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कारगिल विजय दिवस: ‘अथर्व फाउंडेशन’ ने मनाया ऑपरेशन विजय की २०वीं वर्षगांठ…

षणमुखानंद सभागृह में ‘कारगिल विजय दिवस’ के २०वीं वर्षगांठ पर
लोगों को
सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस

मुंबई, 26 जुलाई को माटुंगा स्थित षणमुखानंद सभागृह में ‘कारगिल विजय दिवस’ के 20वें सालगिरह पर ‘अथर्व फाउंडेशन’ की तरफ से विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जिसे संबोधित करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कहा कि भारत ने कभी भी किसी भी देश पर आक्रमण नहीं किया है, पर यदि कोई हमारी देश की तरफ आंख उठाकर देखेगा, तो हमारे भारतीय सैनिक उनके हमलों का प्रत्युत्तर देने की क्षमता रखते हैं। ऑपरेशन विजय के समय पाकिस्तान को लगा था कि भारतीय सैनिक उन तक नहीं पहुंच पाएंगे, परंतु भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान देकर ऑपरेशन विजय में सफलता प्राप्त की। इसके कारण ऑपरेशन विजय एक शौर्य का रिकॉर्ड बना है। फड़नवीस ने कहा कि देश के सैनिक संसाधनों से उतना बड़ा नहीं होता, जितना देश की जनता के सपोर्ट से। उसे लगता है कि हम शहीद होंगे तो क्या, देश की जनता हमारे परिवारों के साथ खड़ी है। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार की परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए हमारे देश का सैनिक बल सक्षम है। इन्होंने हमेशा ही तिरंगे को ऊंचा रखा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यों की प्रसंशा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत विकास की दिशा में कूच कर रहा है। यह काम केवल देश के सुरक्षित और बलशाली होने के कारण ही संभव हो पाया है। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा त्याग और वीरता का प्रदर्शन किया है और भारतीय सैनिक भी त्याग और वीरता से काम करते हैं। इस कारण महाराष्ट्र सरकार इन सैनिकों के साथ हमेशा से खड़ी है। उन्होंने कहा कि इन सभी सैनिकों के प्रति हमारा भी कोई कर्तव्य बनता है। इस भावना को हमेशा प्राथमिकता के साथ याद रखना चाहिए। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र के शहीद सैनिक और अधिकारियों के परिजनों को दिए जाने वाली सहायता राशि में बड़ी वृद्धि की गई है। अब यह पांच लाख से बढ़ाकर एक करोड़ रुपए तक कर दी गई है। सीएम फड़नवीस ने देशवाशियों से आह्वान किया कि सैनिक और सेना अधिकारियों के परिजनों के मन में यह विश्वास पैदा करना होगा कि ये हम सब हमेशा उनके साथ है और उनका समर्थन करते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार की ओर से शहीदों के परिवारों को दो एकड़ भूमि देने का निर्णय लिया गया है। इसकी खरीदी पर स्टंप ड्यूटी भी माफ कर दी गई है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय दो वर्ष पहले किया गया है। मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार देश की 15 अगस्त स्वतंत्रता दिन और 26 जनवरी प्रजातंत्र दिवस को सरकारी कार्यक्रमों में शहीदों के परिजनों को ससम्मान आमंत्रित करती है।
इस अवसर पर ‘अथर्व फाउंडेशन’ की ओर से बनाए गए कारगिल विजय दिवस की डॉक्यूमेंट्री दिखाई भी गई। मुख्यमंत्री ने संस्था के अध्यक्ष सुनील राणे के इस प्रयास की सराहना की। इस मौके पर उनकी पत्नी वर्षा राणे भी मौजूद थीं।
कार्यक्रम में राज्य के शिक्षा मंत्री आशीष शेलार, मुंबई भाजपा अध्यक्ष व विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा, विधायक राजपुरोहित, लेफ्टिनेंट जनरल एस के पराशर, विंग कमांडर जगमोहन नाथ, प्रशासनिक अधिकारी संजय भाटिया, ऑपरेशन विजय में हुतात्मा हुए सुरक्षा बल के अधिकारियों के परिजन उपस्थित थे। इस दौरान मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने लोगों को कारगिल विजय दिवस की शुभकामनाएं दी!

कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि: कारगिल युद्ध जो कारगिल संघर्ष के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल जिले से प्रारंभ हुआ था। 26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था। इसी की याद में ‘26 जुलाई’ अब हर वर्ष कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का, जो हँसते-हँसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया। इस युद्ध का कारण था बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित आतंकवादियों का लाइन ऑफ कंट्रोल यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर प्रवेश कर कई महत्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क का नियंत्रण हासिल कर सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर कर हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा पैदा करना। पूरे दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध (विदेशी मीडिया ने इस युद्ध को सीमा संघर्ष प्रचारित किया था) में भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों को मार भगाया था। स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया जाता है!
हिमालय से ऊँचा था साहस उनका: इस युद्ध में हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है। इन रणबाँकुरों ने भी अपने परिजनों से वापस लौटकर आने का वादा किया था, जो उन्होंने निभाया भी, मगर उनके आने का अन्दाज निराला था। वे लौटे, मगर लकड़ी के ताबूत में। उसी तिरंगे मे लिपटे हुए, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने उठाई थी। जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जाँबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था।

भारत के अमर वीर सपूत : –

कैप्टन विक्रम बत्रा: ‘ये दिल माँगे मोर’- हिमाचलप्रदेश के छोटे से कस्बे पालमपुर के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा उन बहादुरों में से एक हैं, जिन्होंने एक के बाद एक कई सामरिक महत्व की चोटियों पर भीषण लड़ाई के बाद फतह हासिल की थी। यहाँ तक कि पाकिस्तानी लड़ाकों ने भी उनकी बहादुरी को सलाम किया था और उन्हें ‘शेरशाह’ के नाम से नवाजा था। मोर्चे पर डटे इस बहादुर ने अकेले ही कई शत्रुओं को ढेर कर दिया। सामने से होती भीषण गोलीबारी में घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी डेल्टा टुकड़ी के साथ चोटी नं. 4875 पर हमला किया, मगर एक घायल साथी अधिकारी को युद्धक्षेत्र से निकालने के प्रयास में माँ भारती का लाड़ला विक्रम बत्रा 7 जुलाई की सुबह शहीद हो गया। अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को अपने अदम्य साहस व बलिदान के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैनिक पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
कैप्टन अनुज नायर: 17 जाट रेजिमेंट के बहादुर कैप्टन अनुज नायर टाइगर हिल्स सेक्टर की एक महत्वपूर्ण चोटी ‘वन पिंपल’ की लड़ाई में अपने 6 साथियों के शहीद होने के बाद भी मोर्चा सम्भाले रहे। गम्भीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अतिरिक्त कुमुक आने तक अकेले ही दुश्मनों से लोहा लिया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना इस सामरिक चोटी पर भी वापस कब्जा करने में सफल रही। इस वीरता के लिए कैप्टन अनुज को मरणोपरांत भारत के दूसरे सबसे बड़े सैनिक सम्मान ‘महावीर चक्र’ से नवाजा गया।

मेजर पद्मपाणि आचार्य: राजपूताना राइफल्स के मेजर पद्मपाणि आचार्य भी कारगिल में दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए। उनके भाई भी द्रास सेक्टर में इस युद्ध में शामिल थे। उन्हें भी इस वीरता के लिए ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय: 1/11 गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय की बहादुरी की इबारत आज भी बटालिक सेक्टर के ‘जुबार टॉप’ पर लिखी है। अपनी गोरखा पलटन लेकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में ‘काली माता की जय’ के नारे के साथ उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में लड़ते हुए मनोज पांडेय ने दुश्मनों के कई बंकर नष्ट कर दिए। गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद मनोज अंतिम क्षण तक लड़ते रहे। भारतीय सेना की ‘साथी को पीछे ना छोडने की परम्परा’ का मरते दम तक पालन करने वाले मनोज पांडेय को उनके शौर्य व बलिदान के लिए मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

कैप्टन सौरभ कालिया: भारतीय वायुसेना भी इस युद्ध में जौहर दिखाने में पीछे नहीं रही, टोलोलिंग की दुर्गम पहाडियों में छिपे घुसपैठियों पर हमला करते समय वायुसेना के कई बहादुर अधिकारी व अन्य रैंक भी इस लड़ाई में दुश्मन से लोहा लेते हुए शहीद हुए। सबसे पहले कुर्बानी देने वालों में से थे कैप्टन सौरभ कालिया और उनकी पैट्रोलिंग पार्टी के जवान। घोर यातनाओं के बाद भी कैप्टन कालिया ने कोई भी जानकारी दुश्मनों को नहीं दी।

स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा: स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा का विमान भी दुश्मन गोलीबारी का शिकार हुआ। अजय का लड़ाकू विमान दुश्मन की गोलीबारी में नष्ट हो गया, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पैराशूट से उतरते समय भी शत्रुओं पर गोलीबारी जारी रखी और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता इस युद्ध में पाकिस्तान द्वारा युद्धबंदी बनाए गए। वीरता और बलिदान की यह फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती। भारतीय सेना के विभिन्न रैंकों के लगभग 30,000 अधिकारी व जवानों ने ऑपरेशन विजय में भाग लिया।

युद्ध के पश्चात पाकिस्तान ने इस युद्ध के लिए कश्मीरी आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया था, जबकि यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि पाकिस्तान इस पूरी लड़ाई में लिप्त था। बाद में नवाज शरीफ और शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पाक सेना की भूमिका को स्वीकार किया था। यह युद्ध हाल के ऊँचाई पर लड़े जाने वाले विश्व के प्रमुख युद्धों में से एक है। सबसे बड़ी बात यह रही कि दोनों ही देश परमाणु हथियारों से संपन्न हैं। पर कोई भी युद्ध हथियारों के बल पर नहीं लड़ा जाता है, युद्ध लड़े जाते हैं साहस, बलिदान, राष्ट्रप्रेम व कर्त्तव्य की भावना से और हमारे भारत में इन जज्बों से भरे युवाओं की कोई कमी नहीं है। मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानी भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर इनकी यादें हमारे दिलों में हमेशा- हमेशा के लिए बसी रहेंगी…!

‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा…