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शेयर बाजारों में तेजी का रुख: सेंसेक्स 50 हजार के पार, निवेशकों के पास कमाई का मौका!

नयी दिल्ली: वैश्विक बाजारों खासकर अमेरिकी से मिले मजबूत संकेतों के दम पर बीएसई सेंसेक्स आज पहली बार 50 हजार अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर गया। अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शपथ ग्रहण के बाद पूरी दुनिया को उम्मीद की किरण दिखाई। उन्होंने दुनियाभर के देशों के साथ रिश्ते सुधारने पर जोर दिया। इससे डाउ जोंस बुधवार को 31,188 अंक के नए रेकॉर्ड पर पहुंच गया। भारतीय बाजार भी इस उम्मीद से झूम उठे और सेंसेक्स पहली बार 50 हजार अंक के पार चला गया।
शेयर बाजार में तेजी की मुख्य वजह अमेरिकी राजनीति में स्थिरता और सत्ता का स्मूथ टांजिशन है। इससे पहले 6 जनवरी को कैपिटल हिल में हुई हिंसा से पूरी दुनिया सकते में थी। बाइडेन ने सभी देशवासियों को साथ लेकर चलने का भरोसा दिया और दुनियाभर के देशों के साथ रिश्ते सुधारने का संकेत दिया। इससे बाजार में यह धारणा मजबूत हुई है कि आने वाले दिनों में जियोपॉलिटिकल सीनेरियो और ट्रेड रिलेशंस में सुधार देखने को मिलेगा। इसी उम्मीद में कि शेयर बाजार नई ऊंचाई छू रहा है। इसके साथ-साथ बाइडेन नें 1.9 ट्रिलियन डॉलर के स्टीम्युलस का भी प्रस्ताव दिया है जिससे अगले कुछ दिनों तक बाजार में तेजी बरकरार रहने की उम्मीद है।

क्या है पेच?
जून-जुलाई में लॉकडाउन की पाबंदियों में ढील दिए जाने के बाद से शेयर बाजारों में तेजी का रुख है। 1 अप्रैल 2020 से शेयर बाजार करीब 70 फीसदी चढ़ चुका है। काफी हद तक इस तेजी की वजह ग्लोबल मार्केट्स में भारी नकदी का होना है जिसका कुछ हिस्सा भारतीय बाजारों में पहुंचा है। 1 अप्रैल से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय इक्विटीज में 2.38 लाख करोड़ रुपये झोंके हैं। निवेशक चाहते हैं कि यह तेजी जारी रहे लेकिन वे जानते हैं कि मार्केट एक्सपेंसिव जोन में ट्रेड कर रहा है और कोई भी निगेटिव न्यूज बाजार की तेजी को खत्म कर सकती है। वैक्सीनेशन से उम्मीद जगी है लेकिन वायरस के नए रूप और उनके खिलाफ वैक्सीन की कारगरता बाजार के लिए चिंता की बात है। दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों द्वारा दिए गए स्टीम्युलस से भी बाजार में चिंता है। कई लोगों का मानना है कि स्टीम्युलस प्रोग्राम की अवधि मार्केट के लिए अहम होगी। अगर सेंट्रल बैंक्स अनुमान से पहले इसे खत्म कर देते हैं तो बाजार में गिरावट आ सकती है। महंगाई बढ़ने, मॉनिटरी पॉलिसी में सख्ती और ब्याज दरों में बढ़ोतरी भी मार्केट्स के लिए अहम होगी। अगर अमेरिकी ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला करता है तो फिर निवेश एमर्जिंग मार्केट इक्विटीज से यूए ट्रेजरी में पैसे जाना शुरू हो जाएगा और इससे शेयर बाजारों में गिरावट आ सकती है।