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कैसे बनेगी महाराष्ट्र में सरकार? जानिए 5 संभावित समीकरण…

मुंबई: महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर आज काफी उठापटक देखने को मिल सकती है। विधानसभा चुनावों के नतीजे में सबसे बड़ी पार्टी रही बीजेपी के सरकार बनाने से इनकार करने के बाद शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी जोड़-तोड़ की सरकार बनाने की कोशिशें कर रही हैं। हर पल के साथ कोई बड़ा मोड़ आने के साथ ही राज्य में अनिश्चितता बनी हुई है। एक ओर सरकार बनाने के लिए समर्थन की मांग कर रही शिवसेना को राज्यपाल ने झटका दे दिया, तो एनसीपी को प्रस्ताव देने के बाद भी अंतिम फैसला जल्द होता नहीं दिख रहा है। इधर नई दिल्ली स्थित कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के घर भी सियासी हलचल बढ़ गई है। वहां मीटिंग पर मीटिंग चल रही है।

कांग्रेस-NCP के बीच मीटिंग? पवार को नहीं पता
सरकार बनाने की इच्छा दिखा रहीं तीनों पार्टियों, कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के आपस में बातचीत होने का कोई प्लान न होने से एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति पर संशय के बादल घिरते दिख रहे हैं। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से जब कांग्रेस के साथ बैठक के बारे में पूछा गया तो उन्होंने दो टूक कहा- किसने कहा है कि बैठक होगी? मुझे नहीं पता। पहले ऐसी खबरें थीं कि एनसीपी और कांग्रेस बैठक कर कोई अंतिम फैसला ले सकती हैं लेकिन एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने किसी बैठक के बारे में जानकारी न होने की बात कहकर नए सिरे से अटकलों को जन्म दे दिया है।

कांग्रेस के जवाब का एनसीपी को इंतजार
एनसीपी को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मंगलवार रात 8:30 तक का वक्त दिया है। नतीजे आते ही विपक्ष में बैठने का दावा कर रही एनसीपी अब कांग्रेस के जवाब की राह तक रही है। दोनों पार्टियों के पास मिलकर सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़ा नहीं है। ऐसे में शिवसेना से समर्थन लेकर सरकार बनाने पर फैसला करने के लिए चर्चा और बातचीत का दौर जारी है।

मनोहर जोशी का दावा, शिवसेना की ही बनेगी सरकार
वहीं, बीजेपी से गठबंधन तोड़ने वाली शिवसेना को भले ही कांग्रेस या एनसीपी से कोई जवाब नहीं मिला है लेकिन पार्टी सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने दावा किया है कि सरकार शिवसेना की ही आएगी। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस क्या करेगी, यह उन्हें नहीं पता लेकिन धीरे-धीरे माहौल बेहतर होगा और सेना सरकार बनाएगी। उन्होंने इस बात से इनकार किया है कि सेना अलग-थलग पड़ गई है।

एक नज़र महाराष्ट्र में चल रही सियासी उठापटक पर
पहला समीकरण
गवर्नर ने एनसीपी को मंगलवार रात 8.30 बजे तक जवाब देने को कहा है। ऐसे में कांग्रेस गठबंधन के अपने सहयोगी एनसीपी का सरकार गठन में साथ दे सकती है। लेकिन बिना शिवसेना के समर्थन के एनसीपी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। दूसरी ओर शिवसेना मुख्यमंत्री के पद पर झुकने को किसी कीमत पर तैयार नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि एनसीपी राज्यपाल के प्रस्ताव को ठुकरा सकती है। एनसीपी ने सीधे तौर पर शिवसेना को समर्थन देने के बारे में अभी कोई ऐलान नहीं किया है।
दूसरा समीकरण
एनसीपी के ऑफर ठुकराने की सूरत में राज्यपाल चौथी सबसे बड़ी पार्टी यानी कांग्रेस को न्योता दे सकते हैं। लेकिन कांग्रेस के लिए भी एनसीपी वाली परिस्थितियां अड़चन डालेंगी। कांग्रेस की सरकार को शिवसेना के समर्थन के आसार नहीं हैं। विचारधारा की वजह से भी ऐसा होना मुमकिन नहीं दिखता। ऐसे में कांग्रेस की ओर से सरकार बनाने के लिए शिवसेना से समर्थन मांगना तकरीबन असंभव नजर आता है।
तीसरा समीकरण
यदि सभी दलों ने सरकार गठन से इनकार कर दिया हो, तब राज्यपाल राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेज कर अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करते हैं। अगर राज्यपाल के न्योते को ठुकराकर कांग्रेस और एनसीपी दोनों सरकार गठन से इनकार करते हैं तो राज्य में राष्ट्रपति शासन का रास्ता साफ हो जाएगा। लेकिन आने वाले दिनों में अगर कांग्रेस शिवसेना का समर्थन करने के लिए आगे आती है तो एनसीपी के सहयोग से उद्धव ठाकरे राज्यपाल से बहुमत का दावा कर सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस-एनसीपी की मदद से शिवसेना सरकार बना सकती है।
चौथा समीकरण
सियासी जानकार अभी बीजेपी के सरकार बनाने की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं कर रहे हैं। हालांकि अभी बीजेपी ने सरकार गठन को लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं लेकिन किसी और पार्टी की मदद से बीजेपी एक बार फिर सरकार बनाने के लिए राज्यपाल के पास पहुंच सकती है। 2014 में भी बीजेपी ने बहुमत न होने की सूरत में एनसीपी के समर्थन से सरकार बनाई थी। हालांकि बाद में शिवसेना ने भी अपना समर्थन दिया था।
पांचवां समीकरण
अगर राज्यपाल को लगता है कि राष्ट्रपति शासन लागू करने के बाद भी कोई पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है तो वह राज्य में मध्यावधि चुनाव की सलाह दे सकते हैं। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य की सभी शक्तियां राष्ट्रपति के पास सुरक्षित हो जाती हैं। विधानसभा का कार्य संसद करती है। इसके लिए दो महीने के भीतर संसद की मंजूरी जरूरी है। राज्य में 6 महीने या ज्यादा से ज्यादा 1 साल के लिए राष्ट्रपति शासन लागू रह सकता है। यदि एक साल से अधिक राष्ट्रपति शासन को आगे बढ़ाना है, तो इसके लिए केंद्रीय चुनाव आयोग से अनुमति लेनी होगी। ऐसे में एक साल के बाद फिर से चुनाव की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता।