क्रिकेट और स्पोर्टदिल्लीदेश दुनियामनोरंजनशहर और राज्यसामाजिक खबरें न्यूजपेपर बांटने वाला, बना ‘गोल्ड मेडल विनर’ इंटरनैशनल बॉक्सिंग में बढ़ाया भारत का मान..! 20th March 2019 networkmahanagar 🔊 Listen to this कहते हैं..कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती..यह कहावत मकरान कप में गोल्ड मेडल जीतकर इंटरनैशनल बॉक्सिंग में भारत का मान बढ़ाने वाले दीपक भोरिया पर सटीक बैठती है। हिसार हरियाणा के इंटरनैशनल बॉक्सर दीपक की जिंदगी में वह वक्त भी आया था, जब वह आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे और न्यूज पेपर बांटने को मजबूर थे। लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी और परिणाम सबके सामने है।21 वर्षीय इस बॉक्सर ने हाल ही में मकरान कप का गोल्ड मेडल अपने नाम किया। यह टूर्नमेंट ईरान के चाबहार में हुआ था। तीन बार के राष्ट्रीय विजेता हरियाणा के दीपक ने 46-49 किलोग्राम भारवर्ग में स्वर्ण अपने नाम किया। उन्होंने फाइनल में जाफर नासेरी को मात दी थी। यह इस टूर्नमेंट में भारत का एक मात्र गोल्ड मेडल रहा। भारत ने यहां कुल 8 पदक हासिल किए हैं, जिसमें एक गोल्ड, पांच सिल्वर और दो ब्रॉन्ज मेडल शामिल थे। अपने संघर्ष के बारे में दीपक बताते हैं कि एक वह वक्त भी था, जब उन्हें अच्छी डायट (अंडे, दूध) के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था और वह लगभग हार मान चुके थे। उनके दिन तब बदलने लगे जब उन्हें यूनिवर्सल बॉक्सिंग अकादमी, हिसार में राजेश शेवरन का मार्गदर्शन मिला। वह बताते हैं- 2009 में आर्थिक विषमताओं की वजह से मैंने बॉक्सिंग की ट्रेनिंग छोड़ दी। तब मेरे कोच ने मेरा सपॉर्ट किया। लगभग 6 महीने बाद वह मुझे बॉक्सिंग में वापस लाए। उन्होंने मेरी डायट और ट्रेनिंग फीस का जिम्मा खुद उठाया। वह बताते हैं कि सघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। वर्ष 2011 में उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब मेरे दाएं हाथ में फ्रैक्चर हो गया। इस बारे में वह कहते हैं- शुक्र है, मैं ठीक हो सका और बॉक्सिंग में वापसी की। रिकवरी के दौरान मैं बाएं हाथ से अभ्यास करता था, जिसका अब फायदा मिलता है। अब दोनों हाथों से मैं एक जैसा (दोनों हाथों में बराबर ताकत है) पंच लगा सकता हूं। दीपक के पिता इंडियन होम गार्ड में करते हैं, जबकि मां घर संभालती हैं। उन्होंने बताया, वर्ष 2012 मेरे लिए खास रहा। मैंने स्टेट लेवल टूर्नमेंट में पहली बार गोल्ड मेडल जीता। इसी समय एआइबीए ने 2012 में भारतीय एमेच्योर मुक्केबाजी महासंघ को निलंबित कर दिया। इसका सीधा मतलब था कि नैशनल लेवल के टूर्नमेंट नहीं होने थे। उन्होंने बताया, ‘ऐसा होने के बाद हम सिर्फ स्कूल गेम्स खेल सकते थे। दो वर्ष तक कोई भी बड़ा टूर्नमेंट खेलने को नहीं मिला और आर्थिक स्थिति भी कमजोर होती गई। बहन पढ़ाई कर रही थी और मेरी डायट-ट्रेनिंग का खर्च अलग था। उन्होंने बताया- इस दौरान हालात से इतना मजबूर था कि घर-घर जाकर मैंने न्यूज पेपर बांटना शुरू कर दिया और मां खेतों में काम करने लगी थीं। यहां से बदला करियर :2015 उनके करियर के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। दरअसल, बेंगलुरु में इंडियन आर्मी का ट्रायल था और वह चुन लिए गए। उन्होंने बताया कि यहां चुने जाने के बाद पुणे के आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टिट्यूट में मुझे कुछ टूर्नमेंट्स खेलने को मिले। 2016 में मैं सर्विस टीम में चुना गया। मैं पहले वर्ष इंटर सर्विस टूर्नमेंट का रनरअप रहा, लेकिन अगले वर्ष यानी 2017 में मैंने गोल्ड मेडल जीता। इस दौरान एक वक्त वह भी आया जब दीपक 2017 में सीनियर नैशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में 49 किग्रा भारवर्ग में डेब्यू कर रहे थे और बाउट के तीसरे राउंड में ही अपने जबड़े पर विपक्षी बॉक्सर का करारा पंच लगने के बाद रिंग में बेहोश हो गए। जब उन्हें होश आया तो वह हॉस्पिटल में थे। 3 महीने तक वह टूर्नमें तो छोड़िए ट्रेनिंग भी नहीं कर सके थे, लेकिन उन्होंने यहां भी हार नहीं मानी। पहले इंटरनैशनल टूर्नमेंट में गोल्ड :उन्होंने बताया, ‘मैंने 2018 में इंटर सर्विस टूर्नमेंट के अलावा सीनियर नैशनल का गोल्ड (49KG) जीता। बेस्ट बॉक्सर का अवॉर्ड भी मिला। इस प्रदर्शन के आधार पर मुझे मकरान कप-2019 के लिए पहली बार इंटरनैशनल टीम में चुना गया। मेरी मेहनत रंग ला रही थी। मैं इस टूर्नमेंट के काफी उत्साहित था और गोल्ड मेडल जीता। अब दीपक को अप्रैल में बैंकॉक में आयोजित होने वाले एशियन चैंपियनशिप में खेलना है। भारत का मान बढ़ाने वाले दीपक भोरिया परिवार के साथ.. Post Views: 240