दिल्लीब्रेकिंग न्यूज़महाराष्ट्रमुंबई शहरशहर और राज्य एंटीलिया केस: हिरेन की हत्या का आरोपी निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे सेवा से हुआ बर्खास्त 12th May 2021 networkmahanagar 🔊 Listen to this मुंबई: मुंबई पुलिस ने निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे को स्थायी रूप से बर्खास्त कर दिया गया है। मुंबई पुलिस आयुक्त के कार्यालय ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए वाजे को बर्खास्त करने का आदेश जारी किया। सचिन वाजे को एनआईए ने उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक सामग्री से लैस कार मिलने और कारोबारी मनसुख हिरेन की मौत के मामले में 13 मार्च को उसे गिरफ्तार कर लिया था। वाजे का नाम सामने आने के बाद उसे निलंबित कर दिया गया था, वहीं अब उसे पूरी तरह से सेवा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। सचिन वाजे (49) फिलहाल न्यायिक हिरासत में है। वह पुलिस अधिकारी के तौर पर मुंबई शहर की कुछ सबसे बड़ी जांच का जिम्मा संभाल चुका है। वाजे की बर्खास्तगी का आदेश मुंबई पुलिस के मुखिया हेमंत नागराले द्वारा मंगलवार शाम को जारी किया गया। मुंबई पुलिस के एक बयान में कहा गया है, यह आदेश आज पुलिस आयुक्त, ग्रेटर मुंबई द्वारा भारत के संविधान की धारा 311 (2) (बी) के प्रावधानों के तहत जारी किया गया है। गौरतलब है कि 24-25 फरवरी की रात दक्षिण मुंबई के पैडर रोड स्थित एंटीलिया के बाहर एक स्कॉर्पियो गाड़ी लावारिस खड़ी मिली थी। 25 फरवरी की दोपहर पुलिस ने कार से 20 जिलेटिन विस्फोटक की छड़ें बरामद की थीं। मामले की जांच उस समय मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच में तैनात सचिन वाजे ने अपने हाथ में ले ली थी। बाद में जांच एनआईए ने अपने हाथ में ले ली। 5 मार्च को इस स्कॉर्पियो के मालिक मनसुख हिरेन का शव बरामद हुआ। इसके बाद महाराष्ट्र एटीएस ने मनसुख की हत्या का मामला दर्ज करके जांच शुरू की। एनआईए ने 13 मार्च को सचिन वाजे को गिरफ्तार किया। बाद में दोनों मामलों की जांच एनआईए को ही सौंप दी गई। क्या है पूरा मामला? इस मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की जांच में अब तक जो भी कुछ सामने आया है उससे पता चलता है कि पूरे मामले की साजिश असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर (API) सचिन वाजे के ठाणे स्थित घर पर रची गई थी। पुलिस मुख्यालय में स्कॉर्पियो के मालिक मनसुख हिरेन का पहले से ही आना-जाना था। इस केस में वाजे की भूमिका सामने आने के बाद उसे एनआईए ने 13 मार्च को गिरफ्तार कर लिया था। बाद में मुंबई के तत्कालीन कमिश्नर परमबीर सिंह का भी तबादला कर दिया गया। परमबीर सिंह ने तबादले के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखकर बड़ा खुलासा किया था। परमबीर सिंह ने कहा था कि गृहमंत्री अनिल देशमुख ने सचिन वाजे को कई बार घर पर मिलने के लिए बुलाया। गृहमंत्री ने वाजे को हर महीने 100 करोड़ रुपये की वसूली का लक्ष्य दिया था। गृहमंत्री ने वाजे को बताया था कि मुंबई में लगभग 1,750 बार, रेस्तरां और अन्य प्रतिष्ठान हैं। प्रत्येक से हर महीने 2-3 लाख अगर लिए जाएं तो 40-50 करोड़ का जुगाड़ हो जाएगा। गृहमंत्री ने कहा था कि बाकी बची रकम अन्य स्रोतों से बनाया जा सकता है। परमबीर सिंह ने अपने इस पत्र में वसूली को लेकर एसपी पाटील नाम के एक पुलिस अधिकारी के साथ हुए उनके बातचीत का जिक्र भी किया था। परमबीर सिंह और एसपी पाटील के बीच 16 और 19 मार्च के बीच बातचीत हुई थी। हालांकि, गृहमंत्री अनिल देशमुख ने इन दावों को गलत बताया था और परमबीर सिंह पर मानहानि का दावा करने की बात कही थी। बाद में अनिल देशमुख ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। एंटीलिया मामले के बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक भूचाल आ गया था। महाराष्ट्र सरकार ने जब मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह का ट्रांसफर किया तो उसके बाद उन्होंने गृहमंत्री अनिल देशमुख पर यह आरोप लगाया था कि वे सचिन वाजे को शहर से 100 करोड़ की वसूली करने को कहते थे।परमवीर सिंह के आरोपों के बाद राजनीति और गर्मा गई और अंतत: अनिल देशमुख को अपना इस्तीफा देना पड़ा था। वाजे, काजी ने मांगे पैसे: छाबड़िया धोखाधड़ी मामले में गिरफ्तारी के बाद हाल ही में जमानत पर छूटे दिलीप छाबड़िया ने दावा किया है कि उन्हें उनकी कंपनी के पूर्व हिस्सेदार ने धोखे से इस मामले में फंसाया था। एक बयान जारी कर छाबड़िया ने कहा कि कंपनी उनके नाम पर थी लेकिन इसकी 52 फीसदी हिस्सेदारी किरन मूलचंद के पास थी। मूलचंद के धोखे के चलते उनका सपना एक भयानक सपने में बदल गया। छाबड़िया का आरोप है कि मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह और सचिन वाजे के साथ मिलीभगत कर मूलचंद ने उन्हें फंसाया। मामले में कपिल शर्मा के साथ उनके विवाद का इस्तेमाल किया गया। छाबड़िया का दावा है कि सचिन वाजे और रियाजुद्दीन काजी ने उनके परिवार वालों को भी मामले में गिरफ्तार करने की धमकी देकर 10 से 25 करोड़ रुपए तक रिश्वत मांगी और लगातार पैसों को लेकर मोलभाव करते रहे। Post Views: 174