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शिवसेना सांसद संजय राउत का दावा- हमारे साथ हैं 175 विधायक, बोले- हम साथ न होते तो 75 सीटें भी नहीं जीत पाते

मुंबई: शिवसेना के वरिष्ठ नेता व सांसद संजय राउत ने एक बार फि‍र बीजेपी के बिना दूसरे विकल्‍पों से सरकार बनाने की संभावना की ओर संकेत किया है। रविवार को संजय राउत ने 170 से 175 विधायकों का समर्थन होने की बात कही। साथ ही जोड़ा कि शिवसेना बीजेपी से केवल मुख्यमंत्री पद के मुद्दे पर ही बातचीत करेगी। इससे पहले शिवसेना के मुखपत्र सामना में लिखे लेख में भी वह इस तरह के विकल्‍पों की चर्चा कर चुके हैं।
सरकार गठन को लेकर जारी गतिरोध पर राउत ने कहा, अभी गतिरोध जारी है। सरकार गठन को लेकर अभी कोई बातचीत नहीं हुई है। अगर बातचीत होगी, तो केवल मुख्यमंत्री पद को लेकर ही होगी। हमारे पास 170 से ज्‍यादा विधायकों का समर्थन है। यह आंकड़ा 175 तक जा सकता है। इससे पहले राउत ने ‘सामना’ में एक लेख के जरिए बीजेपी पर तीखा हमला बोला था। राऊत ने लिखा कि बीजेपी को विधानसभा चुनाव में 105 सीटें मिली हैं। अगर शिवसेना साथ नहीं होती तो यह आंकड़ा 75 के पार नहीं गया होता। उन्होंने लिखा कि ‘युति’ थी, इसलिए ‘गति’ मिली मगर अब पहले से निर्धारित शर्तों के मुताबिक देवेंद्र फडणवीस शिवसेना को ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद देने को नहीं तैयार हैं।

शेर के जरिए साधा बीजेपी पर निशाना
इससे पहले संजय राउत ने मशहूर शायर वसीम बरेलवी के एक शेर के जरिये भी गठबंधन सहयोगी बीजेपी पर निशाना साधा। राउत ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा है, ‘उसूलों पर जहां आंच आए, टकराना जरूरी है, जो जिंदा हो, तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है …जय महाराष्ट्र।’
लेख में राउत ने फडणवीस को निशाने पर लेते हुए कहा कि पदों के समान बंटवारे की बात उन्होंने ऑन रिकॉर्ड बोली थी और अब पलटी मार ली। अब पुलिस, सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग की मदद से सरकार बनाने के लिए हाथ की सफाई दिखा रहे हैं। इंदिरा गांधी के आपातकाल को काल दिन कहने वाले अब ऐसे क्यों बन गए हैं। सभी को भ्रम था कि 2014 की तरह इस बार भी शिवसेना सभी शर्तें मान लेगी, मगर इस भ्रम को उद्धव ठाकरे ने 8 घंटे में दूर कर दिया। शिवसेना इस बार जल्दबाजी नहीं दिखाएगी और न ही घुटने टेकेगी।
शिवसेना के कद्दावर नेता संजय राउत ने अपने लेख में सरकार गठन के पांच संभव तरीके गिनाए हैं।

दांव 1– बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होने की हैसियत से शिवसेना को छोड़कर सरकार बनाने के लिए दावा पेश कर सकती है। बीजेपी के 105 विधायक हैं। 40 और की जरूरत पड़ेगी। अगर ये विधायक नहीं मिले तो विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान सरकार धाराशायी हो जाएगी और 40 विधायक हासिल करना असंभव ही दिखता है।

दांव 2– साल 2014 की तरह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बीजेपी को समर्थन देगी। एनसीपी अगर एनडीए में शामिल होगी, तो इसके बदले सुप्रिया सुले को केंद्र में और अजीत पवार को राज्य में पद दिया जाएगा। हालांकि 2014 में की गई भयंकर भूल शरद पवार एक बार फिर नहीं करेंगे। पवार को बीजेपी के विरोध में सफलता मिली है और महाराष्ट्र ने उन्हें सिर पर उठाया है। आज वह शिखर पर हैं। अगर उन्होंने बीजेपी को समर्थन दिया तो उनका यश मिट्टी में मिल जाएगा।

दांव 3- बीजेपी बहुमत साबित करने में नाकाम होगी तब दूसरी बड़ी पार्टी होने के नाते शिवसेना सरकार बनाने का दावा पेश करेगी। एनसीपी के 54, कांग्रेस के 44 और अन्य की मदद से बहुमत का आंकड़ा १७० तक पहुंच जाएगा। शिवसेना अपना खुद का मुख्यमंत्री बना सकेगी। अटल बिहारी वाजपेयी ने जिस तरह दिल्ली में सरकार चलाई थी, उसी तरह सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। इसी में महाराष्ट्र का हित है।

दांव 4- बीजेपी और शिवसेना को मजबूर होकर साथ आना होगा और सरकार बनानी होगी। इसके लिए दोनों को ही चार कदम पीछे लेने पड़ेंगे। शिवसेना की मांगों पर विचार करना होगा। मुख्यमंत्री पद का विभाजन करना होगा और यही एक बेहतरीन रास्ता है, मगर अहंकार के चलते यह संभव नहीं है।

दांव 5- ईडी, पुलिस, पैसा, धाक आदि के दम पर अन्य पार्टियों के विधायक तोड़कर बीजेपी को सरकार बनानी पड़ेगी। इसके लिए ईडी के एक प्रतिनिधि को मंत्रिमंडल में शामिल करना होगा, मगर दल बदलने वालों की क्या दशा हुई, इसे वोटरों ने दिखा दिया है। फूट डालकर बहुमत हासिल करना, मुख्यमंत्री पद पाना आसान नहीं है। इन सबसे मोदी की छवि धूमिल होगी।

गोपीनाथ मुंडे होते, तो गठबंधन में कटुता न होती
संजय राउत ने आगे लिखा कि देवेंद्र फडणवीस के लिए आज पार्टी में कोई विरोधी या मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं बचा है। यह एक अजीबोगरीब संयोग है। गोपीनाथ मुंडे आज होते तो महाराष्ट्र का दृश्य अलग होता। मुंडे मुख्यमंत्री बन गए होते तो गठबंधन में आज जैसी कटुता नहीं दिखती,लेकिन उनका निधन हो गया। एकनाथ खडसे को पहले ही हाशिए पर डालकर खत्म कर दिया गया। खडसे की बेटी को भी पराजित कर दिया गया। पंकजा मुंडे भी पराजित हो गयीं। विनोद तावड़े को घर बैठा दिया गया और चंद्रकांत पाटील को मुश्किलों में डाल दिया गया। फिर भी फडणवीस सरकार नहीं बना सके और एक-एक निर्दलीय को जमा कर रहे हैं। मगर इस गुणा-गणित से 145 विधायक इकट्ठा हो जाएंगे क्या?

इस बार विपक्ष मजबूत, हाथ में तलवार लिए खड़ा है
राउत ने लिखा कि सरकार किसी की आए, मगर विधानसभा में विरोधियों की तोप का सामना करना मुश्किलों भरा होगा। ऐसे लोग विरोधी बेंच पर निर्वाचित हुए हैं। 2014 में विरोधी दल कमजोर, कम कुव्वत वाला और निराश था। इस बार जयंत पाटील, धनंजय मुंडे, पृथ्वीराज चव्हाण, अशोक चव्हाण, अजीत पवार, जितेंद्र आह्वाड समेत 100 से ज्यादा विरोधियों की फौज सरकार को रोकने के लिए खड़ी है। सरकार बने और सरकार काम करे, यह सभी की इच्छा है, लेकिन ‘हम नहीं तो कोई नहीं’ इस अहंकार के कारण सब कुछ अटक गया है। महाराष्ट्र शिवराय का है, किसी की जागीर नहीं है। हमारी सत्ता आए या न आए, महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन आएगा, ऐसा डर सुधीर मुनगंटीवार दिखा चुके हैं। यह इसी अहंकार का हिस्सा है। राष्ट्रपति शासन लगाकर राज करना यह बीजेपी की शताब्दी की सबसे बड़ी हार कहलाएगी। ऐसी हिम्मत एक बार करके देख ही लो।

बता दें कि शिवसेना नेता संजय राउत के शरद पवार से उनके आवास पर मुलाकात के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनने के कयास लगाए जा रहे थे लेकिन पवार ने अपने बयान में इस तरह की सरकार बनाने की संभावना की एक तरह से खारिज किया है।
शरद पवार ने नासिक में पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री पद के बंटवारे को लेकर बीजेपी और उसके सहयोगी दल शिवसेना के बीच चल रहे गतिरोध को बचकाना बताया। एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से शिवसेना की सरकार बनने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर पवार ने कहा कि इस संबंध में उनकी पार्टी में कोई चर्चा नहीं हुई है। उन्होंने कहा, हमारे पास स्पष्ट बहुमत नहीं है। जनता ने हमें विपक्ष में बैठने को कहा है। हम उस जनादेश को स्वीकार करते हैं और ध्यान रखेंगे कि हम उस भूमिका को प्रभावी ढंग से निभाएं।
शिवसेना के 50-50 फॉर्म्युले पर जोर देने पर पवार ने कहा, लोगों ने उन्हें सरकार बनाने का मौका दिया है। उन्हें इसका इस्तेमाल करना ही चाहिए। लेकिन अभी जो चल रहा है, वह मेरी राय में बचकाना है। दूसरी ओर कांग्रेस में शिवसेना को समर्थन देने को लेकर खेमेबाजी नजर आ रही है। कांग्रेस के राज्‍यसभा सांसद हुसैन दलवई ने शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने का समर्थन किया है। उन्‍होंने इस संबंध में कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिखी है।
सोनिया गांधी को लिखे पत्र में दलवई ने कहा है कि कांग्रेस को सरकार बनाने में शिवसेना का समर्थन करना चाहिए। दलवई का कहना है कि कांग्रेस के उम्मीदवार प्रतिभा पाटील और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने में शिवसेना ने कांग्रेस का समर्थन किया था। ऐसे में अब महाराष्‍ट्र में कांग्रेस को भी शिवसेना का समर्थन करना चाहिए। इससे पहले महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात भी की थी।
हालांकि सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस आलाकमान इस पर जल्दबाजी में फैसला नहीं लेना चाहती है और समर्थन पर वे एनसीपी के फैसले का भी इंतजार कर रहे हैं। इस बीच एनसीपी मुखिया शरद पवार नासिक दौरा छोड़कर मुंबई आ रहे हैं जहां वे पार्टी के नेताओं से राय लेंगे। यह भी कहा जा रहा है कि वह सोमवार को सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली भी जा सकते हैं।
बता दें कि 21 अक्टूबर को हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने वाली बीजेपी ने 105 और शिवसेना ने 56 सीटें जीती हैं। वहीं एनसीपी ने 54 और कांग्रेस ने 44 सीटें हासिल कीं।