दिल्लीब्रेकिंग न्यूज़मनोरंजनमुंबई शहरलाइफ स्टाइलशहर और राज्य क्या एसिड अटैक पीड़िता का दर्द और तड़प दिखा पाती है…’छपाक’ 12th January 2020 networkmahanagar 🔊 Listen to this मुंबई: दरअसल एसिड अटैक की (फ़ॉर्म में) कोई कैटेगरी नहीं होती न’…नौकरी के लिए इंटरव्यू देने आई एक लड़की से जब एक असहज बॉस पूछता है कि फ़ॉर्म में क्यों नहीं लिखा कि चेहरा जला हुआ है तो उस लड़की का ये जवाब आपको लाजवाब कर देता है।ऐसी ही जुझारू लड़की की कहानी है छपाक। असल ज़िंदगी में एसिड अटैक का शिकार हो चुकीं लक्ष्मी अग्रवाल के संघर्ष की कहानी को फ़िल्म में दिखाने की कोशिश की है मेघना गुलज़ार और दीपिका पादुकोण ने। कोई चेहरा मिटा के और आँख से हटा के… चंद छींटे उड़ा के जो गया…. छपाक से पहचान ले गया… अरीजीत सिंह की आवाज़ में गाया ये गाना फ़िल्म छपाक की रूह को शब्दों में पिरोता है कि कैसे तेज़ाब के चंद छींटों से किसी की पहचान और ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल कर रह जाती है।ख़ूबसूरती के मानकों से परे, एक हीरोइन के जले-झुलसे चेहरे और रूह को दिखाती ये वाक़ई एक बहादुर फ़िल्म तो कही जा सकती है मगर महान फ़िल्म नहीं।तेज़ाबी हमले में अपने चेहरा, कान, नाक सब खो चुकी मालती की मायूसी, उदासी, छटपटाहट को दीपिका ने ईमानदारी से दिखने की कोशिश की है।मसलन एक सीन में हमले के बाद टूट चुकी मालती (दीपिका) अपना सारा पुराना सामान, चमकीले कपड़े, झुमके फेंक देना चाहती है।जब माँ टोकती है तो मालती तपाक से कहती है, “नाक नहीं है न कान है, झुमका कहाँ पहनूँगी?”कहने को तो वो ख़ुद पर तंज कसती है पर इस कटाक्ष का भार आप अपने कंधों पर महसूस करते हैं।ऑपरेशन के बाद दीपिका के कान में लटका एक मामूली सा झुमका बहुत कुछ कह जाता है।फ़िल्म में बढ़िया काम किया है विक्रांत मेसी ने जो उनके सहकर्मी और दोस्त से होते हुए हमसफ़र बन जाते हैं। दोनों के बीच के खट्टे-मीठे रिश्ते को विक्रांत बहुत ख़ूबसूरती से निभाते हैं- ज़्यादातर अपनी ख़ामोशी से या तो फिर उनकी आँखें बोलती हैं।फ़िल्म एसिड अटैक ही नहीं समाज की पुरुषवादी सोच, लचर क़ानून व्यवस्था और संवेदनहीनता को भी दिखाती है। एक सीन में जब हमले के बाद पुलिस दीपिका के फ़ोन की जाँच करती है तो फ़ोन में बहुत सारे मैसेज लड़कों के होते हैं।तेज़ाबी हमले के बाद तड़प रही दीपिका से हमदर्दी की बजाए पुलिसवालों का सवाल रहता है कि जब वो लड़कियों के स्कूल में पढ़ती है तो उसकी इतने लड़कों से दोस्ती कैसे हो गई -समाज की वही सोच जो कोई भी अपराध होने पर लड़की को ही दोषी ठहराती है।फ़िल्म राज़ी हो, फ़िलहाल हो या तलवार, निर्देशक मेघना गुलज़ार की फ़िल्मों में औरतों के किरदार को हमेशा अहमियत मिलती आई है। छपाक में भी यही देखने को मिलता है। एसिड अटैक पीड़िता का दर्दछपाक की ख़ूबसूरत बात है कि इसमें एक एसिड अटैक पीड़िता का दर्द और उसकी तड़प तो दिखती है लेकिन वो लड़की कभी भी बेचारी नहीं दिखती।प्यार में पहल भी वही करती है- कड़क मिजाज़ वाले विक्रांत मेसी जिससे सब डरते हैं, वो उसकी आँख में आँख डाल के बराबरी पर बात करती है; ये कहते हुए कि वो कोई सरकार थोड़ी है जो वो उससे डरे। वो जानती है कि ज़िंदगी ने उसके साथ नाइंसाफ़ी की है लेकिन हमेशा विक्टिम मोड में और उसके बोझ तले रहना उसे गवारा नहीं है।अपने एनजीओ में छोटी सी क़ामयाबी पर पार्टी करती दीपिका को जब विक्रांत मेसी डाँट देता है और पार्टी बंद करा देता है तो वो बेबाक़ी से उससे बोलती है- “आपकी दिक्कत ये है कि आपको लगता है कि हादसा आपके साथ हुआ है, लेकिन एसिड अटैक मुझ पर हुआ है। आज मैं ख़ुश हूँ और मुझे पार्टी करनी है।”लेकिन एक ईमानदार कोशिश से परे ये फ़िल्म उस हद तक आपके दिल में घर नहीं कर पाती जितना कि उसमें माद्दा था। दीपिका ने मेहनत की है हालांकि फिर भी ऐसा लगता है कि मालती के किरदार की बारीकियाँ और कुछ गहराइयाँ अभी भी अछूती रह गईं।इस फ़िल्म के साथ हिंदी फ़िल्मों में महिला निर्माताओं की लिस्ट में दीपिका का नाम भी जुड़ गया है। दीपिका पादुकोण ने इस फ़िल्म को फ़ॉक्स स्टूडियोज़ के साथ मिलकर प्रोड्यूस किया है। 2019 में मलयालम में एक फ़िल्म थी ‘उयारे’ जो एसिड अटैक की शिकार एक युवा महिला पायलट की कहानी थी।पिछले कुछ सालों में काम के दौरान कई ऐसी लड़कियों से मिलने का और क़रीब से जानने का मौका मिला है जो हमले की शिकार हो चुकी हैं। कुछ के बदन झुलस चुके हैं तो किसी की आँखों की रोशनी चली गई।ऐसे कई लोगों से बात करके मुझे यही समझ में आया कि उयारे और छपाक जैसी फ़िल्मों का बनना उन लोगों के मन में कुछ उम्मीद जगाता है जो इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं। उन्हें अहसास होता है कि कहीं कोई तो उनकी बात कर रहा है।हालांकि, फ़िल्म छपाक एक एहसास छोड़ जाती है कि ये कहानी कहीं और परतदार, महीन और गहरी हो सकती थी। ऐसा लगता है कि बात शुरू तो हुई पर कुछ बातें अनकही सही रह गईं।कुछ वैसे ही, जैसे असल ज़िंदगी में दीपिका पादुकोण जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सरकार का विरोध कर रहे छात्रों से छपाक करके मिलने आईं पर कुछ कहे बग़ैर चली भी गईं। Post Views: 212