दिल्लीदेश दुनियाब्रेकिंग न्यूज़राजनीतिशहर और राज्य नहीं रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह, बीते 6 साल से कोमा में थे… 27th September 2020 networkmahanagar 🔊 Listen to this नयी दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता जसवंत का सिंह का निधन हो गया है। वह 82 वर्ष के थे और पिछले छह साल से कोमा में थे।दिल्ली के आर्मी अस्पताल की ओर से जारी बयान के अनुसार, पूर्व कैबिनेट मंत्री मेजर जसवंत सिंह (रिटा) का आज सुबह 6.55 बजे निधन हो गया। उन्हें जून को भर्ती कराया गया था और सेप्सिस के साथ मल्टीऑर्गन डिसफंक्शन सिंड्रोम का इलाज चल रहा था। उन्हें आज सुबह कार्डियक अरेस्ट आया। उनका कोविड स्टेटस निगेटिव है। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दु:ख जताया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर सहित कई नेताओं ने उनके निधन पर अपनी शोक संवेदना व्यक्त की है। 3 जनवरी 1938 को जसवंत सिंह का जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव जसोल में राजपूत परिवार में हुआ। उन्होंने मेयो कॉलेज अजमेर से बीए, बीएससी करने के अलावा भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून और खड़गवासला से भी सैन्य प्रशिक्षण लिया।जसवंत सिंह ने पहले सेना में रहकर देश सेवा की और बाद में राजनीति का दामन थाम लिया था। सिंह 1980 से 2014 तक सांसद रहे और इस दौरान उन्होंने संसद के दोनों सदनों का प्रतिनिधित्व किया।सेना से राजनीति में आए जसवंत सिंह उन गिने-चुने नेताओं में से हैं जिन्हें भारत के रक्षामंत्री, वित्तमंत्री और विदेशमंत्री बनने का अवसर मिला। विदेशमंत्री के रूप में उन्होंने भारत-पाकिस्तान संबंधों को सुधारने का भरसक प्रयास किया।जसवंत सिंह उन गिने-चुने राजनेताओं में से थे जिन्हें भारत के विदेश, वित्त और रक्षा मंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ था। विदेश मंत्री के रूप में उनकी सबसे बड़ी चुनौती थी,1998 के परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया के सामने भारतीय पक्ष को रखकर उनकी ग़लतफ़हमियाँ दूर करना। जसवंत सिंह के विदेश मंत्री काल में 4 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर IC-814 को हाईजैक करके अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया था। यात्रियों को बचाने के लिए भारत सरकार को तीन आतंकी छोड़ने पड़े थे।1998 में परमाणु परीक्षण के समय जसवंत सिंह ने भारत की परमाणु नीति तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी।1999 में करगिल युद्ध के दौरान रक्षामंत्री के रूप में उनकी भूमिका अहम रही।2009 को भारत विभाजन पर उनकी किताब जिन्ना-इंडिया, पार्टिशन, इंडेपेंडेंस पर खासा बवाल हुआ। नेहरू-पटेल की आलोचना और जिन्ना की प्रशंसा के लिए उन्हें भाजपा से निकाल दिया गया। बाद में लालकृष्ण आडवाणी के प्रयासों से वे फिर पार्टी में वापसी करने में सफल रहे।जसवंत सिंह अपनी नम्रता और नैतिकता के लिए जाने जाते थे। उनकी बौद्धिक क्षमताओं और देश की सेवा के लिए याद किया जाएगा। उन्होंने अनेक बार देश को विषम परिस्थितियों से बाहर निकाला।जसवंत सिंह ने इस भूमिका को ठीक तरह से निभाया। जसवंत और अमरीकी उप-विदेश मंत्री स्ट्रोब टालबॉट के बीच दो सालों के बीच सात देशों और तीन महाद्वीपों में 14 बार मुलाक़ात हुई। एक बार तो दोनों क्रिसमस की सुबह मिले ताकि उनकी बातचीत का ‘मोमेंटम’ बना रहे।बाद में टालबॉट ने अपनी किताब ‘इंगेजिंग इंडिया डिप्लॉमेसी, डेमोक्रेसी एंड द बॉम्ब’ में लिखा- “जसवंत दुनिया के उन प्रभावशाली इंसानों में से हैं जिनसे मुझे मिलने का मौक़ा मिला है. उनकी सत्यनिष्ठता चट्टान की तरह है। उन्होंने हमेशा मुझसे बहुत साफ़गोई से बात की है।” Post Views: 218