ब्रेकिंग न्यूज़महाराष्ट्रमुंबई शहरशहर और राज्य फर्जी पुलिस अधिकारी बन लोगों को दिलाते थे जमानत..! गैंग का भंडाफोड़ 27th October 2018 networkmahanagar 🔊 Listen to this नेटवर्क महानगर (राजेश जायसवाल) : मुंबई , पुलिस की नौकरी हासिल करने के लिए किसी शख्स को कड़ी मेहनत और लगन के साथ हर परीक्षा में पास होना पड़ता है। तब कहीं जाकर उसका चयन पुलिस विभाग में हो पाता है। वहीं किसी पुलिस थाने का वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक बनने के लिए तो और मेहनत करनी होती है। लेकिन महाराष्ट्र में एक ऐसे रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है जो खुद को किसी थाने का वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक बताकर लगभग 150 लोगों को जमानत दिलाई थी। क्राइम ब्रांच के डीसीपी दिलीप सावंत ने बताया कि उन्होंने ऐसे 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। यह गैंग नकली दस्तावेजों के आधार पर लोगों को विभिन्न अदालत से जमानत दिलवाने का काम करता था। इसके लिए यह गैंग नकली राशन कार्ड, हाउस एग्रीमेंट, मैजिस्ट्रेट और सेशन कोर्ट की नकली मुहर, निजी कंपनी की सैलरी स्लिप, विद्यालय परित्याग प्रमाणपत्र और पुलिस थानों की रबर मुहर का इस्तेमाल करता था। डीसीपी ने बताया कि इन आरोपियों के पास से जो कागजात मिले हैं उससे पता चलता है कि इन्होंने महाराष्ट्र के शिवाजी नगर, तिलक नगर, चेंबूर, धारावी, माटुंगा, वाशी, वाशिम और बीड पुलिस थानों के वरिष्ठ इंस्पेक्टरों के न केवल नकली हस्ताक्षर किए बल्कि नकली सील और रबर की मुहरें भी बनवाई थीं। क्राइम ब्रांच के डीसीपी सावंत ने बताया कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर गैंग ने जिला एवं सत्र न्यायालय से 200 लोगों की और मेट्रोपोलिटन अदालत से 300 लोगों को जमानत दिलवाई थी। वरिष्ठ इंस्पेक्टर विनायक मेर, अश्वनाथ खेडेकर और अमित पवार की जांच में इस रैकेट का भंडाफोड़ हुआ। एक अधिकारी के अनुसार, किसी वारदात में भूमिका होने के बाद आरोपी की गिरफ्तारी होती है। इसके कुछ दिनों या महीनों बाद वह जमानत के लिए अदालत में अर्जी देता है। यदि उसे अदालत से जमानत मिल गई तो, वह तभी जेल से बाहर आ सकता है जब उसे कोई जमानतदार मिले। अधिकारी ने बताया कि कई आरोपियों को जब जमानतदार नहीं मिलते हैं तो फर्जी जमानतदार रैकेट से जुड़े लोग उनसे संपर्क करते हैं। यह 25 , 50 हजार रुपये से लेकर कई मामलों में एक लाख रुपये लेकर जमानत दिलवाते हैं। जमानतदार को अदालत में वकील के जरिए जज के सामने दस्तावेज जमा करवाने होते हैं। इस काम के लिए गैंग फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल करते थे। गैंग के सदस्य खुद वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक की रिपोर्ट तैयार करते, खुद हस्ताक्षर करते, थाने की नकली मुहर और सील लगाते और अदालती क्लर्क को दे देते थे। जिससे कि आरोपी को जमानत मिल जाया करती थी। क्राइम ब्रांच की टीम यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या जुडिशियल क्लर्क भी इस खेल में शामिल हैं या फिर वो अपने कार्य में लापरवाही बरतते हुए ऐसा होने दे रहे थे। Post Views: 225