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महाराष्ट्र में एक बार फिर तेज हुई सियासी हलचल, क्या ‘चाणक्य’ फिर लिख रहे कोई नई स्क्रिप्ट?

क्या सचमुच उद्धव सरकार गिराने की हो रही कोशिश?

मुंबई, (राजेश जायसवाल): महाराष्ट्र में रविवार से सियासी हलचलें तेज हो गई हैं। इसके केंद्र बिन्दु ‘राजनीति के चाणक्य’ माने जाने वाले शरद पवार को माना जा रहा है। सोमवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार का राजभवन में जाकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलना और मंगलवार को बांद्रा के कला नगर स्थित ‘मातोश्री’ पहुँच मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात करना, सियासी गलियारों में एक नई पैदा कर दी है। हालांकि एक हफ्ते में दोनों नेताओं की यह दूसरी मुलाकात है। लेकिन हलचल तो पैदा हुई उनकी एक दिन पहले की मुलाकात से। जब वह सोमवार को राज्यपाल कोश्यारी से मिले, जिसके बाद ‘उद्धव सरकार’ के भविष्य को लेकर तमाम तरह की अटकलें शुरू हो गईं। इस सियासी मसले पर शिवसेना और एनसीपी दोनों ही सब कुछ ठीक होने का दावा कर रही हैं लेकिन पवार तो पवार हैं, उन्हें समझना इतना आसान भी कहां है?

चौंकाना पवार साहेब की फितरत, समझना मुश्किल?
यहां आपको बता दें कि बड़े से बड़े राजनीतिक पंडितों के लिए भी शरद पवार को समझना बहुत ही टेढ़ी खीर है। चौंकाना शरद पवार की जैसे फितरत है। 1978 में जब पवार 38 साल के युवा नेता थे तो महाराष्ट्र की वसंत दादा पाटिल सरकार को गिराकर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था। जनता पार्टी के समर्थन से वह तब महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने। उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। तब से ही पवार महाराष्ट्र और देश के सियासी पटल पर छाए हुए हैं। 3 बार मुख्यमंत्री, केंद्र में रक्षामंत्री से लेकर मनमोहन सरकार में लगातार 10 सालों तक कृषि मंत्री तक। बीच-बीच में राष्ट्रपति पद के लिए भी उनका नाम उछलता रहता है।

1999 में कांग्रेस से अलग, बाद में उसी के साथ सरकार बनाना
पवार ने 1987 में फिर से कांग्रेस में वापसी की। जून 1988 से जून 1991 और मार्च 1993 से मार्च 1995 तक फिर से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। बीच में जून 1991 और मार्च 1993 तक देश के रक्षामंत्री की जिम्मेदारी भी निभाई। वह कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में गिने जाने लगे लेकिन 1999 में उन्होंने कांग्रेस को फिर चौंकाया। सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया। बाद में उसी साल जब महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हुए तो पवार ने राजनीतिक पंडितों को फिर चौंकाया। जिस कांग्रेस से अलग हुए उसी के नेतृत्व में सूबे में गठबंधन की सरकार बनाई।

2014 में फडणवीस सरकार को समर्थन का ऐलान
शरद पवार को यूं ही राजनीति का चाणक्य नहीं कहा जाता! 2014 में बीजेपी और शिवसेना की राहें अलग हो गईं। दोनों ने अलग-अलग महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ा। बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। शरद पवार ने राज्य में ‘राजनीतिक स्थिरता’ के लिए बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। यह बात दीगर है कि एनसीपी और बीजेपी में गठबंधन बनता देख शिवसेना फिर से बीजेपी के साथ आ गई और फडणवीस सरकार में बतौर जूनियर पार्टनर शामिल हो गई।

पिछले साल भी महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे के केंद्र बिंदु रहे पवार
बात शरद पवार के राजनीतिक कौशल की हो रही है तो पिछले साल का महाराष्ट्र का सियासी ड्रामा कोई कैसे भूल सकता है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला था लेकिन सीएम पद को लेकर पेच ऐसा फंसा कि सरकार नहीं बनी और राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। नवंबर में रातों रात अचानक राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया और देवेंद्र फडणवीस ने सीएम पद की शपथ ली। उनके साथ शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने डेप्युटी सीएम पद की शपथ ले ली। शरद पवार को ईडी का रास्ता दिखाने का बदला महाराष्ट्र बीजेपी को अपना दामन दागदार करके चुकाना पड़ा!

देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और अजीत पवार ने डेप्युटी सीएम पद की शपथ ले ली (फाइल फोटो)

किसका था स्क्रिप्ट? अजीत की डेप्युटी सीएम के तौर पर वापसी से गहराया रहस्य
महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल आ गया। इसके पीछे शरद पवार के दिमाग को कहा जाने लगा। हालांकि बाद में बहुत तेजी से नाटकीय घटनाक्रम हुए। फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा और आखिरकार उद्धव ठाकरे की अगुआई में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की महाविकास अघाड़ी सरकार बनी। शरद पवार इस सरकार के शिल्पी बनकर उभरे। बाद में अजीत पवार फिर से ठाकरे सरकार में डेप्युटी सीएम बने। अभी तक कोई नहीं समझ पाया कि अजीत पवार के फडणवीस के साथ सरकार बनाने के पीछे कौन था? क्या वाकई अजीत पार्टी का मूड भांप नहीं पाए या फिर सारा स्क्रिप्ट शरद पवार का लिखा हुआ था? अजीत की डेप्युटी सीएम के तौर पर वापसी ने इस रहस्य को और गहरा दिया।

बिना आग के धुआं नहीं उठता
शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने मंगलवार को बताया कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे की मुलाकात हुई है जो डेढ़ घंटे चली। उन्होंने कहा कि सरकार मजबूत है और उस पर कोई खतरा नहीं है। ऐसी अटकलें हैं कि कोविड-19 महामारी से निपटने के तरीके को लेकर शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के बीच मतभेद पैदा हो गए हैं। राउत ने संभावित राजनीतिक संकट की ओर इशारा करते हुए कहा, विपक्ष को अभी भी कोरोना के लिए टीका और उद्धव ठाकरे की सरकार को गिराने के लिए खुराक खोजना बाकी है लेकिन प्रयास जारी हैं। वास्तव में यही बयान बताता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अगर सब कुछ सही है तो इसकी मुनादी की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए। शिवसेना कह रही है सब ठीक है। कांग्रेस भी कह रही है सब अच्छा है। एनसीपी भी कह रही है कि सब ठीक है। सब कुछ ठीक की मुनादी ही बताती है कि अंदर ही अंदर कुछ पक जरूर रहा है। कोरोना वायरस से सबसे बुरी तरह प्रभावित महाराष्ट्र में अंदरखाने सियासी दांव-पेच भी शायद शुरू हो चुका है। वह ‘चाणक्य’ ही क्या कि जिसकी चाल सबको समझ में आ जाए।

राजनीति में चाणक्य की नीतियों की अहम भूमिका
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कभी भी रिस्क लेने से नहीं डरना चाहिए। कई बार भविष्य में कुछ अच्छा करने के लिए वर्तमान में कुछ कड़े निर्णय लेने पड़ते हैं। यदि कोई व्यक्ति रिस्क लेने से डरेगा तो वह बिजनेस हो या फिर राजनीति में सफल नहीं हो सकेगा। तो क्या महाराष्ट्र के ‘चाणक्य’ 2020 में भी एक बार फिर हम सबको चौंकाने वाले हैं? इसके लिए थोड़ा इंतज़ार करना होगा।

राहुल गांधी बोले- महाराष्‍ट्र में बड़े फैसले हम नहीं करते
विपक्षी नेताओं ने महाराष्ट्र में कोविड-19 संकट को हल न कर पाने के आरोपों के बीच राज्य सरकार को बर्खास्त करने की मांग की है। इस मामले पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी महाराष्ट्र सरकार को चलाने में प्रमुख भूमिका में नहीं है।
यहां कांग्रेस ‘महा-विकास अघाड़ी’ का हिस्सा है और उसके पास प्रमुख मंत्रालय है, लेकिन राहुल गांधी ने कहा, हम केवल सरकार को मदद कर रहे हैं और राज्य में ‘प्रमुख भूमिका’ में नहीं हैं।

हालांकि, राहुल गांधी ने महाराष्ट्र सरकार का बचाव किया और कहा कि मुंबई पूरे देश से जुड़ा हुआ है और यही कारण है कि वहां कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं।
राहुल गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी जहां अपनी सरकार चला रही है, वहां वह बेहतर काम कर रही है।
राहुल गांधी का बयान महाराष्ट्र में एमवीए सरकार के लिए एक झटका माना जा रहा है, जहां राजनीति में पहले से ही तनातनी चल रही है।
सोमवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार राजभवन में राज्यपाल से मिलने गए थे। दोनों ही पक्षों ने इसे ‘शिष्टाचार भेंट’ बताया है। राकांपा सांसद प्रफुल्ल पटेल के साथ पवार ने पहली बार राज्यपाल के साथ बैठक की, जबकि राज्यपाल की नियुक्ति सितंबर 2019 में हुई थी।
बाद में सोमवार दोपहर को भाजपा नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने राज्यपाल से मुलाकात की और कथित तौर पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की।

विभिन्न घटनाक्रमों के बीच, नारायण राणे ने दावा किया है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार राज्य में कोविड-19 महामारी संकट को संभालने में विफल रही है। राणे की यह मांग विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस की कोश्यारी से मुलाकात के कुछ दिनों बाद आई और उन्होंने शिकायत की थी कि ठाकरे सरकार कोरोना वायरस स्थिति को संभालने में फेल हो गई है।
राज्यपाल ने इसके बाद संकट की समीक्षा बैठक की जिसमें उद्धव ठाकरे खुद न जाकर, बल्कि अपने करीबी मिलिंद नार्वेकर को भेजा था।