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जरूर पढ़ें : कौन थे धन्वंतरी और क्‍यों होती है धनतेरस पर इनकी पूजा

धनतेरस के पर्व को दीपावली का आरंभ माना जाता है। इस दिन को धन एवं आरोग्य से जोड़कर देखा जाता है। यही कारण है कि इस दिन भगवान धनवंतरि और कुबेर का पूजन अर्चन किया जाता है। ताकि हर घर में समृद्धि और आरोग्य बना रहे। इस दिन आरोग्य के देवता धनवंतरी, मृत्यु के अधिपति यम, वास्तविक धन संपदा की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी तथा वैभव के स्वामी कुबेर की पूजा की जाती है।
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धन की देवी के उत्सव का प्रारंभ होने के कारण इस दिन को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धनतेरस को धन त्रयोदशी व धन्वन्तरी त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस पर पांच देवताओं, गणेश जी, मां लक्ष्मी, ब्रह्मा,विष्णु और महेश की भी पूजा होती है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान धनवन्‍तरी का जन्‍म हुआ था जो कि समुन्‍द्र मंथन के दौरान अपने साथ अमृत का कलश और आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे और इसी कारण से भगवान धनवन्‍तरी को औषधी का जनक भी कहा जाता है। इस बार धनतेरस 5 नवंबर यानी आज है।
१. इस त्योहार को मनाए जाने के पीछे मान्यता है कि लक्ष्मी के आह्वान के पहले आरोग्य की प्राप्ति और यम को प्रसन्न करने के लिए कर्मों का शुद्धिकरण अत्यंत आवश्यक है। कुबेर भी आसुरी प्रवृत्तियों का हरण करने वाले देव हैं।

२. धनवंतरि और मां लक्ष्मी का अवतरण समुद्र मंथन से हुआ था। दोनों ही कलश लेकर अवतरित हुए थे। इसके साथ ही मां लक्ष्मी का वाहन ऐरावत हाथी भी समुद्र मंथन द्वारा अवतरित हुआ था।

३. श्री सूक्त में लक्ष्मी के स्वरूपों का विवरण कुछ इस प्रकार मिलता है। ‘धनमग्नि, धनम वायु, धनम सूर्यो धनम वसु:’अर्थात् प्रकृति ही लक्ष्मी है और प्रकृति की रक्षा करके मनुष्य स्वयं के लिए ही नहीं, अपितु नि:स्वार्थ होकर पूरे समाज के लिए लक्ष्मी का सृजन कर सकता है।

४. श्री सूक्त में आगे यह भी लिखा गया है- ‘न क्रोधो न मात्सर्यम न लोभो ना अशुभा मति’ तात्पर्य यह कि जहां क्रोध और किसी के प्रति द्वेष की भावना होगी, वहां मन की शुभता में कमी आएगी, जिससे वास्तविक लक्ष्मी की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होगी। यानी किसी भी प्रकार की मानसिक विकृतियां लक्ष्मी की प्राप्ति में बाधक हैं।

५. आचार्य धनवंतरि के बताए गए मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी उपाय अपनाना ही धनतेरस का प्रयोजन है। श्री सूक्त में वर्णन है कि, लक्ष्मी जी भय और शोक से मुक्ति दिलाती हैं तथा धन-धान्य और अन्य सुविधाओं से युक्त करके मनुष्य को निरोगी काया और लंबी आयु देती हैं। अत: धनतेरस पर लक्ष्मी जी का पूजन अवश्य करें।

कैसे करें धनतेरस की पूजा :

1. सबसे पहले मिट्टी का हाथी और धन्वंतरि भगवानजी की फोटो स्थापित करें।

2. चांदी या तांबे की आचमनी से जल का आचमन करें।

3. भगवान गणेश का ध्यान और पूजन करें।

4. हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर भगवान धन्वंतरि का ध्यान करें।

5. नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करे।

6. सायंकाल दीपक प्रज्वलित कर घर, दुकान आदि को श्रृंगारित करें।

7. मंदिर, गोशाला, नदी के घाट, कुओं, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएं।

8. यथाशक्ति तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन और जेवर खरीदना चाहिए।

9. हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें।

10. कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआँ, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएं।​

चलित कथा के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन से आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। उन्होंने देवताओं को अमृतपान कराकर अमर कर दिया था। भगवान धन्वंतरी की चार भुजायें हैं जिसमें ऊपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुए हैं, जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। इन्हें आयुर्वेदिक चिकत्सक वाला देवता माना जाता है। इन्होंने कई औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में दिवोदास भी हुए और उन्होंने ‘शल्य चिकित्सा’ का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया था और इसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे। उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखा था और सुश्रुत को विश्व का पहला सर्जन माना जाता है।