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सपनों के उडनख़टोले में बैठ…तय किया अपना आकाश!

जगा रहे शिक्षा का अलख…

हते हैं कि शिक्षक राष्ट्र का निर्माता और समाज का सजग प्रहरी होता है, जो समाज को एक नई दिशा देने का काम करता है। उसके द्वारा शिक्षित व्यक्ति देश का नेतृत्व और समाज के उन्नति व विकास के लिए प्रत्येक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे रहा है। आज हम ऐसा ही कार्य करने वाले समाज के एक सिपाही संजय रामनरेश गुप्ता के बारे में बात करने जा रहे हैं:-
उत्तर प्रदेश में परमवीरों की धरती कही जाने वाले आज़मगढ़ जनपद के बैजाबारी गांव में जन्में संजय गुप्ता बताते हैं कि मैंने दसवीं तक की पढ़ाई गांव से ही की। उसके बाद सपनों के उडनख़टोले में बैठ अपना आकाश तय करने वर्ष २००६ में मुंबई चला आया। यहां आकर माटुंगा स्थित दयानंद बालक-बालिका विद्यालय से १२वीं तथा जीटीबी नगर के गुरुनानक कॉलेज से बी.कॉम एम.कॉम तक की शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद पिल्लई कॉलेज से बीएड और अर्नी विश्वविद्यालय से एम.ए. तथा जेएस विश्वविद्यालय से पीएचडी किया। आज मैं वडाला के एनकेईएस कॉलेज में पढ़ाता भी हूं और महाराष्ट्र राज्य चैरिटी कमिश्नर से पंजीकृत संस्था (NGO) ‘एप्लस एजुकेशन सोसायटी’ के माध्यम से जीटीबी नगर में ‘एप्लस कोचिंग क्लासेस’ चला रहा हूं।


संजय गुप्ता कहते हैं कि हमने अपने शैक्षणिक जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखें हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के बावजूद भी मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। मेरा सपना था कि ग्रेजुएशन के बाद मैं कोचिंग क्लासेस खोलकर बेहद कम फीस में बच्चों को पढ़ाऊंगा। इसी उद्देश्य से आज मैं कुछ जरूरतमंद बच्चों के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन मुफ्त शिक्षा प्रवाह कार्यक्रम भी चला रहा हूँ, जिसमें काफी बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं। वाकई में यह बहुत ही शानदार महसूस होता है जब आप किसी की मदद करते हैं।
संजय गुप्ता ने बताया कि पिछले सप्ताह में ही उन्होंने ‘एप्लस क्लासेस’ के टॉपर आये कई बच्चों के एक साल के लिए भरे हुए फीस वापस लौटा दिए! जो कि बीस हजार रूपये से अधिक थे। उन्होंने इसके लिए उनके अभिभावकों के साथ एक स्पेशल प्रोग्राम का आयोजन भी किया। जिसमें मशहूर यूट्यूबर दिनेश कुमार गुप्ता समेत कई शिक्षकों ने बच्चों की काउंसलिंग की। उनके इस अनोखी पहल की खूब सराहना की जा रही है। संजय कहते हैं कि इसके पीछे उनका उद्देश्य सिर्फ ये है कि बच्चे पढाई में और ध्यान दें, पढ़ने में मेहनत करें और माँ-बाप का नाम रोशन करें।
संजय गुप्ता बताते हैं कि कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन में जब सभी स्कूल-कॉलेज बंद हो गए थे ऐसे में जो बच्चे झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं, उनके सामने पढ़ाई की विकट समस्या निर्माण हो गई और बच्चे घरों में बैठे-बैठे ऊब रहे थे। तब उन्होंने ‘सायन फ्रेंड सर्कल’ समूह के सदस्यों के साथ मुंबई की अलग-अलग बस्तियों में जाकर जरूरतमंद बच्चों को अध्ययन सामग्री किट और उनके परिजनों को खाद्य सामग्री पैकेट वितरित की। बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए हमारे समूह के सदस्य डिज्नी, मिकी हाउस, हाथी और अन्य प्रसिद्ध कार्टून कैरेक्टर जैसे परिधान शरीर पर धारणकर उनका मनोरंजन कर रहे थे। उस समय हमारा उद्देश्य बच्चों के मन में ‘कोरोना शैतान’ नामक बैठा हुआ डर बाहर निकालना था और इससे उनके जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।
संजय गुप्ता कहते हैं कि कोरोना संकट ने शिक्षा व्यवस्था के समक्ष कई नई चुनौतियाँ उत्पन्न की। इस संकट से यह सिखने को मिला की आज हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था को कितना तकनीकी कुशल बनाने की जरूरत है। आज शिक्षण संस्थाओं की स्थापना तथा प्रबंधन एक लाभकारी उद्योग बन गए हैं; इससे शिक्षा का बाजारीकरण होता जा रहा है, जिसे देखकर मन को बहुत पीड़ा होती है।