नासिकब्रेकिंग न्यूज़महाराष्ट्रमुंबई शहरशहर और राज्य कोरोना ने मचाई तबाही, खौफ़ज़दा हुए लोग! नासिक में एक दिन में 9 लोगों की मौत, बदला कोरोना का रूप… 16th April 2021 networkmahanagar 🔊 Listen to this नासिक: महाराष्ट्र के नासिक शहर में एक दिन में 9 लोगों की मौत की खबर सामने आई है. दो दिनों पहले 24 घंटे में 4 लोगों की मौत चक्कर खाकर गिरने और सांस फूलने से ही हुई थी. कोरोना काल में इस नई समस्या ने लोगों के मन में दहशत पैदा कर दी है. ये खबर डॉक्टरों को भी हैरान कर रही है.अचानक चक्कर खाकर बेसुध होकर मरने वालों की संख्या जहां एक दिन में 9 तक जा पहुंची है, वहीं पिछले तीन दिनों में आंकड़ा 13 तक पहुंच गया है. खास बात ये है कि मरने वालों में युवा भी शामिल हैं. इससे पहले कुछ लोगों की मौत रास्तों पर पैदल जाते हुए चक्कर आने से हुई थी तो कुछ की मौत घर बैठे ही चक्कर आने से हो गई थी.कुछ दिनों से तापमान में अचानक वृद्धि दर्ज की गई है. नासिक शहर का तापमान बढ़कर 40 डिग्री के पार चला गया है. इसलिए बढ़ती गर्मी के प्रकोप और डिहाइड्रेशन की वजह से मृत्यु के कारण को नकारा नहीं जा सकता. इससे पहले भी जब एक दिन में 4 लोगों की मौत चक्कर खाकर गिरने से हुई थी तो बढ़ती गर्मी को वजह बताया गया था. लेकिन मृत्यु की असली वजह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई है. इन लक्षणों को ना करें नजरअंदाज़चक्कर खाकर गिरने और सांसें फूलने से हुई इन मौतों ने चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों को भी चौंका दिया है. चक्कर आने और सांसें फूलने जैसे लक्षणों को किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं करने की सलाह नासिक शहर के डॉक्टरों की तरफ से की जा रही है.राज्य भर में बुधवार रात 8 बजे से धारा 144 लागू होने की वजह से ‘मिनी लॉकडाउन’ की स्थिति कायम है. ऐसे में बिना वजह घर से बाहर निकलने पर पाबंदी है. लेकिन अति आवश्यक कामों से बाहर निकलते वक्त भी अपना ध्यान रखने की सलाह दी जाती है. और शरीर में पानी की कमी ना हो इसका खयाल रखने की भी सलाह दी गई है.चक्कर खाकर गिरने से शनिवार को भी नासिक में चार लोगों की मौत हो गई थी. इंदिरानगर, उपनगर, श्रमिकनगर और देवलाली गांव में ये घटनाएं हुईं. इस मामले में संबंधित पुलिस थाने में भी जब मृत्यू की खबर आने लगी तो स्थानीय प्रशासन एकदम से हरकत में आ गया. कोरना वायरस में खतरनाक परिवर्तनप्रतिदिन बढ़ते कोविड के मामलों और संक्रमण से हो रही मौतों में वृद्धि ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. बड़े शहर ही नहीं छोटे-छोटे शहरों की स्वास्थ्य व्यवस्था भी अब चरमराने लगी है. ऐसे में श्मशान हों या कब्रिस्तान वहां भी पीड़ित परिवार को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.आखिरकार साल 2020 की तुलना में साल 2021 के कोविड के व्यवहार, प्रकार, संक्रमण और घातकता में ऐसा क्या परिवर्तन आया कि भारत जैसा देश जीत के मुहाने तक पहुंचकर कोरोना के विकराल मुंह में समाता हुआ दिखाई पड़ रहा है.पहले संक्रमित लोगों की संख्या 45 और उससे ज्यादा की थी और वह लोग ही गंभीर पेशेंट के तौर पर सामने आ रहे थे. इनमें से भी जो कोमॉरबिड कंडीशन में थे उनकी हालत खराब रिपोर्ट होती थी, लेकिन अब ट्रेंड पूरी तरह से चेंज हो चुका है.दिल्ली में कोरोना बीमारी से पीड़ित लोगों में 65 फीसदी आबादी 35 साल और उसके आस-पास की है जिनमें कई गंभीर रूप से बीमार हैं और उन्हें आईसीयू की जरूरत है. पिछले साल केस फैटेलिटी रेट 45 साल और उससे उपर का 2.85 था और उससे नीचे की उम्र का 29 फीसदी था. लेकिन इस बार कहानी पूरी तरह से बदलती दिखाई पड़ रही है. इतना ही नहीं आठ गुना ज्यादा बच्चे भी बीमार हो रहे हैं जो परेशानी का सबब बनता जा रहा है. आरटीपीसीआर हो रहा है फेल और थ्रोमबॉटिक डिसऑर्डर ज्यादाकई लोग अलग-अलग राज्यों से आरटीपीसीआर में निगेटिव आ रहे हैं. वायरस के जीनोमिक सिक्वेंस में गंभीर परिवर्तन आरटीपीसीआर के सेट तौर तरीकों के दायरे में लाने में असफल दिखाई पड़ रहा है. इसलिए कुछ लोग जब तक सीटी स्कैन के जरिए कोविड पेशेंट के रूप में पहचाने जा रहे हैं तब तक उनका फेफड़ा बहुत खराब हो जा रहा है. इतना ही नहीं कई लोग निगेटिव आने पर रिलेक्सड हो जा रहे हैं और सुपर स्प्रेडर का काम कर रहे हैं. कई मरीजों में सांस का फूलना और लंबी-लंबी सांसो का लेना देखा जा रहा है. पेशेंट के बल्ड वैसल्स डैमेज हो रहे हैं और उनमें अक्सर बल्ड क्लॉटिंग की शिकायत आ रही है. जाहिर है फेफड़े में ज्यादा प्रभाव की वजह से ऑक्सीजन, वेंटीलेटर और रेमेडिसविर जैसी दवाओं की मांग बढ़ गई है. यही वजह है कि महाराष्ट्र हो गुजरात हो या मध्य प्रदेश वहां पर एंबुलेंस की लंबी कतार अस्पतालों के बाहर दिखाई पड़ती है, जो अपनी बारी का इंतजार कर रहे होते हैं. वायरस में परिवर्तन इसलिए पुराने तौर तरीके हुए फेलकोविड की बीमारी से वैक्सीन के दो डोज ले चुके मरीज समेत गांव और शहर के अलग-अलग राज्यों के लोग भी प्रभावित हो रहे हैं. कोविड के संक्रमण की रफ्तार को देखकर डॉक्टर पूरी तरह से सकते में हैं. कई रोगियों में जब तक बुखार होता है तब तक उसकी हालत खराब हो चुकी होती है और उसे बचाना बेहद मुश्किल हो चुका होता है. वाइरोलॉजिस्ट प्रभात रंजन कहते हैं कि संक्रमण पूरी तरह से म्यूटेटेड वायरस से हो रहा है, इसलिए आरटीपीसीआर फेल हो रहा है और जब तक बीमारी पकड़ में आती है तब तक फेफड़ा खराब हो चुका होता है.रंजन कहते हैं कि कोविड का नया स्वरूप उम्र के दायरे को पार कर चुका है और अब इससे प्रभावित होने वालों की रफ्तार में गांव, शहर, छोटे-बड़े हर तरह के लोग आ चुके हैं. इसलिए सरकार को होम आइसोलेशन की जगह होम नर्सिंग पर ध्यान देना चाहिए. जहां एम्बुलेंस से लेकर डॉक्टर और नर्स जरूरत की दवा और इंजेक्टेवल के साथ समय पर इलाज कर सकें. कोमॉरबिड कंडीशन नहीं होने पर भी मौतपिछली बार साल 2020 में कोरोना से दम तोड़ने वाले लोग ज्यादातर 45 के ऊपर और कोमॉरबिड कंडीशन वाले थे. लेकिन इस बार नॉर्मल पेशेंट के अलावा युवा भी मौत के मुंह में समा जा रहे हैं. वजह वायरस का बदलते आक्रमण का तरीका है और पेशेंट ज्यादातर लंग्स प्रभावित होने से मर रहा है. दरअसल, साल 2001 में सार्स की बीमारी से लोग सीधा मर रहे थे और उनका लंग्स प्रभावित हो रहा था. उस समय मौत की वजह ADRS (Acute Disease Respiratory Syndrome) ही था जो अभी फिर से सामने आने लगा है.साल 2001 में होने वाली मौत की वजह SARS COV1 था जो अब SARS COV2 हो चुका है. साल 2021 में होने वाली मौत की वजह ज्यादातर न्यूमोनिया है जिसमें लंग्स सीधा-सीधा खराब हो जाता है और इसका पता रेडियोलॉजिस्ट को सीटी स्कैन और एक्सरे के जरिए पता चलता है. कहा जाता है कि इस बार कोरोना पॉजिटिव होने के बाद पांचवें दिन वायरस के भयावहता का खतरा बहुत बड़ा रहता है और उसी दिन मौत और जिंदगी के बीच का फासला तय होता है.कोरोना वायरस के बदलते व्यवहार ने देश में हर तरह की समस्या पैदा कर दी है जिनमें हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर दवा तक की कमी सामने आ रही है. इसलिए बदलते हालात में किसी भी तरह की शरीर में समस्या होने पर बिना देर किये फौरन जांच के लिए जाना चाहिए और किसी भी प्रकार की कमजोरी, खांसी, बुखार होने पर आरटीपीसीआर सहित सीटी स्कैन भी कराना चाहिए. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में पिछले 24 घंटे में कोरोना के 2 लाख 17 हजार 353 नए केस सामने आए हैं. वहीं 1 हजार 185 लोगोंं की जान इस वायरस ने ले ली है. हालांकि, इस बीच 1 लाख 18 हजार 302 मरीज डिस्चार्ज हुए हैं. 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