Uncategorised मुंबई: लाकडाउन के नियमों का खुला उल्लंघन, भेड़-बकरियों की तरह काम कर रहे हैं रेलवे मजदूर 7th April 2020 networkmahanagar 🔊 Listen to this सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो) मुंबई: वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शिता की दुनिया के अनेकों देश सराहना कर रहे हैं। बस यह सराहना रास नहीं आ रही है तो भारत में बसे कुछ तथाकथित धर्म के ठेकेदारों को या फिर मुंबई के रेलवे अधिकारियों को। बार-बार केंद्र द्वारा निर्देश जारी किए जा रहे हैं कि सोशल डिस्टेंस हर हाल में बनाए रखें। 14 अप्रैल तक के लॉकडाउन का सख्ती से पालन करें। सारा देश लॉकडॉउन तोड़ने वालों पर थूक रहा है, मिलिट्री बुलाने की बात कर रहा है, पर रेल अधिकारी इन सबसे बेखबर अपने स्टाफ को भेड़ बकरियों की तरह कार्य करने को मजबूर कर रहा है।रविवार, 5 अप्रैल को मुंबई मध्य रेल के डीआरएम ने सामान्य तौर पर केवल इतना संदेश दिया कि हमारे पास दो-दो चैलेंज है एक तो कोरोना का लॉकडाउन जिसका पालन करना है, दूसरा आने वाले मानसून की भी तैयारी करना है।डीआरएम के आदेश का बेजा अर्थ निकालते हुए मंडल अधिकारियों ने मानो एक दिन भी गंवाए बिना रेल मजदूरों को इस महामारी की भट्टी में झोंकना शुरू कर दिया। सारे रेल अधिकारी आराम से घर बैठकर या सुरक्षित जगह पर रहकर व्हाट्सएप पर निरंतर निर्देश दे- देकर लॉकडाउन की ऐसी की तैसी करने में लगे हैं। स्टाफ शटल में चलने वाला आरपीएफकर्मी कोरोना पॉजिटिव पाया गया। न जाने कितना स्टाफ जो शटल में चल रहा है कॉरोना पॉजिटिव हो गया होगा?6 अप्रैल को कुर्ला में 8-10 ट्रैकमैन एक दूसरे से चिपक कर ट्रैक मेंटेनेंस करते हुए देखे गए। इस तरह से इंजीनियरिंग के कर्मी जाने कितनी जगह सामूहिक काम में जुटे हुए हैं। संभव है कि कुछ समय बाद यह सुनने में आये कि लाकडाउन में सभी कर्मी घर पर थे अतः कुछ काम नहीं हो सका, अब बारिश आने वाली है अतः मनमाने दाम पर कांट्रैक्ट वर्क कराना पड़ा। जबकि वह काम तसल्ली से डिपार्टमेंटल कर्मचारियों द्वारा कराए जा रहे हैं, और तो और रेलकर्मी व उनके परिवार की जान की बाजी निहित स्वार्थ के लिए लगाई जा रही है। पेपरों पर जाने कितने किराए के वाहन दौड़ रहे हैं, पर जब स्टाफ को जरूरत होती है तो वह कभी खराब हो जाता है, कभी पेट्रोल खत्म हो जाता है, कभी अन्य स्टाफ को लेने गया होता है, का बहाना बना दिया जाता है। जितने वाहन पेपर पर किराए पर चल रहे हैं असल में क्या उपयोग में है? जब हर अधिकारी फुर्सत में घर बैठा है, तो मंडल और मुख्यालय में तैनात पचासों कार- जीप कहां दूध दे रही हैं? इसकी जांच होनी चाहिए। घर पर गाड़ी खड़ी करके उसका किराया और चालक की तनख्वाह दी जा रही है। और फील्ड में आधी अधूरी गाड़ियां चलाकर अपनी कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल पेश की जा रही है। आखिर हम कहां तक गिरेंगे? केवल राष्ट्र का खून चूसना ही हमारा लक्ष्य है क्या?बताया जाता है कि 6 अप्रैल को कर्जत में सबस्टेशन पर आधे अधूरे स्टाफ से काम करवाया जा रहा था। इसमें एक स्टाफ 25 केवी की चालू लाइन के संपर्क में आ गया। वह अब अपनी जिंदगी मौत से जूझ रहा है। उसका परिवार मातम मना रहा है। सीनियर डीएसटीई (एन ई) ने 7 अप्रैल से 100% एस अंड टी के वर्कर्स को काम पर आने के आदेश दे दिया है, जिसमें सेक्शन में सिग्नल पोस्ट बदलने हैं, जंक्शन बॉक्स तथा सभी पॉइंट्स की मोटर का मेंटेनेंस करना आदि है। यह एक भी काम अकेले व्यक्ति का ना होकर सामूहिक रूप से ही किया जा सकता है। काम चाहे ओ एच ई का हो, ट्रैक का हो, या s&t का हो, ये सारे के सारे कार्य कई लोगों द्वारा किए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि बारिश 5 जून के पहले आने की संभावना तो होती नहीं, हां अनेकों बार जून अंत तक जरूर खिंच जाती है। तो क्या 14 अप्रैल तक हम प्रतीक्षा नहीं कर सकते? 14 अप्रैल के बाद भी पौने दो माह का समय मेंटेनेंस के लिए मिलता है। यदि हम कहें कि लॉकडाउन ओपन होने के पूर्व की तैयारी कर रहे हैं। तो जब गाड़ी चली ही नहीं तो कुछ बिगड़ा कैसे? उस हर चीज का फॉर्मल चेक, मात्र एक वर्कर द्वारा भी किया जा सकता है। इसी तरह गुड्स लाबियों में अति आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई के नाम पर तथाकथित खास उद्योगपतियों के माल आधी कीमत पर ढोकर रेलवे को करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है। इसके लिए आवश्यकता से अधिक रनिंग स्टाफ को बुलाकर लाबी में भीड़ लगाई जा रही है। घंटों तक स्टाफ को निठल्ले बैठाया जा रहा है। पर सीनियर डी ओ एम या सी ओ एम से इस मंडल में अगले 24 घंटे में कितनी मालगाड़ियां कहां से कहां चलेंगी, इसकी प्लानिंग नहीं हो पा रही है? जबकि मात्र गाड़ी में माल चढ़ाने और उतारने का ही समय लगना है (और वह भी निश्चित होता है) लाइन क्लियर की तो कोई परेशानी है ही नहीं सारा ट्रैक खली पड़ा है। फिर स्टाफ 12 से 18 घंटे कार्य कैसे कर रहा है? और ऐसी परिस्थिति में जबकि एक चाय भी नसीब नहीं हो रही हो। स्टाफ व सुपरवाइजर से दक्षता की उम्मीद रखने वाले यह रेलवे अधिकारी आज एक परसेंट चलने वाली गाड़ियों को भी सही तरह से मैनेज नहीं कर पा रहे हैं। यह उनका नकारापन कहें या लॉकडाउन में सब के सब क्वॉरेंटाइन हो गए हैं? बस स्टॉफ लगा है कीड़े-मकोड़े की तरह काम करने को। जो भी हो जिस तरह सारी दुनिया कुछ जिद्दी धर्मावलंबियों पर थूक रही है, ऐसा ना हो कि रेल अधिकारी इन से भी आगे निकल जाए? भगवान के लिए प्रधानमंत्री का कहना मानें और अपने हुक्मरानों की बातें अमल में लाएं। यही राष्ट्रहित में होगा और यही समाज के हित में भी होगा। – मुंबई से राजकुमार द्विवेदी की रिपोर्ट फिर मुस्कुराएगा इंडिया…फिर जीत जाएगा इंडिया…India will fight. India will win! Good initiative by our film fraternity. https://t.co/utUGm9ObhI— Narendra Modi (@narendramodi) April 7, 2020 Post Views: 188