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मुंबई यूनिवर्सिटी सीनेट चुनावों में ‘युवा सेना’ ने लहराया परचम, 10 सीटों पर जीत!

मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से ठीक पहले मुंबई यूनिवर्सिटी सीनेट चुनावों में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) की युवा इकाई युवा सेना ने सिर्फ जीत हासिल नहीं की हैं बल्कि क्लीन स्वीप करते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) को हाशिए पर ढकेल दिया है। आदित्य ठाकरे की अगुवाई वाली युवा सेना की जीत का जहां का जश्न ठाकरे परिवार के निवास ‘मातोश्री’ में मना। इसमें पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे और उनकी पत्नी रश्मि ठाकरे दिखाई दीं। महाराष्ट्र चुनावों से मुंबई यूनिवर्सिटी के सीनेट चुनावों ने निश्चित तौर पर उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना को जोश से भर दिया है। मुंबई यूनिवर्सिटी यानी मुंबई विद्यापीठ सीनेट चुनावों में आदित्य ठाकरे के साथ एक और नाम की चर्चा हो रही है, वे वरुण सरदेसाई हैंं।
मुंबई यूनिवर्सिटी सीनेट चुनावों में जीत का क्रेडिट अगर आदित्य ठाकरे को दिया जा रहा है तो इसमें बड़ी भूमिका वरूण सरदेसाई की भी है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि वह मुंबई की 36 विधानसभा सीटों में किसी एक सीट पर शिवसेना यूबीटी के उम्मीदवार भी हो सकते हैं। उनके जीशान सिद्दीकी के खिलाफ उतरने की चर्चा है।
बता दें कि मुंबई यूनिवर्सिटी पर पिछले दो दशक से शिवसेना का दबदबा है। 2018 के चुनावों में भी शिवसेना ने क्लीन स्वीप किया था, लेकिन इस बार जीत इसलिए अहम मानी जा रही है क्यों शिवसेना के टूटने के बाद ये दूसरे ऐसे चुनाव हैं जहां उद्धव ठाकरे ने अपनी बादशाहत बरकरार रखी है।

बालासाहेब के समय पर बनी पकड़
शिवसेना की युवा इकाई को अभी युवा सेना कहा जाता है। बालासाहेब ठाकरे के समय में इसका नाम भारतीय विद्यार्थी परिषद् था। मुंबई यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनावों पर पिछले सालों में जब रोक लग गई तो अब यूनिवर्सिटी में सिर्फ सीनेट चुनाव होते हैं। इसमें युवा सेना और एबीवीपी के बीच मुकाबला होता है। छह महीने विधानसभा परिषद शिक्षक और ग्रेजुएट सीटों के चुनाव में उद्धव ठाकरे गुट के अनिल परब और जेएम अभ्यंकर जीते थे। ऐसे में यह दूसरा मौका है जब उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना ने अपनी पकड़ साबित की है। मुंबई यूनिवर्सिटी सीनेट चुनाव के नतीजे भले ही सीधे तौर पर बीजेपी से नहीं जुड़े हैं, लेकिन एबीवीपी की बुरी हार उन्हें चिंतित करने वाली है।

पिछले साल होने थे चुनाव!
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) सबसे बड़ा छात्र संगठन है। देश की तमाम यूनिवर्सिटी में इसकी मजबूत उपस्थिति है। एबीवीपी की बुरी हार के पीछे तैयारियों में कमी को बड़ा कारण माना जा रहा है। पहले ये चुनाव पिछले साल होने थे, लेकिन सरकार ने इस चुनावों को टाल दिया था। इसके बाद युवा सेना कोर्ट चली गई थी। कोर्ट ने सितंबर, 2024 चुनाव कराने को कहा था। 22 सितंबर को पोलिंग डेट से 48 घंटे पहले फिर सरकार ने चुनाव टालने की कोशिश की थी, लेकिन कोर्ट ने रोक लगाने से मना कर दिया था। कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद हुए चुनावों के लिए युवा सेना तैयार थी और मजबूती से काम कर रही थी तो वहीं। एबीवीपी उतनी मुस्तैद नहीं थी। सीनेट चुनावों में ग्रेजुएट वोट करते हैं। इस बार के चुनावों में करीब 13,000 वोटर थे। चुनावों में 7200 के करीब वोट पड़े थे। इनमें 6680 वोटों को वैध माना गया था। अधिकांश वर्ग के सीनेट चुनावों में युवा सेना को जहां 5 हजार से अधिक वोट मिले तो वहीं एबीवीपी के कैंडिडेट 1000 के नीचे और या फिर इसके आसपास ही पहुंच पाए, ऐसे में युवा सेना ने बड़ी जीत दर्ज पाई।