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जन्मदिन विशेष: इंदिरा गांधी एक लौह महिला जिसने बदली भारत की तस्वीर!

आयर लेडी के नाम से मशहूर देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आज जयंती है। आज से 103 साल पहले 19 नवंबर को ही उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इंदिरा गांधी का जन्म हुआ था। जब भी देश को चांद पर ले जाने की बात कही जाएगी इंदिरा गांधी का नाम जरूर सामने आएगा। जब भी देश को परमाणु शक्ति बनाए जाने की बात लिखी जाएगी इंदिरा का नाम जरूर लिया जाएगा। यही नहीं जब भी पाकिस्तान को धूल चटाने की बात कही जाएगी इंदिरा गांधी का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। वह इंदिरा गांधी ही थी जिसने पाकिस्तान में त्रस्त बांग्लादेशियों को मुक्त कराने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। आज इंदिरा गांधी की 101वीं जयंती है।
भारत की लौह महिला वह अकेली महिला हैं जिन्होंने न केवल अपने देश में बल्कि विदेश में भी अपनी मजबूती और इरादों के डंके बजवाए हैं। चाहे परमाणु परीक्षण के दौरान बुद्धा स्माइलिंग की बात हो या फिर पाकिस्तान के अत्याचार से जूझ रहे बांग्लादेश को आजाद कराने की या फिर आपातकाल और अंतरिक्ष में अमेरिका को अपनी मजबूती दिखाने की, हर जगह इंदिरा गाँधी का डंका बजा है।
 
कांग्रेस अध्यक्ष से प्रधानमंत्री तक का सफर!
देश की आजादी के बाद वह दौर कांग्रेस पार्टी का था या कहें कि वर्चस्व कांग्रेस का था। उस समय देश में विपक्षी पार्टियों का अस्तित्व बहुत ही कमजोर था। इस वजह से भारतीय गणतंत्र में एक तरह का खालीपन था। सक्रिय राजनीति में इंदिरा गांधी ने बहुत बाद में कदम रखा या यूं कहें कि वह पंडित नेहरू के निधन के बाद ही पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो पाई थीं। लेकिन साल 1959 में जब इंदिरा गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं थीं तो उन्होंने यह सोच लिया था कि कम्युनिस्ट सरकार को किस तरह से किनारे लगाना है। केरल में उस दौरान कम्युनिस्ट की सरकार थी जिसे पलटकर वहां राष्ट्रपति शासन लगाए जाने का पूरा व्यूह इंदिरा जी ने ही रचा था।

बुलंद हौंसलों के आगे दुनिया हुई नतमस्तक!
वह इंदिरा ही थीं जिनके बुलंद हौसलों के आगे पूरी दुनिया ने घुटने टेके थे। इंदिरा गांधी अपने मजबूत इरादों को लेकर अपनी राजनीति के शुरुआती दिनों से ही काफी चर्चा में रही। उन्होंने पहली बार प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में सूचना और प्रसारण मंत्री का पद संभाला था। शास्त्री जी के निधन के बाद वह देश की तीसरी प्रधानमंत्री बनीं। जनवरी 1966 से लेकर मार्च 1977 तक और फिर जनवरी 1980 से लेकर अक्तूबर 1984 (जब इंदिरा की हत्या हुई) तक देश की प्रधानमंत्री रहीं।
वह भारत की पहली ऐसी सशक्त महिला प्रधानमंत्री थीं, जिनके बुलंद हौसलों के आगे पूरी दुनिया ने घुटने टेक दिए थे। यह उनके बुलंद हौसले ही थे जिसकी बदौलत बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। यही नहीं उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी देशों के मुकाबले में खुद को अग्रणी बनाए रखने के लिए कई ऐसी पहल की जिसने दुनिया में भारत को नंबर एक बनाने की ओर पहला कदम बढ़ाया।

अंतरिक्ष में भी झंडे गाड़े, कहा- सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा…
अंतरिक्ष में अपना झंडा स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा के रूप में फहरवाने वाली इंदिरा गांधी ही थीं। जब राकेश शर्मा से वो बात करते हुए पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा लग रहा है तो उन्होंने कहा था ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा। वह इंदिरा ही थीं जिन्होंने सत्ता से बाहर फेंके जाने के डर के बाद भी पंजाब में फैले उग्रवाद को उखाड़ फेंकने के लिए कड़े फैसले लिए और ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया और स्वर्ण मंदिर तक सेना भेजी।

पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी
1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच जंग और इंदिरा गांधी के साहसिक फैसले को दुनिया यूं ही नहीं याद रखती है। 1971 की लड़ाई के बाद दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश का उदय हुआ। तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान के शासक अपना हिस्सा नहीं मानते थे, बल्कि उपनिवेश के तौर पर देखते थे।
पाकिस्तान की सेना अपने ही नागरिकों पर जुल्म ढा रही थी। इन सब हालात में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों और नेताओं ने भारत से मदद मांगी। इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने मदद देने का फैसला किया। इंदिरा गांधी ने तथ्यों का हवाला देकर बताया कि भारत सरकार का फैसला तर्कसंगत था। उनका कहना था कि उस समय चुप्पी का मतलब ही नहीं था।
पूर्वी पाकिस्तान में सेना अत्याचार कर रही थी, पाकिस्तान की अपनी ही सेना अपने नागरिकों को निशाना बना रही थी। सेना के जवान पूर्वी पाकिस्तान की महिलाओं के साथ उनके बड़े बुजुर्गों के सामने ही दुष्कर्म कर रहे थे। अपने फैसले का बचाव करते हुए उन्होंने सवाल करने वाले से पूछा कि जब जर्मनी में हिटलर खुलेआम यहुदियों की हत्या कर रहा था तो उस वक्त पश्चिमी देश शांत तो नहीं बैठे।
यूरोप के दूसरे देश हिटलर के खिलाफ उठ खड़े हुए। कुछ उसी तरह के हालात पूर्वी पाकिस्तान में बन चुके थे और उनके सामने दखल देने के अलावा और कोई चारा नहीं था। वो पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार होते हुए नहीं देख सकती थीं।

पोखरण में जब मुस्कुराए बुद्ध 
वह दिन 18 मई 1974 था जब भारत परमाणु शक्ति बना। गरीब और सपेरों का देश कहे जाना वाले भारत की शक्ति को देख दुनिया चौंक गई। भारत अब परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्र था। भारत जिस समय तरक्की की नई इबारत लिख रहा था उस वक्त अमेरिका, वियतनाम जैसे शक्तिशाली देश युद्ध में उलझे हुए थे।
लिहाजा भारत के परमाणु परीक्षण की तरफ उसका ध्यान उस वक्त गया, जब भारत ने खुद को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित किया। अमेरिका इस बात से परेशान था कि उसकी खुफिया एजेंसियां कैसे यह बात पता लगाने में पिछड़ गईं। फिर उसने अपनी शक्ति का दबदबा बनाए रखने के लिए भारत पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए जिसे इंदिरा गांधी ने न केवल स्वीकार किया बल्कि उसे चुनौती के आगे भी निकलीं।

वो काला पन्ना आपातकाल का
धीरे-धीरे भारत में असंतोष बढ़ रहा था। विपक्षी दल तेजी से उभर रहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लगने लगा था कि अब उनकी प्रजा उनके विरोध में उतर चुकी है और फिर उन्होंने अपने खिलाफ उठ रही आवाज को दबाने के लिए आपातकाल की मदद ली। आपातकाल के समय देवकांत बरुआ कांग्रेस के अध्यक्ष थे और उन्होंने  एक नया नारा दिया इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया। 

ऑपरेशन ब्लूस्टार की कहानी
वो इंदिरा ही थीं जिसने पंजाब में फैले उग्रवाद को समाप्त करने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया और 1984 में स्वर्ण मंदिर पर कब्जा किए उग्रवादियों को निकाल फेंकने के लिए कड़े फैंसले लिए।  उन्होंने पवित्र स्थल से उग्रवादियों को बाहर निकाला। जो बाद में उनकी मौत का कारण भी बना।
स्वर्ण मंदिर परिसर पर जरनैल सिंह भिंडरावाला, कोर्ट मार्शल किए गए मेजर जनरल सुभेग सिंह और सिख सटूडेंट्स फेडरेशन ने चारों तरफ मोर्चाबंदी कर ली थी। उन्होंने भारी मात्रा में आधुनिक हथियार और गोला-बारूद भी जमा कर लिया था। इंदिरा आम चुनाव से पहले पंजाब में शांति चाहती थीं, लेकिन ऑपरेशन ब्लू स्टार से सिक्खों की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं।
इंदिरा गाँधी ने पंजाब आने-जाने वाली सभी यातायात सेवाओं पर रोक लगाई। फोन काट दिए गए, पूरी तैयारी के बाद विदेशी मीडिया को राज्य के बाहर किया गया। और फिर तीन जून को भारतीय सेना की एक टुकड़ी ने स्वर्ण मंदिर परिसर को घेरा और पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया। चूंकि पूरे मंदिर में खालिस्तानी आंतकियों का बोलबाला था इसलिए पूरे मंदिर में असलहों का अंदाजा लगाने के लिए मंदिर परिसर में जमकर भारतीय सेना ने गोलीबारी की। 5 जून की रात को सेना और सिख लड़ाकों के बीच असली भिड़त शुरू हुई और जरनैल सिंह भिंडरवाला की मौत हुई। ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर ने इंदिरा गांधी को ब्रिटेन का पूरा समर्थन दिया था।

जिसने पूरे भारत की बैंकिंग व्यवस्था ही बदल दी
आज से करीब 51 साल पहले..19 जुलाई 1969  तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के एक फैसले ने देश की पूरी बैंकिंग प्रणाली बदल दी थी। जब इंदिरा गांधी ने 14 बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था। आज भी वह फैसला बैंकों को प्रभावित कर रहा है।
राष्ट्रीयकरण को सरल भाषा में सरकारीकरण भी कह सकते हैं। जब किसी संस्था या व्यापारिक इकाई का स्वामित्व सरकार के अधीन होता है, तो उसे राष्ट्रीयकृत संस्था या इकाई कहा जाता है। ऐसी संस्थाओं पर सरकार का स्वामित्व तब ही माना जाता है जब उसकी पूंजी का न्यूनतम 51 फीसदी हिस्सा सरकार के पास हो। भारत में सबसे पहला राष्ट्रीयकृत बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI) था। इसका राष्ट्रीयकरण 1955 में ही कर दिया गया था। 
फिर 1958 में एसबीआई के सहयोगी बैंकों को भी राष्ट्रीयकृत कर दिया गया। सबसे बड़े पैमाने पर बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 में इंदिरा गांधी ने किया। 14 बड़े बैंकों का एक साथ राष्ट्रीयकरण हुआ। इसके बाद 1980 में राष्ट्रीयकरण का दौर चला। जब सात बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया।

बैंक ऑफ इंडिया
पंजाब नेशनल बैंक
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
इंडियन बैंक
बैंक ऑफ बड़ौदा
देना बैंक
यूको बैंक
सिंडिकेट बैंक
केनरा बैंक
इलाहाबाद बैंक
यूनाइटेड बैंक
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
इंडियन ओवरसीज बैंक
बैंक ऑफ महाराष्ट्र

विशेषज्ञों के अनुसार, राष्ट्रीयकरण की मुख्य वजह बड़े व्यवसायिक बैंकों द्वारा अपनाई जाने वाली ‘क्लास बैंकिंग’ नीति थी। बैंक केवल धनपतियों को ही ऋण व अन्य बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध करवाते थे। 
इन बैंकों पर ज्यादातर बड़े औद्योगिक घरानों का आधिपत्य था।
कृषि, लघु व मध्यम उद्योगों, छोटे व्यापारियों को सरल शर्तों पर वित्तीय सुविधा देने, आम लोगों को बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राष्ट्रीयकरण किया गया। 
आर्थिक तौर पर सरकार को लग रहा था कि कॉमर्शियल बैंक सामाजिक उत्थान की प्रक्रिया में सहायक नहीं हो रहे थे। 
विशेषज्ञों के अनुसार, उस समय देश के 14 बड़े बैंकों के पास देश की करीब 70 फीसदी पूंजी थी। लेकिन इनमें जमा पैसा सिर्फ उन्हीं क्षेत्रों में निवेश किया जा रहा था, जहां लाभ के अवसर ज्यादा थे।
हालांकि कुछ जानकार इंदिरा के इस फैसले को राजनैतिक अवसरवादिता भी मानते हैं। उनके अनुसार, 1967 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं, तो पार्टी पर उनकी पकड़ मजबूत नहीं थी।
कहा जाता है कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण का प्रस्ताव रखने से लोगों में संदेश गया कि इंदिरा गरीबों के हक की लड़ाई लड़ने वाली प्रधानमंत्री हैं।
जिस अध्यादेश के जरिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण का प्रस्ताव लाया गया, उसका नाम था ‘बैंकिंग कंपनीज ऑर्डिनेंस’। बाद में इसी नाम से विधेयक पारित हुआ और कानून बना। 

विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रीयकरण के बाद भारत के बैंकिंग क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। 
‘क्लास बैंकिंग’ की नीति ‘मास बैंकिंग’ मे बदल गई। यानी आम लोगों को भी ऋण और अन्य बैंकिंग सुविधाएं मिलने में आसानी हुई।
ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की शाखाओं का बड़े पैमाने पर और तेजी से विस्तार हुआ।
आंकड़ों पर गौर करें, तो जुलाई 1969 में देश में बैंकों की कुल 8322 शाखाएं थीं। 1994 तक ये आंकड़ा 60 हजार से ज्यादा पहुंच गया।
बैंकों के पास काफी मात्रा में पैसा इकट्ठा हुआ। जिसे कर्ज के रूप में दिया गया। जिससे छोटे उद्योग, कृषि और छोटे ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स जैसे क्षेत्रों को फायदा हुआ। 
सरकार ने राष्ट्रीय बैंकों को लोन पोर्टफोलियो में 40 फीसदी कृषि लोन की हिस्सेदारी का निर्देश दिया। बैंकों की शाखाएं बढ़ने से देश में इस क्षेत्र में रोजगार के मौके भी बढ़े।

इंदिरा गांधी को 3 कामों के लिए देश सदैव याद करता रहेगा। पहला बैंकों का राष्ट्रीयकरण, दूसरा राजा-रजवाड़ों के प्रिवीपर्स की समाप्ति और तीसरा पाकिस्तान को युद्ध में पराजित कर बांग्लादेश का उदय। इसके अलावा इंदिरा गांधी को फैशन सेंस के लिए भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी का फैशन सेंस लाजवाब था। वह एक सशक्त राजनेता के साथ एक आधुनिक महिला भी थी। इंदिरा गांधी का पूरा नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी है।

गरीबी हटाओ
1971 में इंदिरा गांधी ने विपक्षियों की अपील ‘इंदिरा हटाओ’ के जवाब में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया। इसके तहत वित्त पोषण, ग्राम विकास, पर्यवेक्षण और कर्मिकरण आदि कार्यक्रम प्रस्तावित थे। यद्यपि ये कार्यक्रम गरीबी हटाने में असफल रहा लेकिन इंदिरा गांधी के इस नारे ने काम किया और उन्होंने चुनाव जीत लिया।

आभास था, मृत्यु निकट है
इंदिरा गांधी को आभास हो चला था कि उनकी मृत्यु निकट है। 30 अक्तूबर को जब वह भाषण दे रही थीं तो उन्होंने कहा था मैं आज यहां हूं, कल शायद यहां न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो…मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।

  • राजेश जायसवाल