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गणेश चतुर्थी पर विशेष: जानें- बच्चों के प्रिय देवता बाल गणेश के बारे में…

बच्चों को भगवान गणेश की प्रेरणादायी कहानियां सुनाना चाहिए, जिससे बच्चों में संस्कार बढ़े और उनका बौद्धिक विकास हो…

वैसे तो हिन्दू सभ्यता में कई देवी देवताएं हैं। इनमें भगवान गणेश सबसे प्रथम पूज्य माने जाते हैं। गणेश भगवान शिव और माता पार्वती के पहले पुत्र हैं। उन्हें ‘प्रथम पूज्य भगवान’ भी कहा जाता है।
हर किसी को मालूम है कि गणेश जी को मोदक और मिठाई कितनी पसंद है। शायद इसलिए भी वो किसी के भी निमंत्रण को स्वीकार कर लेते हैं और पेट के साथ ही मन भर कर मिठाइयां खाते हैं।
एक बार की बात है धनपती कुबेर ने भगवान शिव और माता पार्वती को भोज पर बुलाया, लेकिन भगवान शिव ने कहा कि मैं कैलाश छोड़कर कहीं नहीं जाता हूं और पार्वती जी ने कहा कि मैं अपने स्वामी को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती, तब उन्होंने कहा कि आप हमारे स्थान पर गणेश को ले जाओ, वैसे भी उन्हें मिठाई और भोज बहुत पसंद आते हैं।
भगवान शिव की आज्ञा मानकर कुबेर, गणेश जी को अपने साथ भोज पर ले गए। वहां उन्होंने मन भरकर मिठाइयां और मोदक खाए। वापस आते समय कुबेर ने उन्हें मिठाई का थाल देकर विदा किया। लौटने समय चन्द्रमा की चांदनी में गणेश जी अपने चूहे पर बैठकर आ रहे थे, लेकिन ज्यादा खा लेने के कारण बड़ी ही मुश्किल से अपने आप को संभाल पा रहे थे। उसी समय अचानक चूहे का पैर किसी पत्थर से लगकर डगमगाने लगा। इससे गणेश जी चूहे के ऊपर से गिर गए और पेट ज्यादा भरा होने के कारण अपने आप को संभाल नहीं सके और मिठाइयां भी यहां-वहां बिखर गईं।
यह सब चन्द्र देव ऊपर से देख रहे थे। उन्होंने जैसे ही गणेश जी को गिरता देखा, तो अपनी हंसी रोक नहीं पाए और उनका मजाक उड़ाते हुए बोले कि जब खुद को संभाल नहीं सकते, तो इतना खाते क्यों हो।
चन्द्रमा की बात सुनकर गणेश जी को गुस्सा आ गया। उन्होंने सोचा कि घमंड में चूर होकर चन्द्रमा मुझे उठाने के लिए किसी प्रकार की सहायता नहीं कर रहा है और ऊपर से मेरा मजाक उड़ा रहा है। इसलिए, गणेश जी ने चन्द्रमा को श्राप दिया कि जो भी गणेश चतुर्थी के दिन तुमको देखेगा वह लोगाें के सामने चोर कहलाएगा।
श्राप की बात सुनकर चन्द्रमा घबरा गए और सोचने लगे कि फिर तो मुझे कोई भी नहीं देखेगा। उन्होंने शीघ्र ही गणेश जी से माफी मांगी। कुछ देर बात जब गणेश जी का गुस्सा शांत हुआ, तब उन्होंने कहा कि मैं श्राप तो वापस नहीं ले सकता, लेकिन तुमको एक वरदान देता हूं कि अगर वहीं व्यक्ति अगली गणेश चतुर्थी को तुमको देखेगा, तो उसके ऊपर से चाेर होने का श्राप उतर जाएगा। तब जाकर चन्द्रमा की जान में जान आई।
इसके अलावा एक और कहानी सुनने में आती है कि गणेश जी ने चन्द्रमा को उनका मजाक उड़ाने पर श्राप दिया था कि वह आज के बाद किसी को दिखाई नहीं देंगे। चन्द्रमा के मांफी मांगने पर उन्होंने कहा कि मैं श्राप वापस तो नहीं ले सकता, लेकिन एक वरदान देता हूं कि तुम माह में एक दिन किसी को भी दिखाई नहीं दोगे और माह में एक दिन पूर्ण रूप से आसमान पर दिखाई दोगे। बस तभी से चन्द्रमा ‘पूर्णिमा’ के दिन पूरे दिखाई देते हैं और अमावस के दिन नज़र नहीं आते।

…जब पलक झपकते ही कर ली ‘पूरे संसार’ की परिक्रमा!
एक बार सभी देवता किसी मुसीबत में पड़ गए थे। सभी देव शिवजी की शरण में गए और अपनी परेशानी बताई। उस समय भगवान शिव के साथ गणेश और कार्तिकेय भी वहीं बैठे हुए थे।
देवताओं को परेशान देख शिवजी ने गणेश और कार्तिकेय से पूछा कि इन परेशान देवताओं की मुश्किलें तुम दोनों में से कौन हल कर सकता है और उनकी मदद कौन कर सकता है? जब दोनों भाई मदद करने के लिए तैयार हुए तो शिवजी नें उनके सामने एक प्रतियोगिता रख दी। इस प्रतियोगिता के मुताबिक, दोनों भाइयों में जो भी सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा, वही देवताओं की मुश्किलों में मदद कर पाएगा।
अपने पिता शिवजी की बातें सुनकर कार्तिकेय अपनी सवारी मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। लेकिन, गणेशजी वहीं अपनी जगह पर खड़े रहे और सोचने लगे कि वह मूषक की मदद से पूरे पृथ्वी की परिक्रमा कैसे लगा पाएंगे…? इसमें तो बरसों बीत जाएंगे। उसी वक्त उनके मन में एक उपाय सूझा। वे अपने पिता शिवजी और माता पार्वती के नजदीक आए और उनकी सात बार परिक्रमा करके वापस अपनी जगह पर खड़े हो गए।
कुछ समय बाद जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करके लौटे तो स्वयं को विजेता कहने लगे। तभी शिवजी ने गणेशजी की ओर देखा और उनसे पूछा कि क्यों गणेशजी तुम क्यों पृथ्वी की परिक्रमा करने नहीं गए? इस पर बुद्धिमान गणेश ने तपाक से कहा कि माता-पिता में ही तो पूरा संसार है, चाहे मैं पृथ्वी की परिक्रमा करूं या अपने माता-पिता की, एक ही तो बात है…! यह सुन शिवजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने गणेश को सभी देवताओं की मुश्किलें दूर करने की आज्ञा दे दी। इसके साथ ही शिवजी ने गणेशजी को यह भी आशीर्वाद दिया कि कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर जो भी व्यक्ति तुम्हारी पूजा और व्रत करेगा उसके सभी दुःख दूर हो जाएंगे और उसे सभी सुखों की प्राप्ति होगी।

गणेशजी को बच्चे कहते हैं ‘हाथी भगवान’
एक दिन माता पार्वती स्नान कर रही थीं, लेकिन वहां पर कोई भी रक्षक नहीं था। इसलिए माता पार्वती ने चंदन के पेस्ट से अवतार दिया और गणेशजी प्रकट हो गए। माता ने पुत्र के अवतार लेते ही गणेश को आदेश दिया कि उनकी अनुमति के बगैर किसी को भी घर में प्रवेश नहीं करने देना।
इसी बीच जब भगवान शिव वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि द्वार पर एक बालक खड़ा हुआ है। जब वे अन्दर जाने लगे तो बालक ने उन्हें रोक लिया और भीतर नहीं जाने दिया। यह देख शिवजी क्रोधित हो उठे और अपनी सवारी बैल नंदी को उस बालक के साथ युद्ध करने का आदेश दे दिया। युद्ध में बाल गणेश ने नंदी को भी हरा दिया। यह देख भगवान भी आश्चर्य में पड़ गए और भयंकर क्रोधित हो गए। उन्होंने त्रिशूल उठाया और उस बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया!
इसी बीच वहां माता पार्वती स्नान के बाद वापस लौटती हैं तो यह नज़ारा देख बेहद दु:खी हो जाती है। वे जोर-जोर से रोने लग जाती हैं। यह देख शिवजी भी हैरान हो जाते हैं। तब वे उन्हें बेटे के अवतार लेने की कथा बताती हैं। शिवजी भी परेशान हो जाते हैं जब उन्हें पता चलता है कि यह बालक तो उन्हीं का पुत्र था, तो उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है। अब भोलेनाथ माता पार्वती को समझाने की बहुत कोशिश करते हैं, लेकिन वे नहीं मानती हैं। और गणेश का नाम ले-लेकर रोती रहती हैं। अंततः माता पार्वती ने क्रोधित होकर शिवजी को अपनी शक्ति से गणेश को दोबारा जीवित करने के लिए कह दिया। शिवजी बोले- हे पार्वती मैं गणेश को जीवित तो कर सकता हूं पर किसी भी अन्य जीवित प्राणी के सिर को जोड़ने पर ही वह जीवित हो सकता है। पार्वती रोते-रोते कह देती है कि मुझे हर हाल में मेरा पुत्र जीवित चाहिए…!
यह सुनते ही शिवजी नंदी को आदेश देते हैं कि जाओ और इस संसार में जिस किसी भी जीवित प्राणी का सिर दिखे काटकर ले आओ। शिवजी का आदेश पाते ही नंदी चले गए और उन्हें जंगल में एक हाथी का बच्चा दिखा, जो अपनी मां की पीठ के पीछे सो रहा था। नंदी ने हाथी के बच्चे का सिर काट लिया और ले आए। वह सिर गणेशजी को जोड़ दिया गया। इस प्रकार गणेशजी को जीवनदान मिल गया। शिवजी ने इसीलिए गणेश का नाम गणपति रखा। इसी प्रकार सभी देवताओं ने उन्हें वरदान दिया कि इस दुनिया में जो भी नया और शुभ कार्य किया जाए, तो पहले श्री गणेश को जरूर याद किया जाए।

गणेश और मूषक की कहानी
एक बार बहुत भयानक असुरों का राजा गजमुख चारों तरफ आतंक मचाए हुए था। वह सभी लोकों में धनवान और शक्तिशाली बनना चाहता था। वह साथ ही सभी देवी-देवताओं को अपने वश में भी करना चाहता था। वह इस वरदान को पाने के लिए भगवान शिवजी की भी तपस्या करता रहता था। शिवजी से वरदान पाने के लिए वह अपना राज्य छोड़कर जंगल में रहने लगा और बिना भोजन-पानी के ही दिन-रात तपस्या में लीन रहने लगा।
कुछ सालों बाद शिवजी उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर सामने प्रकट हो गए। शिवजी ने खुश होकर उसे दैवीय शक्तियां प्रदान कर दी, जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। उसे शिवजी ने सबसे बड़ी शक्ति दे दी थी। भोलेनाथ ने उस असुर को वह शक्ति दी जिसमें उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता था। असुर गजमुख को शक्तियों पर घमंड होने लगा और वह इसका दुरुपयोग भी करने लगा। उसने देवी-देवताओं पर भी आक्रमण कर दिया।
सिर्फ भोलेनाथ, विष्णु, ब्रह्मा और गणेश ही उसके आतंक से बचे रह सकते थे। गजमुख चाहता था कि सभी देवी-देवता उसकी पूजा करने लगे। इससे परेशान होकर सभी देवगण शिवजी, विष्णु और ब्रह्मा की शरण में पहुंचे! शिवजी ने गणेशजी को असुर गजमुख को रोकने के लिए भेजा। गजमुख नहीं माना और गणेशजी को गजमुख के साथ युद्ध करना पड़ा। इस युद्ध में गजमुख बुरी तरह से घाल हो गया, लेकिन तब भी वह नहीं माना।
देखते-ही-देखते उस राक्षस ने अपने आपको एक मूषक के रूप में बदल लिया और गणेशजी की ओर हमला करने के लिए दौड़ा। जैसे ही वह गणेशजी के पास आया, गणेशजी कूदकर उसके ऊपर बैठ गए और गणेशजी ने गजमुख को जीवनभर के लिए मूषक के रूप में बदल कर अपने वाहन के रूप में जीवनभर के लिए रख लिया। इस घटना के बाद गजमुख बेहद खुश हुआ कि वह गणेशजी का प्रिय मित्र भी बन गया…।

गणेशजी के 12 प्रमुख नाम
गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। उपरोक्त द्वादश नाम नारद पुराण में पहली बार गणेश के द्वादश नामवलि में आया है। विद्यारम्भ तथा विवाह के पूजन के प्रथम में इन नामो से गणपति की अराधना का विधान है।