उत्तर प्रदेशदिल्लीदेश दुनियाब्रेकिंग न्यूज़महाराष्ट्रमुंबई शहरशहर और राज्य कोरोना वायरस: निज़ामुद्दीन मरकज़ के मरीज़ों की बाढ़ से कैसे निपटेगी सरकार? 1st April 2020 networkmahanagar 🔊 Listen to this निज़ामुद्दीन में तबलीग़ी जमात का केंद्र कैसे बना ‘हॉटस्पॉट’ नयी दिल्ली: दिल्ली का निज़ामुद्दीन कोरोना संक्रमण को लेकर सुर्ख़ियों में आ गया है। वजह है मार्च के महीने में यहां हुआ एक धार्मिक आयोजन। निज़ामुद्दीन में मुस्लिम संस्था तबलीग़ी जमात का हेडक्वॉर्टर हैं जहां ये आयोजन मार्च महीने में चल रहा था। इस धार्मिक आयोजन में हज़ारों लोग शामिल हुए थे। देशभर में लागू लॉकडाउन के बावजूद बड़ी संख्या में लोग वहीं रह रहे थे।हालांकि तबलीग़ी जमात ने प्रेस रिलीज जारी करके ये बताया है कि ‘जनता कर्फ़्यू’ के एलान के साथ ही उन्होंने अपना धार्मिक कार्यक्रम रोक दिया था। लेकिन पूरी तरह लॉकडाउन की घोषणा के कारण बड़ी संख्या में लोग वापस नहीं जा सके।दिल्ली पुलिस ने इस इलाक़े की घेराबंदी कर दी है। पुलिस का कहना है कि लोग बड़ी तादाद में बिना किसी अनुमति के यहाँ पर इकट्ठा हुए थे।वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि जब हमें पता चला कि इस तरह का आयोजन हुआ है तो फिर हमने इस मामले में लॉकडाउन का उल्लंघन करने के लिए नोटिस जारी किया। कई लोगों को कोरोना वायरस के लक्षण दिखने के बाद अस्पताल ले जाया गया है और उनका टेस्ट किया जा रहा है।रविवार देर रात ये सूचना मिलने के बाद कि कई लोग यहां एक साथ रह रहें हैं जिसमें कुछ विदेशी भी हैं, दिल्ली पुलिस और सीआरपीएफ के अधिकारी मेडिकल टीम लेकर यहां पहुँचे। दिल्ली पुलिस ने पूरे इलाक़े को सील कर दिया है जिसमें तबलीग़ी जमात का मुख्य सेंटर शामिल है। इस केंद्र से सटा हुआ ही निज़ामुद्दीन पुलिस स्टेशन हैं और बगल में ही ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह भी है। अधिकारियों का कहना है कि वे लोगों की पहचान करके उन्हें अस्पताल में क्वारंटीन के लिए भेज रहे हैं। ये पूरा मामला इसलिए भी सुर्खियों में आया क्योंकि तेलंगाना सरकार ने माना है कि उनके यहां जिन लोगों की कोरोना की वजह से मौत हुई है उनमें से 6 लोग दिल्ली के निज़ामुद्दीन में धार्मिक आयोजन में शामिल हुए थे। दिल्ली सरकार पूरे मामले पर एक बैठक कर रही है। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के मुताबिक़ तबलीग़ी जमात के हेडक्वाटर में रह रहे 24 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। 700 लोगों को क्वारंटीन में रखा गया है। 335 लोगों को अस्पताल में निगरानी में रखा गया। दिल्ली सरकार ने पूरे मामले में आयोजकों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ करने की सिफ़ारिश भी की है। दिल्ली सरकार का दावा है कि जिस वक़्त ये आयोजन चल रहे थे तब दिल्ली में कई ऐसी धाराएं लागू थी जिसमें 5 से ज्यादा लोग एक जगह इकट्ठा नहीं रह सकते थे।निज़ामुद्दीन में मौजूद 1500-1700 लोगों में से तकरीबन 1000 लोगों को वहां से निकाल लिया गया था। आगे भी स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी काम पर लगे थे।स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने सोमवार को केंद्र सरकार की कोरोना ब्रीफिंग के दौरान बताया कि धार्मिक आयोजन के शामिल लोगों की टेस्टिंग, क्वारंटीन में रखने की सुविधा और बाक़ी जांच सब प्रोटोकॉल के मुताबिक़ ही होगा।गृह मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक़ आयोजकों पर क़ानून के मुताबिक़ कार्रवाई की जाएगी। क्या है तबलीग़ी जमात?ये एक धार्मिक संस्था है जो 1920 से चली आ रही है। दिल्ली में निज़ामुद्दीन इलाक़े में इसका हेडक्वॉर्टर है, जिसे मरक़ज़ भी कहते हैं। मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे जफ़र सरेशवाला तबलीग़ी जमात से सालों से जुड़े हैं। उनके मुताबिक़ ये विश्व की सबसे बड़ी मुसलमानों की संस्था है। इसके सेंटर 140 देशों में हैं।भारत में सभी बड़े शहरों में इसका मरक़ज़ है यानी केंद्र है। इन मरक़ज़ों में साल भर इज़्तेमा चलती रहती हैं। मतलब लोग आते-जाते रहते हैं।कोरोना संक्रमण के पॉजिटिव मामले पाए जाने की खब़र फैली तब भी वहां इज्तेमा चली रही थी। इज्तेमा के दौरान हर राज्य से हज़ारों की संख्या में लोग आते हैं। हर इज्तेमा 3-5 दिन तक चलती है।मार्च के महीने में भी यहां कई राज्यों से लोग इज्तेमा के लिए आए थे। जिसमें कई विदेशी भी थे। भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी इज्तेमा उसी वक़्त चल रहा था।हालांकि विदेशों में कई जगह पर कोरोना के मामले बढ़ते ही इस तरह के आयोजन पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी। लेकिन दिल्ली में ऐसा नहीं हुआ? तबलीग़ी जमात का पक्षताज़ा घटनाक्रम को देखते हुए सोमवार देर रात तबलीग़ी जमात ने एक प्रेस नोट जारी किया है। प्रेस नोट के मुताबिक़ उनका ये कार्यक्रम साल भर पहले से तय था। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ़्यू का एलान किया, तब तबलीग़ी जमात ने अपने यहाँ चल रहे कार्यक्रम तुरंत रोक दिया था। लेकिन पूर्ण लॉकडाउन के एलान के पहले भी कुछ राज्यों ने अपनी तरफ से ट्रेन और बस सेवाएं रोक दी थी। इस दौरान जहां के लोग वापस जा सकते थे उनको वापस भेजने का पूरा बंदोबस्त तबलीग़ी जमात प्रबंधन ने किया। इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री ने पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी। जिसकी वजह से कई लोग वापस नहीं जा सके और वो वहीं मरक़ज़ में रह रहे थे। प्रेस रिलीज़ में ऐसे लोगों की तादाद 1000 के क़रीब बताई गई है। ये पूरा मामला पुलिस तक 24 मार्च को पहुंचा जब स्थानीय पुलिस ने मरक़ज़ को बंद करने के लिए नोटिस भेजा।तबलीग़ी जमात के मुताबिक़ पुलिस के इस नोटिस का उन्होंने उसी दिन जवाब दिया कि आयोजन को रोक दिया गया है और 1500 वापस चले गए हैं। लेकिन तकरीबन 1000 लोग फंसे हैं। इस चिट्ठी के बाद, 26 तारीख को एसडीएम के साथ एक मीटिंग हुई। अगले दिन 6 लोगों को टेस्ट के लिए ले जाया गया। फिर 28 मार्च को 33 लोगों को टेस्ट के लिए ले जाया गया। हमने उस वक्त भी स्थानीय प्रशासन से लोगों को अपने घर वापस भेजने के लिए गाड़ियों के इंतजाम करने की गुज़ारिश की थी। 28 मार्च को ही एसीपी लाजपत नगर की तरफ से क़ानूनी कार्रवाई का एक नोटिस भी आया, जिसका अगले दिन यानी 29 मार्च को ही हमने जवाब भेजा और 30 मार्च यानी सोमवार को पूरा मामला मीडिया में आ गया। तबलीग़ी जमात का विदेशी कनेक्शनये वही तबलीग़ी जमात है जिसका एक धार्मिक आयोजन मलेशिया में कुआलालंपुर की एक मस्जिद में 27 फ़रवरी से एक मार्च तक हुआ था। ऐसी कई मीडिया रिपोर्ट भी सामने आई हैं जिनसे पता चलता है कि इसी आयोजन में आए लोगों से दक्षिण-पूर्वी एशिया के कई देशों में कोरोना वायरस का संक्रमण फैला।अल ज़जीरा की रिपोर्ट के मुताबिक़ मलोशिया में कोरोना संक्रमण के कुल जितने मामले पाए गए हैं उनमें से दो-तिहाई तबलीग़ी जमात के आयोजन का हिस्सा थे। ब्रुनेई में कुल 40 में से 38 लोग इसी मस्जिद के आयोजन में शामिल होने वाले कोरोना से संक्रमित पाए गए थे।सिंगापुर, मंगोलिया समेत कई देशों में इस मस्जिद के आयोजन से कोरोना फैला था। पाकिस्तान के ‘डॉन अखबार’ के मुताबिक़ तबलीग़ी जमात के आयोजन में शामिल कई लोगों में उनके देश में भी कोरोना संक्रमण पाया गया है। अखबार के मुताबिक़ मरक़ज में शामिल 35 लोगों की स्क्रीनिंग की गई है, जिनमें से 27 लोगों को कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। पाकिस्तान में भी तकरीबन 1200 लोगों ने इस आयोजन में शिरकत की थी, जिनमें 500 लोग विदेशों से आए थे।जब कि इस महीने की शुरुआत में ही दिल्ली सरकार ने किसी भी तरह के धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आयोजनों पर 31 मार्च तक के लिए पाबंदी लगा दी थी। इसके अलावा विरोध-प्रदर्शनों में 50 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर भी रोक लगा दी गई थी।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस के संक्रमण के ख़तरे को देखते हुए 25 मार्च से 21 दिनों की लॉकडाउन की घोषणा कर रखी है। लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों पर पुलिस ड्रोन से नज़र रख रही है। ऐसे में अब सवाल ये उठ रहा है कि आने वाले वक्त के लिए दिल्ली सरकार और यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था कितनी तैयार है?दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के मुताबिक 36 घंटे के अभियान के बाद बुधवार तड़के निज़ामुद्दीन के आलमी मरकज़ की बिल्डिंग को पूरी तरह खाली करा लिया गया है।जहां से कुल 2346 लोगों को निकाला गया है, इनमें खांसी, बुखार जैसे लक्षणों से पीड़ित 536 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है और बाकी 1810 लोगों को क्वारंटीन में रखा गया है। कब हुआ तबलीग़ी जमात का जन्मतबलीग़ी जमात का जन्म भारत में 1926-27 के दौरान हुआ। एक इस्लामी स्कॉलर मौलाना मुहम्मद इलियास ने इस काम की बुनियाद रखी थी। परंपराओं के मुताबिक़, मौलाना मुहम्मद इलियास ने अपने काम की शुरुआत दिल्ली से सटे मेवात में लोगों को मज़हबी शिक्षा देने के ज़रिए की। बाद में यह सिलसिला आगे बढ़ता गया।तबलीग़ी जमात की पहली मीटिंग भारत में 1941 में हुई थी। इसमें 25,000 लोग शामिल हुए थे। 1940 के दशक तक जमात का कामकाज अविभाजित भारत तक ही सीमित था, लेकिन बाद में इसकी शाखाएं पाकिस्तान और बांग्लादेश तक फैल गईं। जमात का काम तेज़ी से फैला और यह आंदोलन पूरी दुनिया में फैल गया।तबलीग़ी जमात का सबसे बड़ा जलसा हर साल बांग्लादेश में होता है। जबकि पाकिस्तान में भी एक सालाना कार्यक्रम रायविंड में होता है। इसमें दुनियाभर के लाखों मुसलमान शामिल होते हैं।मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे ज़फ़र सरेशवाला तबलीग़ी जमात से सालों से जुड़े हैं। उनके मुताबिक़ ये विश्व की सबसे बड़ी मुसलमानों की संस्था है। इसके सेंटर 140 देशों में हैं।भारत में सभी बड़े शहरों में इसका मरकज़ है यानी केंद्र है। इन मरकज़ों में साल भर इज़्तेमा (धार्मिक शिक्षा के लिए लोगों का इकट्ठा होना) चलते रहते हैं। मतलब लोग आते-जाते रहते हैं।तबलीग़ी जमात का अगर शाब्दिक अर्थ निकालें तो इसका अर्थ होता है, आस्था और विश्वास को लोगों के बीच फैलाने वाला समूह। इन लोगों का मक़सद आम मुसलमानों तक पहुंचना और उनके विश्वास-आस्था को पुनर्जिवित करना है। ख़ासकर आयोजनों, पोशाक और व्यक्तिगत व्यवहार के मामले में।स्थापना के बाद से तबलीग़ी जमात का प्रसार होता गया। इसका प्रसार मेवात से दूर के प्रांतों में भी हुआ।तबलीग़ी जमात की पहली मीटिंग भारत में 1941 में हुई थी। इसमें 25,000 लोग शामिल हुए थे। 1940 के दशक तक जमात का कामकाज अविभाजित भारत तक ही सीमित था, लेकिन बाद में जमात का काम तेज़ी से फैला और यह आंदोलन पूरी दुनिया में फैल गया।फ़िलहाल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा अमरीका और ब्रिटेन में भी इसका संचालित बेस है। जिससे भारतीय उपमहाद्वीप के हज़ारों लोग जुड़े हुए हैं। इसके अलावा इसकी पहुंच इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर में भी है। जमात के आयोजन में क्या होता है?जमात का काम सुबह से ही शुरू हो जाता है। सुबह होने के साथ ही जमात को कुछ और छोटे-छोटे समूहों में बांट दिया जाता है। प्रत्येक समूह में आठ से दस लोग होते हैं। इन लोगों का चुनाव जमात के सबसे बड़े शख़्स द्वारा किया जाता है।इसके बाद प्रत्येक ग्रुप को एक मुकम्मल जगह जाने का आदेश दिया जाता है। इस जगह का निर्धारण इस बात पर होता है कि उस ग्रुप के प्रत्येक सदस्य ने इस काम के लिए कितने पैसे रख रखे हैं। इसके बाद शाम के वक़्त जो नए लोग जमात में शामिल होते हैं उनके लिए इस्लाम पर चर्चा होती है। अंत में सूरज छिप जाने के बाद क़ुरान का पाठ किया जाता है और मोहम्मद साहब के आदर्शों को बताया जाता है।किसी भी दूसरी संस्था की तरह यहां कोई लिखित ढांचा नहीं है लेकिन एक सिस्टम का पालन ज़रूर किया जाता है। जहां जमात के बड़ों का पद सबसे ऊपर होता है। आमतौर पर अहम फ़ैसले ‘अमीर’ लेते हैं। जमात कैसे करता है धर्म का प्रचार? तबलीग़ी जमात छह आदर्शों पर टिका हुआ है… 1) कलमा – कलमा पढ़ना 2) सलात – पांचों वक़्त की नमाज़ को पढ़ना 3) इल्म – इस्लामी शिक्षा 4) इक़राम ए मुस्लिम – मुस्लिम भाइयों का सम्मान करना 5) इख़्लास ए निय्यत – इरादों में ईमानदारी 5) दावत ओ तबलीग़ – प्रचार करना निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के करीब 1000 लोग भले अब तक अपने आप को वहां फंसा हुआ बता रहे हों, लेकिन जमात के मुखिया का एक वायरल ऑडियो अलग ही कहानी बयां कर रहा है। एक ऑडियो अब सामने आया है, इसे तबलीगी जमात के मौलाना साद का बताया जा रहा। इसमें वह कोरोना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि मरने के लिए मस्जिद से अच्छी जगह नहीं हो सकती। इससे साफ है कि उन्हें पहले से पता था कि ऐसे जुटने से कोरोना का खतरा है। वायरल ऑडियो में मरकज के चीफ मौलाना साद कई बातें कहते सुनाई दे रहे। इस दौरान वहां कुछ लोग पीछे से खांस भी रहे हैं। ऐसे में लगता है कि वहां कोरोना पहले ही पहुंच चुका था, लेकिन उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया गया। मस्जिद से बेहतर मरने की जगह नहीं: मौलानामौलाना साद ऑडियो में कहते सुनाई देते हैं कि ये ख्याल बेकार है कि मस्जिद में जमा होने से बीमारी पैदा होगी, मैं कहता हूं कि अगर तुम्हें यह दिखे भी कि मस्जिद में आने से आदमी मर जाएगा तो इससे बेहतर मरने की जगह कोई और नहीं हो सकती। कुरान पढ़ते नहीं, अखबार पढ़ते हैं: मौलाना सादवायरल ऑडियो में साद आगे कहते हैं कि अल्लाह पर भरोसा करो, कुरान नहीं पढ़ते अखबार पढ़ते हैं और डर जाते हैं, भागने लगते हैं। साद आगे कहते हैं कि अल्लाह कोई मुसीबत इसलिए ही लाता है कि देख सके कि इसमें मेरा बंदा क्या करता है। साद आगे कहते हैं कि कोई कहे कि मस्जिदों को बंद कर देना चाहिए, ताले लगा देना चाहिए क्योंकि इससे बीमारी बढ़ेगी तो आप ख्याल को दिल से निकाल दो। लॉकडाउन की धज्जियां उड़ा लोगों से मस्जिद आने को कहता रहा मौलाना दिल्ली पुलिस बार-बार मरकज से भीड़ हटाने को कहती रही लेकिन जमात के अमीर मौलाना मुहम्मद साद कंधलावी ने अपनी जिद से हजारों लोगों की जान जोखिम में डाल दी। मरकज से लोगों को हटाने के बजाय मौलाना लोगों से यह अपील करते रहे कि अगर मस्जिद आने से मौत होती है तो इसके लिए मस्जिद से अच्छी कौन सी जगह होगी। मौलाना का यह कथित ऑडियो अब तेजी से वायरल हो रहा है। तबलीगी जमात पर आतंकी कनेक्शन के भी आरोपन्यूज एजेंसी आईएएनएस की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक तबलीगी जमात के कई सदस्य आतंकवादी गतिविधियों में भी लिप्त पाए गए हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में तबलीगी जमात की शाखाएं भारत के खिलाफ जिहाद और आतंकवाद फैलाने में शामिल रही हैं। अमेरिका पर हुए 9/11 आतंकी हमले में शामिल अल कायदा के कुछ आतंकियों के भी तबलीगी जमात से लिंक मिले हैं।आईएएनएस की रिपोर्ट में भारतीय जांचकर्ताओं और पाकिस्तानी सुरक्षा विश्लेषकों के हवाले से बताया गया है कि हरकत-उल-मुजाहिदीन का असली संस्थापक भी तबलीगी जमात का सदस्य था। इसी आतंकी संगठन ने 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान का अपहरण किया था। 80-90 के दशक में जमात से जुड़े 6,000 से ज्यादा सदस्यों ने पाकिस्तान में हरकत-उल-मुजाहिदीन के कैंपों में आतंकी ट्रेनिंग ली थी जिसका उद्देश्य अफगानिस्तान से सोवियत फोर्सेज को भगाना था। मौलाना साद का विवादों से पुराना नाताकेस दर्ज होने के बाद से ही फरार चल रहे मौलाना मुहम्मद साद का विवादों से पुराना नाता है। मौलाना ने जिस तरह खुद को तबलीगी जमात का एकछत्र अमीर (संगठन का सर्वोच्च नेता) घोषित कर दिया, उससे जमात में ही फूट पड़ गई। दरअसल 1926 में मौलाना मुहम्मद इलियास द्वारा तबलीगी जमात की स्थापना के बाद से 1995 तक नेतृत्व के खिलाफ असंतोष के बिना यह मूवमेंट चलता रहा। 1992 में जमात के तत्कालीन अमीर मौलाना इनामुल हसन ने जमात की गतिविधियों को चलाने के लिए लिए 10 सदस्यीय एक शूरा का गठन किया। 1995 में मौलाना की मौत के बाद उनके बेटे मौलाना जुबैरुल हसन और एक अन्य सीनियर तबलीगी मेंबर मौलाना साद ने एक साथ शूरा का नेतृत्व किया। मार्च 2014 में जब मौलाना जुबैरुल हसन की मौत हो गई तो मौलाना साद ने खुद को जमात का एकछत्र नेता यानी अमीर घोषित कर दिया। 2 साल पहले मौलाना साद की वजह से दो फाड़ हुआ तबलीगी जमाततबलीगी गतिविधियों से कई वर्षों तक जुड़े रहे मुंबई बेस्ड एक मौलाना ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि खुद को अमीर घोषित करने के बाद मौलाना साद मनमाना फैसले लेने लगे। इससे जमात के अंदरखाने कई वरिष्ठ सदस्यों में नाराजगी बढ़ने लगी। मौलाना साद की कार्यशैली से आखिरकार 2 साल पहले तबलीगी जमात दो फाड़ हो गया। 2 साल पहले मौलाना अहमद लाड और इब्राहिम देवली के नेतृत्व में जमात का एक दूसरा गुट वजूद में आया, जिसका मुख्यालय मुंबई के नजदीक नेरूल की एक मस्जिद है। Post Views: 221