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अयोध्या फैसला: मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने उठाया 10 सवाल, किया रिव्यू पिटिशन दाखिल करने का ऐलान

लखनऊ: अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने का ऐलान करते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि हमें बाबरी मस्जिद के बदले 5 एकड़ की जमीन मंजूर नहीं है। लखनऊ में पर्सनल लॉ बोर्ड ने मीटिंग के बाद मीडिया से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कई बिंदुओं पर सवाल उठाए। बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना राबे हसन नदवी की अध्यक्षता में हुई इस मीटिंग के बाद बोर्ड के सदस्यों ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले में कई विरोधाभास हैं। जानिए- किन १० तर्कों के आधार पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात कर रहा पर्सनल लॉ बोर्ड…

1) शीर्ष अदालत में मुस्लिम पक्ष के वकील रहे जफरयाब जिलानी की मौजूदगी में बोर्ड के सदस्य एसक्यूआर इलयासी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि बाबर के सेनापति मीरबाकी की ओर से इस मस्जिद का निर्माण कराया गया था।

2) 1857 से 1949 तक बाबरी मस्जिद की तीन गुंबदों वाली इमारत और अंदरुनी हिस्सा मुस्लिमों के कब्जे में माना गया है। फिर फैसले में मंदिर के लिए जमीन क्यों दी गई।

3) कोर्ट ने माना है कि बाबरी मस्जिद में आखिरी नमाज 16 दिसंबर, 1949 को पढ़ी गई थी यानी वह मस्जिद के रूप में थी। फिर भी इस पर मंदिर के दावे को क्यों स्वीकार किया गया।

4) सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि 22-23 दिसंबर, 1949 की रात को चोरी से या फिर जबरदस्ती मूर्तियां रखी गई थीं। इसके बाद इन मूर्तियों को देवता नहीं माना जा सकता क्योंकि इसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई थी।

5) गुंबद के नीचे कथित रामजन्मभूमि पर पूजा की बात नहीं कही गई है। ऐसे में यह जमीन फिर रामलला विराजमान के पक्ष में क्यों दी गई।

6। सुप्रीम कोर्ट ने खुद अपने फैसले में कहा है कि रामजन्मभूमि को पक्षकार नहीं माना जा सकता। फिर उसके आधार पर ही फैसला क्यों दिया गया।

7) सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि 6 दिसंबर, 1992 में मस्जिद को गिराया जाना गलत था। इसके बाद भी मंदिर के लिए फैसला क्यों दिया गया।

8) कोर्ट ने फैसले में कहा कि हिंदू सैकड़ों साल से पूजा करते रहे हैं, इसलिए पूरी जमीन रामलला को दी जाती है, जबकि मुस्लिम भी तो वहां इबादत करते रहे हैं।

9) जमीन हिंदुओं को दी गई है इसलिए 5 एकड़ जमीन दूसरे पक्ष को दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के 142 का इस्तेमाल कर यह बात कही। इसमें वक्फ ऐक्ट का ध्यान नहीं रखा गया, उसके मुताबिक मस्जिद की जमीन कभी बदली नहीं जा सकती है।

10) एएसआई के आधार पर ही कोर्ट ने यह माना कि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण नहीं हुआ था। ऐसे में कोर्ट का यह फैसला समझ से परे है और गैरमुनासिब है।

बोर्ड ने शरीयत का भी दिया हवाला, कहीं और नहीं लेंगे मस्जिद
मीटिंग में मौजूद रहे पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने भी शरीयत का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत के फैसले पर सवाल उठाया। रहमानी ने कहा, मस्जिद जहां बना दी जाती है, वह मस्जिद ही रहती है। इसकी गुंजाइश नहीं है कि हम मस्जिद के लिए कोई और जगह कबूल कर लें। यह इंसाफ के तकाजे के बिल्कुल खिलाफ है कि दूसरे पक्ष को विवादित भूमि के अलावा कहीं और जगह दी जाए।