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एंटीलिया केस: एनकाउंटर स्पेशलिस्ट सचिन वाजे, फाइव स्टार होटल से चला रहा था वसूली का धंधा, स्कॉर्पियो की कांच से आया गिरफ्त में… कई और अधिकारी निशाने पर

मुंबई: एंटीलिया केस में गिरफ्तार किए गए एनकाउंटर स्पेशलिस्ट सचिन वाजे के लिए 100 दिनों के लिए मरीन ड्राइव में एक पांच सितारा होटल में कमरा बुक किया गया था. एनआईए की जांच में पता चला है कि वाजे मुंबई के इस होटल के कमरा नंबर 1964 में रह रहा था और यहां से एक कथित जबरन वसूली रैकेट चला रहा था. बता दें कि एंटीलिया और जांच एजेंसी द्वारा दर्ज की गई हत्या के मामले में डीसीपी रैंक तक के 35 अधिकारियों से NIA द्वारा पूछताछ की जा चुकी है. एनआईए का दावा है कि सचिन वाजे ने कथित तौर पर इस होटल का एक कमरा फर्जी आधार कार्ड का इस्तेमाल करके बुक किया था. कमरा, वाजे के फर्जी नाम सुशांत सदाशिव खामकर के नाम पर बुक किया गया था. एनआईए के अनुसार, 16 फरवरी को वाजे एक इनोवा कार में इस होटल में गया और एक लैंड क्रूज़र में 20 फरवरी को बाहर गया. इन दोनों वाहनों को अब एनआईए ने जब्त कर लिया है.
एनआईए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एक व्यवसायी ने इस होटल में कमरा 100 दिनों के लिए 12 लाख रुपये में बुक किया था. वाजे कुछ विवादित मामले में इस व्यवसायी की मदद कर रहा था. बुकिंग एक ट्रैवल एजेंट के माध्यम से की गई थी. उनके अनुसार इस साल फरवरी में यहां रहने के दौरान नरीमन प्वाइंट में मुंबई क्राइम ब्रांच में ड्यूटी करने की भी सूचना मिली.

अधिकारी के अनुसार, तारीखें भी मेल खाती हैं जब वाजे और उनकी टीम के सदस्य लाइसेंस उल्लंघन के लिए रात में मुंबई के विभिन्न प्रतिष्ठानों पर छापे मार रहे थे. NIA की टीम पहले ही होटल के कमरे का निरीक्षण कर चुकी है, जहां वह फरवरी 2021 में रह रहा था. एनआईए ने होटल के सीसीटीवी फुटेज को भी जब्त कर लिया है ताकि जांच की जा सके कि होटल में उससे कौन-कौन मिलने आता था. उनके अनुसार, अब तक एनआईए ने औपचारिक रूप से पूछताछ की है और अनौपचारिक रूप से मुंबई पुलिस के कई 35 पुलिस अधिकारियों से बात की है। उन्होंने कहा, हमने कुछ बयान दर्ज भी किए हैं, और कुछ मौखिक भी हैं. आने वाले दिनों में उनमें से कुछ को गिरफ्तार किया जाएगा.
अधिकारी के अनुसार, वाजे जो काम कर रहा था, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को उसकी पूरी जानकारी रहती थी. हमारे पास इसे साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत भी हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मुंबई पुलिस अधिकारियों की ओर से काफी जानकारी मिली है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हम अधिकारियों को गिरफ्तार करने की जल्दबाजी में नहीं हैं.

स्कॉर्पियो की कांच से गिरफ्त में आया सचिन वाजे!
एपीआई सचिन वाजे ने जब उद्योगपति मुकेश अंबानी की एंटीलिया के बाहर जिलेटिन से भरी स्कॉर्पियो खड़ी करने की साजिश रची, तो अन्य फर्जी कामों के अलावा उन्होंने स्कॉर्पियो की मूल नंबर प्लेट को हटाकर उस पर आगे-पीछे फर्जी नंबर प्लेट लगा दीं. उसके चेसिस व इंजन नंबर भी इरेज करवाए. वाजे ने सोचा कि इतने फर्जीवाडे के बाद कोई स्कॉर्पियो के असली मालिक तक कभी पहुंच ही नहीं पाएगा. लेकिन एक कहावत है की ‘हर अपराधी कोई न कोई अपना सुराग छोड़ ही जाता है’, उन्होंने स्कॉर्पियो गाड़ी में अहम सुराग छोड़ दिया और वह था कि स्कॉर्पियो की एक कांच पर बहुत ही बारीक सा लिखा गाड़ी का ओर्जिनल नंबर!

जब स्कॉर्पियो की कांच पर पड़ी एक अधिकारी की नज़र
इस केस की जांच से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि 25 फरवरी को देर शाम जब इस गाड़ी में जिलेटिन रखे जाने वाली बात सामने आई, तो बम निरोधक दस्ते और फॉरेंसिक टीम की जांच के बाद इस स्कॉर्पियो को मुकेश अंबानी की बिल्डिंग से हटाकर येलो गेट पुलिस के परिसर में खड़ा कर दिया गया. वहां क्राइम ब्रांच और एटीएस की अलग-अलग टीमें पहुंचीं. उनमें से एक अधिकारी की नजर स्कॉर्पियो के एक कांच पर पड़ी. उसमें बहुत ही छोटा-छोटा गाड़ी का नंबर लिखा हुआ था. उस अधिकारी ने उसका फोटो खींचा और फिर अपने सिस्टम में जाकर उस नंबर के मालिक का डिटेल निकाला.

पीटर न्यूटन से हिरेन मनसुख तक पहुंची पुलिस
जाँच में पता चला कि यह गाड़ी डॉक्टर पीटर न्यूटन के नाम रजिस्टर्ड है. जब उन लोगों तक जांच टीमें पहुंची, तो बताया गया कि कुछ पैसों के लेन-देन की वजह से यह गाड़ी तो पिछले तीन साल से हिरेन मनसुख के पास थी. फिर मनसुख को संपर्क किया गया, तो उन्होंने बताया कि उनकी गाड़ी 17 फरवरी को विक्रोली में चोरी हो गई थी और उन्होंने लोकल पुलिस स्टेशन में 18 फरवरी को एफआईआर भी दर्ज करवाई थी.

विक्रोली पुलिस से मिली जानकारी
इसके बाद जांच टीम विक्रोली पहुंची और एफआईआर दर्ज करनेवाले सब इंस्पेक्टर, उस वक्त के डयृटी अधिकारी और जांच अधिकारी से पूछताछ शुरू की. पर विक्रोली पुलिस की कहानी से पहले अभी स्कॉर्पियो की कहानी पर ही फोकस बरकरार रखते हैं. हिरेन मनसुख के परिवार वालों का कहना है कि यह स्कॉर्पियो सचिन वाजे के पास नवंबर से 5 फरवरी तक थी. मनसुख के परिवार वालों का यह भी कहना है कि खुद मनसुख भी इसे पिछले 3 साल से यूज कर रहे थे. लेकिन ताज्जुब वाली बात यह है कि न तो मनसुख हिरेन तीन साल में और न ही सचिन वाजे चार महीने में स्कॉर्पियो के एक कांच पर बहुत बारीक से लिखे नंबर को पढ़ पाए. इसलिए वाजे ने गाड़ी के नीचे आगे-पीछे तो फर्जी नंबर प्लेट लगा दिए, लेकिन कांच पर मूल नंबर का सुराग छोड़ गए!

किस्सा विक्रोली की फर्जी FIR का
अब आपको बताते हैं विक्रोली पुलिस स्टेशन में 18 फरवरी को दर्ज उस एफआईआर का, जिसमें स्कॉर्पियो के चोरी होने की शिकायत दर्ज हुई थी. अभी जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वह बता रहे हैं कि यह गाड़ी कभी चोरी हुई ही नहीं. मनसुख हिरेन ने 17 फरवरी की रात यह गाड़ी विक्रोली में खड़ी की. वहां से एक कैब बुक कराई. वह इसमें बैठकर सीएसटी आए, वहां मर्सिडीज गाड़ी में बैठे सचिन वाजे को इसकी चाबी दी. वाझे ने यह चाबी अपने सिपाही को दी.

ठाणे तक स्कॉर्पियो को सिपाही लाया
सिपाही विक्रोली से स्कॉर्पियो उठाकर वाजे की ठाणे की साकेत बिल्डिंग के बाहर ले गया. वहां यह गाड़ी दो दिन खड़ी रही. इसके बाद वाजे का ही सिपाही वहां से इस गाड़ी को पुलिस मुख्यालय लाया. 19 से 21 फरवरी तक यह यही खड़ी रही. बाद में फिर से वाजे की बिल्डिंग पहुंच गई और बाद में 25 फरवरी को खुद सचिन वाजे ने इसे ड्राइव कर मुकेश अंबानी की बिल्डिंग के बाहर खड़ा कर दिया और पीछे खड़ी CIU की इनोवा में बैठकर वहां से चले गए. इस बीच सचिन वाजे के कहने पर मनसुख हिरेन ने 18 फरवरी को विक्रोली पुलिस स्टेशन में स्कॉर्पियो के चोरी होने की एफआईआर दर्ज कराई.

वाजे के कहने पर दर्ज कराई थी चोरी की FIR
इस केस की जांच से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि विक्रोली में जिस जगह पर स्कॉर्पियो खड़ी की गई, वहां पांच किलोमीटर तक कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं है. इसका मतलब यह है कि गाड़ी चोरी का कहानी प्लांट करने से पहले इस बात की पहले से रेकी कर ली गई थी कि किस जगह पर गाड़ी पार्क की जाए, जहां सीसीटीवी कैमरे न हों, ताकि चोरी की असली कहानी का भंडाफोड़ न हो सके.
अधिकारी के अनुसार, कोई भी गाड़ी जब चोरी होगी, तो कार मालिक के पास उसकी चाबी तो होगी ही. इसलिए जब सचिन वाजे के कहने पर मनसुख हिरेन विक्रोली पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराने 18 फरवरी को आए, तो उसी वक्त वहां पुलिस अधिकारियों को पूछना चाहिए था कि गाड़ी की चाबी किधर है?

पुलिस अधिकारी ने मनसुख से चाबी क्यों नहीं मांगी?
चूंकि मनसुख हिरेन कोई पेशेवर क्रिमिनल नहीं थे, इसलिए पुलिस अधिकारियों के इस सवाल से ही तत्काल हड़बड़ा जाते, यदि वह झूठ भी बोल देते कि चाबी घर पर है, तो पुलिस अधिकारियों को उनसे कहना चाहिए था कि ठीक है, घर में अभी विडियो कॉलिग करो और घर वालों को बोलकर हमें विडियो में दिखाओ कि स्कॉर्पियो की चाबी घर में कहां रखी है? उसी वक्त दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता, क्योंकि चाबी तो मनसुख, सचिन वाजे को देकर आ गए थे. इस झूठ के पकड़ में आते ही स्कॉर्पियो की चोरी की कभी एफआईआर दर्ज ही नहीं होती और हो सकता था कि खुद मनसुख पर ही झूठी कहानी प्लांट करने की एफआईआर दर्ज हो जाती. उस वक्त, वह सचिन वाजे का नाम लेते ही लेते, तब वाजे फंसते ही थे.