एकनाथ शिंदे कल्याण से सांसद हैं। क्या उन्हें केंद्र में कुछ जिम्मेदारी दी जा सकती है? फडणवीस दिल्ली में आलाकमान से इस पर भी चर्चा करना चाहते हैं। अगर एकनाथ शिंदे के साथ आए शिवसेना के विधायक बीजेपी का समर्थन करते हैं तो उद्धव सरकार के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव के बाद एमएलसी चुनाव में भी देवेंद्र फडणवीस को ही जीत का ‘शिल्पकार’ माना जा रहा है। एमएलसी चुनाव में संख्याबल ना होने के बावजूद भी बीजेपी ने अपने पांचवें कैंडिडेट को जीत दिलाने में कामयाबी पाई। वहीं राज्यसभा चुनाव में भी शिवसेना के संजय पवार को शिकस्त देकर बीजेपी के धनंजय महाडिक ने जीत हासिल की थी। शरद पवार बोले- उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार चलती रहेगी, कोई खतरा नहीं! महाराष्ट्र के ताजा घटनाक्रम पर एनसीपी चीफ शरद पवार ने दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि इससे पहले भी तीन बार सरकार गिराने की कोशिश हुई है। ढाई साल से ऐसी कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि शिवसेना के लीडरशिप के साथ हम खड़े हैं। सरकार बिल्कुल सही तरीके से चल रही है। पवार ने ये भी कहा कि महाराष्ट्र में बदलाव की कोई जरूरत नहीं है और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार चलती रहेगी। उद्धव ठाकरे की सरकार बनाने से पहले भी हमारे विधायकों को हरियाणा में रखा गया था, लेकिन हमने उन्हें वापस लाये और सरकार स्थापित की। कल चुनाव हुए, एनसीपी के दो प्रत्याशी थे, उन्हें पूरे वोट मिले। उनके एक भी वोट यहां से वहां नहीं हुए। हम किसी से नाराज नहीं हैं। एक बात सच है कि महाविकास अघाड़ी का एक प्रत्याशी जीत नहीं सका। लेकिन कांग्रेस पार्टी अपने विधायकों का वोट नहीं दिला पाई, हम बात करेंगे और देखेंगे कि क्या हो सकता है। पवार ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि मुझे यहां की जो स्थिति है, वो देखने के बाद लग रहा है कि कुछ ना कुछ रास्ता निकलेगा। मैं आपसे सुन रहा हूं कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। मुझे पता नहीं कि शिंदे सीएम बनना चाहते हैं या नहीं। एक बात है कि जो अंडरस्टैंडिंग तीनों पार्टी के पास है, उसमें मुख्यमंत्री शिवसेना के पास है, उपमुख्यमंत्री एनसीपी के पास और राजस्व कांग्रेस के पास। मुख्यमंत्री शिवसेना का है और यह उनका इंटर्नल मामला है, वो जो तय करेंगे, हम उन्हें समर्थन करेंगे। 1980 में मेरे पास 6 विधायक थे और उनके आधार पर हमने 45 वोट जुटाकर एक प्रत्याशी को राज्यसभा पहुंचाया था। पवार देर शाम तक दिल्ली से मुंबई पहुंच रहे हैं। यहां वह पहले एनसीपी नेताओं के साथ मुलाकात करेंगे। फिर सीएम उद्धव ठाकरे के साथ मिलकर सियासी हालात पर मंथन करेंगे। वहीं कांग्रेस ने अपने संकटमोचक व पूर्व सीएम कमलनाथ को भी मोर्चे पर लगाया है। पार्टी ने उन्हें पर्यवेक्षक बनाकर महाराष्ट्र भेजा है। कांग्रेस ने कल अपने विधायकों की बैठक बुलाई है। …तो नंबरगेम में शिवसेना को गंवानी पड़ सकती है सत्ता? विधान परिषद चुनाव के ठीक बाद महाराष्ट्र में अचानक बने इस सियासी संकट के बीच एक नाम की चर्चा सबसे अधिक की जा रही है। जिसे कुछ लोग ‘असली चाणक्य’ कहते हैं। आपको अंदाजा लग गया होगा, वो कोई और नहीं सियासी पिच पर ताबड़तोड़ बैटिंग करने वाले खिलाड़ी हैं ‘पवार साहेब’। कहा जा रहा है कि अब वही उद्धव सरकार को बचा सकते हैं! वैसे तो, आज एनसीपी सुप्रीमों शरद पवार को दिल्ली में विपक्ष के राष्ट्रपति पद के संयुक्त उम्मीदवार को लेकर आम सहमति बनानी थी, लेकिन अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती उद्धव सरकार को बचाने की है। सियासी गलियारों में पवार की चर्चा यूं ही नहीं हो रही है। लोगों को उनके रणनीतिक कौशल पर भरोसा है। फडणवीस vs उद्धव की फाइट में वही हैं, जो एमवीए सरकार का पलड़ा भारी कर सकते हैं। शिवसेना नेता संजय राउत ने भी दिल्ली का निर्धारित दौरा रद्द कर दिया है। वहीँ भाजपा के चमत्कारी नेता देवेंद्र फडणवीस दिल्ली में डटे हुए हैं। एनसीपी के नेता भी राजधानी पहुंच गए हैं। फूट के डर से कांग्रेस ने अपने विधायकों को दिल्ली तलब कर लिया है। नंबर गेम बदलने में है महारत हासिल! दरअसल, शरद पवार पहले भी नंबर गेम को बदल चुके हैं। पीएम मोदी भी उनके राजनीतिक चातुर्य के मुरीद हैं। पवार से उम्मीद की सबसे बड़ी वजह इस सरकार के बनने में छिपी है। उसके बाद भतीजे के जरिए भाजपा के चले दांव को भी उन्होंने ही मात दी थी। इसलिए पवार सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं। उन्हें राष्ट्रपति बनाने की बातें चल रही हों तो उनके राजनीतिक कद का अंदाजा लगाया ही जा सकता है। वह महाराष्ट्र की सियासी नब्ज को बखूबी समझते हैं। शिवसेना-कांग्रेस की दोस्ती कराने वाले पवार ही तो हैं! पवार ही वह शख्स हैं जिसने उद्धव ठाकरे को सीएम की कुर्सी दिलाई। एक इंटरव्यू में पवार ने खुद कई चीजों को स्पष्ट किया था। तब शिवसेना और भाजपा एक साथ हुआ करते थे। दोनों की विचारधारा ऐसी थी कि कांग्रेस उनमें से किसी के साथ जाने की सोच भी नहीं सकती थी। विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो शिवसेना और भाजपा में दूरियां बढ़ने लगीं। पवार शांत होकर हर घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए थे। दिन बीतने के साथ ही सरकार बनाना मुश्किल हो गया, जब उन्हें लगा कि दोनों सहयोगियों के बीच काफी दरार आ गई है और सरकार नहीं चल सकती तब उन्होंने अपना दांव चला और भाजपा को चारो खाने चित कर दिया! उद्धव को सीएम बनाने के लिए सोनिया को मनाया यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि पवार ने उद्धव ठाकरे को बचपन से देखा है। वह जानते थे कि उद्धव भले ही शांत दिखें और कम बोलते हों पर उनमें योग्यता की कोई कमी नहीं है। जब बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना की जिम्मेदारी उद्धव के कंधों पर डाली थी तो कई राजनीतिक पंडितों ने संदेह जताया था, लेकिन पवार को उद्धव पर भरोसा था। शिवसेना-भाजपा में दूरी बढ़ी तो पवार और राउत की बैठकें शुरू हुईं। इसके बाद तय हुआ कि शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस समर्थन दें तो सरकार बन सकती है। लेकिन कांग्रेस शिवसेना को समर्थन देने के लिए तैयार नहीं थी। दूसरी तरफ भाजपा को सत्ता में आने से रोकना भी उतना ही जरूरी था। आखिर में तय हुआ कि अगर सोनिया गांधी राजी हो जाएंगी तो उद्धव सीएम बन सकते हैं। ऐसे में पवार ने खुद सोनिया के सामने यह प्रस्ताव रखा। उन्होंने ऐंटी बीजेपी सरकार का ऐंगल समझाया और इसके बाद तीन दलों ने मिलकर सरकार बना ली। पवार की कार्यकुशलता इसी से समझ सकते हैं कि जिस सोनिया गांधी का विरोध कर वह 1999 में कांग्रेस से अलग हुए थे, उसी पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाने में कामयाब हो गए। उद्धव को सीएम बनाने के लिए भी उन्होंने ही सोनिया गांधी को मनाया था। …जब भाजपा ने भतीजे अजीत को अपने पाले में खींचा! शरद पवार के बारे में कहा जाता है कि वह अकेले मोदी-शाह की रणनीति को मात देने का माद्दा रखते हैं। एनसीपी के ऑफिस के बाहर पोस्टर लगते रहे हैं, ‘इतिहास गवाह है महाराष्ट्र ने कभी भी दिल्ली के तख्त के आगे हथियार नहीं डाले हैं।’ इशारा मोदी-शाह के आगे पवार की मजबूती का होता है। चार दशक से ज्यादा लंबे अपने राजनीतिक करियर में पवार अपने नेटवर्क और साफ-सुथरी छवि के दम पर कई बड़ी चुनौतियों का सामना कर विरोधियों को शिकस्त दिया है। आपको याद होगा ढाई साल पहले नवंबर 2019 में अचानक शरद पवार के भतीजे अजीत पवार को अपने पाले में कर भाजपा ने उपमुख्यमंत्री बना दिया! इस नाटकीय घटनाक्रम में देवेंद्र फडणवीस सीएम बन गए। दोनों के गवर्नर के सामने प्रणाम करने की मुद्रा में तस्वीरें सामने आईं तब देश को पता चला कि महाराष्ट्र में पवार के घर में फूट पड़ गई। पवार एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह मौन रहे। उन्हें भाजपा या कहें मोदी-शाह की रणनीति को विफल करना था। वह जमीन से जुड़े आदमी रहे हैं और परिवार में फूट ने उनकी प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया था। अजीत पवार के शपथ लेने की खबर आई थी तो लोगों ने कहा कि इसमें जरूर उनके चाचा शामिल होंगे। पहले कहा जाता था कि भतीजा अपने चाचा से बिना पूछे एक कदम नहीं चलता तो ऐसा क्या हो गया? चाचा-भतीजे में जरूर कुछ मनभेद आ गए थे, लेकिन पवार नहीं चाहते थे कि अजीत भाजपा के साथ जाएं। कुछ ही घंटे में पासा पलट गया। पवार की एक आवाज पर बागी विधायक लौट आए और अजीत को भी अपने चाचा का आशीर्वाद लेने आना पड़ा। आखिर में फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा। इससे उनकी खूब किरकिरी भी हुई थी। सबकी निगाहें पवार पर टिकी उद्धव सरकार को बचाने के लिए पवार ने विधायकों की आपात बैठक बुलाई है। भाजपा के समर्थक कह रहे हैं कि जो काम अजीत पवार नहीं कर पाए, अब एकनाथ शिंदे पूरा करेंगे। अब उद्धव सरकार को बचाना है तो शिंदे को मनाना होगा। समझा जा रहा है कि शिंदे को मनाने के लिए सबकी नजरें पवार पर टिकी हैं। शिंदे शुरू से शिवसैनिक रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र में शायद ही कोई नेता होगा जो शरद पवार की बात को नजरअंदाज करने या न मानने की हिम्मत करे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो बागी विधायकों और 13 निर्दलीय विधायकों की मदद से भाजपा एमवीए को एक बड़ा झटका दे सकती है। बताते हैं कि उद्धव कदम-कदम पर सरकारी नीतियों और फैसलों के बारे में पवार से परामर्श करते रहते हैं। एक संभावना यह भी बन रही है कि अगर शिंदे तैयार नहीं होते हैं तो उद्धव ठाकरे चाहेंगे कि पवार की बात मानकर बागी विधायक लौट आएं। नंबरगेम कम जानकर भाजपा एक बार फिर पहले वाली गलती दोहराना नहीं चाहेगी। बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष शरद पवार खेल की गुगली को बखूबी समझते हैं। अब शिंदे के जरिए भाजपा ने जो शॉट खेला है…इसका जवाब पवार किस तरह से देते हैं, यह देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा। आखिर कौन हैं एकनाथ शिंदे? एकनाथ शिंदे के बारे कहा जाता है कि वे ठाकरे परिवार के बाहर सबसे मजबूत ताकतवर शिवसैनिक हैं। 2019 में अगर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने के लिए राजी नहीं हुए होते एकनाथ शिंदे आज सीएम की कुर्सी पर होते। 59 वर्षीय शिंदे महाराष्ट्र सरकार में नगर विकास मंत्री हैं। वर्ष 1980 में वे शिवसेना से बतौर शाखा प्रमुख जुड़े थे। शिंदे ठाणे की कोपरी-पांचपखाड़ी सीट से 4 बार विधायक चुने जा चुके हैं। वे पार्टी के लिए जेल भी जा चुके हैं। उनकी इमेज एक कट्टर और वफादार शिवसैनिक की रही है। एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के सतारा जिले के पहाड़ी जवाली तालुका से हैं। ठाणे शहर में आने के बाद उन्होंने 11वीं कक्षा तक मंगला हाईस्कूल और जूनियर कॉलेज, ठाणे से पढ़ाई की। लेकिन उनके सफर की शुरुआत एक रिक्शा वाले से हुई। ठाणे में शिंदे का प्रभाव कुछ ऐसा है कि लोकसभा चुनाव हो या निकाय चुनाव हमेशा इनका उम्मीदवार ही चुनाव जीतता आया है। एकनाथ के बेटे श्रीकांत शिंदे भी शिवसेना के ही टिकट पर कल्याण सीट से सांसद हैं। अक्टूबर 2014 से दिसंबर 2014 तक महाराष्ट्र विधानसभा में वे विपक्ष के नेता रहे। 2014 में ही महाराष्ट्र राज्य सरकार में PWD के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त हुए। 2019 में कैबिनेट मंत्री सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री (महाराष्ट्र सरकार) का पद मिला। MVA के पास कितने नंबर? शिंदे की बगावत से पहले उद्धव सरकार के पास 169 विधायकों का समर्थन प्राप्त था। इसमें शिवसेना के पास 55, एनसीपी के पास 52 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के 2, पीजेपी के 2, बीवीए के 3 और 9 निर्दलीय विधायकों का समर्थन था। फिलहाल, 24 से ज्यादा विधायक शिंदे के साथ सूरत में हैं। इसमें निर्दलीय विधायक भी शामिल हैं। वहीं, AIMIM के दो, सीपीएम के 1 और एमएनएस का 1 विधायक शामिल है। भाजपा के पास 113 का आंकड़ा भाजपा के पास 106 विधायक हैं। इसके अलावा आरएसपी के 1, जेएसएस के 1 और 5 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी उसे मिल रहा है। बहुमत के लिए भाजपा को विधानसभा में 143 विधायकों का समर्थन चाहिए, क्योंकि दो विधायक जेल में हैं। वहीं एक शिवसेना विधायक रमेश लटके का निधन हो चुका है। इस लिहाज से भाजपा को 30 और विधायकों की जरूरत पड़ेगी है। यहां यदि शिंदे कैंप में 25 विधायक आ जाते हैं तो कुछ निर्दलीय या अन्य के समर्थन से भाजपा सरकार बना सकती है। कहां से शुरू हुआ खेला? महाराष्ट्र में सियासी खेला राज्यसभा चुनावों से शुरू हुआ। राज्यसभा चुनावों में 113 विधायकों के समर्थन वाली भाजपा को 123 वोट पड़े थे। सोमवार को हुए विधान परिषद चुनाव में भाजपा को 134 विधायकों का समर्थन हासिल हुआ। भाजपा अपने पांचों उम्मीदवारों को जिताने में सफल रही। इसके उलट शिवसेना को अपने 55 विधायकों व समर्थक निर्दलीय विधायकों के बावजूद सिर्फ 52 वोट ही मिले। जानें- महाराष्ट्र विधानसभा का गणित महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सदस्य हैं। एनसीपी के नवाब मलिक और अनिल देशमुख के जेल में होने और एक विधायक के निधन की वजह से फिलहाल, विधायकों की संख्या 285 है। इनमें बीजेपी के पास 106, शिवसेना के पास 55, एनसीपी के पास 52 और कांग्रेस के पास 44 विधायक हैं। बहुमत का जादुई आंकड़ा 143 है। अगर 20 विधायक शिवसेना के बगावत करते हुए शिंदे के साथ आते हैं तो एमवीए के पास 131 विधायक ही शेष बचेंगे और यहां उसे 12 विधायकों का समर्थन जरूरी होगा। एमवीए सरकार को बाहर से अन्य दलों और निर्दलीयों के 20 विधायकों का समर्थन मिल रहा है। ऐसे में अगर ये विधायक भी टूटते हैं तो उद्धव की कुर्सी छीन सकती है। हालांकि, एमवीए अब तक दावा करती आई है कि उसके पास कुल 169 विधायकों का समर्थन है। Post Views: 296