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महाराष्ट्र में ढीली हो गई उद्धव ठाकरे की पकड़; हावी हुए शिंदे!

हम बालठाकरे के शिवसैनिक हैं…हिंदुत्व और विकास हमारा एजेंडा: शिंदे

मुंबई: महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा के दो दिवसीय विशेष सत्र के अंतिम दिन सोमवार को सदन में महत्वपूर्ण शक्ति परीक्षण में जीत हासिल कर ली। सोमवार को हुए फ्लोर टेस्ट में 164 विधायकों ने एकनाथ शिंदे सरकार के पक्ष में वोटिंग की। 99 विधायकों ने शिंदे सरकार के खिलाफ वोटिंग की। बहुमत के लिए 144 विधायकों की जरूरत थी।

इसके बाद शिंदे गुट ने नए स्पीकर राहुल नार्वेकर को एक याचिका दी, जिसमें उद्धव ठाकरे गुट के 16 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग की गई है। हालांकि, पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे का नाम इन 16 विधायकों में शामिल नहीं है।

शिंदे गुट के विधायक और चीफ व्हिप भरत गोगावले ने कहा कि हमने आदित्य ठाकरे को छोड़कर, व्हिप की अवहेलना करने वाले सभी विधायकों को अयोग्य घोषित करने का नोटिस दिया है। बालासाहेब ठाकरे के प्रति सम्मान के कारण हमने आदित्य ठाकरे को नोटिस नहीं दिया।

ठाकरे और शिंदे गुट की पिटिशन पर 11 जुलाई को होगी सुनवाई
उद्धव ठाकरे गुट ने भी शिंदे गुट के 16 विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक लीगल पिटिशन डाली थी। पिछले महीने डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल ने शिंदे गुट के विधायकों को नोटिस दिया था। उधर एकनाथ शिंदे गुट ने अपना चीफ व्हिप भरत गोगावले को बनाया था। इसके बाद गोगावले शिवसेना द्वारा सुनील प्रभु को चीफ व्हिप अपॉइंट करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए। इन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 11 जुलाई को सुनवाई करेगी।

शिंदे गुट ने असली शिवसेना होने का किया दावा
शिंदे गुट के पास दो-तिहाई से अधिक विधायकों का समर्थन है। सोमवार को विधानसभा में वोटिंग के दौरान ठाकरे गुट के 1 और विधायक शिंदे खेमे में चले गए। इसके साथ ही शिंदे गुट के विधायकों की संख्या बढ़कर 40 पहुंच गई। अब शिंदे गुट ने असली शिवसेना होने का दावा किया है। शिंदे गुट ने बालासाहेब ठाकरे की विरासत पर भी दावा किया है। जिसमें कहा गया है कि उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन कर बालासाहेब की विरासत को धूमिल किया है।

शिवसेना भवन में जिला प्रमुखों को सम्बोधित करते हुए शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे बोले- लड़ना है तो हमारे साथ रहो, भाजपा का प्लान 'शिवसेना' को खत्म करना है
शिवसेना भवन में जिला प्रमुखों को सम्बोधित करते हुए शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे, बोले- लड़ना है तो हमारे साथ रहो, भाजपा का प्लान ‘शिवसेना’ को खत्म करना है…

महाराष्ट्र में ढीली हो गई उद्धव ठाकरे की पकड़; हावी हुए शिंदे!
शिवसेना में विद्रोह के पश्चात भाजपा के समर्थन से सत्ता संभालने के पांच दिन बाद सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। विधानसभा में विश्वास मत जीतने के बाद अपने पहले भाषण में भावुक एकनाथ शिंदे ने शिवसेना का नाम लिए बिना कहा कि उन्हें लंबे समय तक दबाया गया था और उनके नेतृत्व में हुआ विद्रोह उनके साथ किए गए अनुचित व्यवहार का नतीजा था।
सीएम शिंदे ने कहा कि उद्धव ठाकरे को इस पर विचार करना चाहिए कि आखिर बगावत की यह घटना क्यों हुई? उन्हें इसका कारण पता लगाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि पार्टी को बचाने के लिए उन्हें ‘शहीद’ होना मंजूर था। उद्धव पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि जब वह गुवाहाटी में थे, तब उद्धव ठाकरे के समर्थकों ने उनके घर पर हमला किया। उनकी तुलना जानवरों से की और उन्हें गालियां दीं।
शिवसेना के कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन की खामियों को उजागर करते हुए एकनाथ शिंदे ने कहा कि पिछले ढाई सालों में हमने कई मुश्किलें झेलीं। शिवसैनिक होते हुए भी हम दाऊद इब्राहिम के खिलाफ ऐक्शन नहीं ले सकते थे। हम सावरकर की सराहना नहीं कर सकते थे…क्योंकि हम कांग्रेस के साथ थे।उन्होंने कहा कि शिवसेना के ‘उद्धव गुट’ ने हमें गद्दार कहा है लेकिन हम गद्दार नहीं हैं। हम ‘शिवसैनिक’ हैं और हमेशा ‘शिवसैनिक’ रहेंगे। शिंदे ने कहा कि हम बालासाहेब और आनंद दिघे के शिवसैनिक हैं। विकास और हिंदुत्व हमारा एजेंडा है।
शिंदे ने प्रदेश की विधानसभा में फ्लोर टेस्ट में जीत के बाद ये बातें कहीं। 288 सदस्यीय विधानसभा में 164 विधायकों ने शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा लाए गए विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि 99 विधायकों ने इसके खिलाफ मतदान किया। तीन विधायक मतदान से दूर रहे, जबकि कांग्रेस के अशोक चव्हाण और विजय वडेट्टीवार समेत 20 विधायक विश्वास मत के दौरान अनुपस्थित रहे। अनुपस्थित रहने वालों में ज्यादातर कांग्रेस और राकांपा के विधायक थे।
कार्यवाही की अध्यक्षता करने वाले विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने अपना मत नहीं दिया। उन्होंने विश्वास मत को बहुमत मिलने की घोषणा की। विधानसभा अध्यक्ष पद पर रविवार को नार्वेकर के चुने जाने के बाद एकनाथ शिंदे-देवेंद्र फडणवीस सरकार की यह दूसरी बड़ी जीत है। कोलाबा से भाजपा विधायक नार्वेकर को अध्यक्ष पद के चुनाव में 164 वोट मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के राजन साल्वी को 107 वोट मिले थे।
हाल में शिवसेना के एक विधायक के निधन के बाद विधानसभा में विधायकों की मौजूदा संख्या घटकर 287 रह गई है, इसलिए बहुमत के लिए 144 मतों की आवश्यकता थी। एकनाथ शिंदे पिछले महीने शिवसेना के खिलाफ बागी हो गए थे। अधिकतर विधायकों ने उनका समर्थन किया, जिसके कारण उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी सरकार गिर गई।
उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के एक दिन बाद शिंदे ने 30 जून को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की थी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता देवेंद्र फडणवीस ने राज्य के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी।
एकनाथ शिंदे ने विधानसभा में अपने नेतृत्व वाली नवगठित सरकार के विश्वास मत हासिल करने के बाद अपने भाषण में यह भी कहा, आज की घटनाएं सिर्फ एक दिन में नहीं हुईं। उन्होंने कहा, जब मैं यहां चुनाव के लिए आया था, तो इस सदन में ऐसे लोग हैं, जिन्होंने देखा कि मेरे साथ कैसा व्यवहार किया गया। मुझे लंबे समय तक दबाया गया। सुनील प्रभु (उद्धव ठाकरे गुट से शिवसेना विधायक) भी इसके गवाह हैं।
पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार का हवाला देते हुए, शिंदे ने कहा कि राकांपा के वरिष्ठ नेता ने उन्हें बताया था कि नवंबर 2019 में तीन दलों वाली महाविकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार के गठन के बाद शिवसेना में एक ‘दुर्घटना’ हुई है। बिना नाम लिए, शिंदे ने उद्धव ठाकरे के उस बयान का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि राकांपा प्रमुख शरद पवार ने उन्हें महाविकास आघाड़ी के गठन से पहले सूचित किया था कि कांग्रेस और राकांपा के नेता शिंदे के तहत काम करने के इच्छुक नहीं हैं।
शिंदे ने स्पष्ट रूप से उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने का जिक्र करते हुए कहा, लेकिन एमवीए सरकार बनने के बाद, अजित पवार ने मुझसे कहा कि आपकी ही पार्टी (शिवसेना) में दुर्घटना हुई है। हम आपके मुख्यमंत्री बनने के खिलाफ कभी नहीं थे। उन्होंने यह भी दावा किया कि जब भाजपा-शिवसेना गठबंधन सत्ता में था, तो उन्हें पहले उपमुख्यमंत्री पद का वादा किया गया था।
सदन में शक्ति परीक्षण के दौरान विधायक अबू आजमी और रईस शेख (दोनों समाजवादी पार्टी के नेता) तथा शाह फारुख अनवर (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन) ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
इस दौरान कांग्रेस के 11 विधायक- अशोक चव्हाण, विजय वडेट्टीवार, धीरज देशमुख, प्रणीति शिंदे, जितेश अंतापुरकर, जीशान सिद्दीकी, राजू आवले, मोहन हम्बर्दे, कुणाल पाटिल, माधवराव जवलगांवकर और शिरीष चौधरी अनुपस्थित रहे। चव्हाण और वडेट्टीवार देर से आए और मतदान के समय तक सदन में प्रवेश नहीं कर पाए। इनके अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अनिल देशमुख, नवाब मलिक, दत्तात्रेय भरणे, अन्ना बंसोडे, बाबनदादा शिंदे और संग्राम जगताप मतदान के दौरान अनुपस्थित रहे। धनशोधन के अलग-अलग मामलों में गिरफ्तारी के बाद से अनिल देशमुख और नवाब मलिक फिलहाल जेल में हैं।
भाजपा विधायक मुक्ता तिलक और लक्ष्मण जगताप गंभीर रूप से बीमार होने के कारण सदन में नहीं आए, जबकि भाजपा के राहुल नार्वेकर विधानसभा अध्यक्ष होने के कारण मतदान नहीं कर सके। एआईएमआईएम के नेता एवं विधायक मुफ्ती मोहम्मद इस्माइल भी सत्र में शामिल नहीं हुए। शक्ति परीक्षण से पहले उद्धव ठाकरे खेमे के शिवसेना विधायक संतोष बांगर शिंदे के गुट में शामिल हो गए, जिससे मुख्यमंत्री के खेमे में शामिल विधायकों की संख्या 40 हो गई।

फडणवीस बोले- हाँ…महाराष्ट्र में अब ED की सरकार है
फडणवीस ने शक्ति परीक्षण के बाद सदन में कहा कि विधानसभा में विश्वास मत पर मतदान के दौरान विपक्षी दलों के विधायक ‘ईडी- ईडी’ कहकर चिल्ला रहे थे। उन्होंने कहा, यह सच है कि नयी सरकार का गठन ईडी ने किया है, जिसका मतलब एकनाथ और देवेंद्र है। फडणवीस ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का नाम लिए बिना दावा किया कि महाराष्ट्र ने पिछले कुछ वर्षों में नेतृत्व की अनुपलब्धता देखी है। उन्होंने कहा, लेकिन, सदन में दो नेता (वह स्वयं और शिंदे) हैं, जो लोगों के लिए हमेशा उपलब्ध रहेंगे।

अजित पवार बने विपक्ष के नेता
इस बीच, राकांपा विधायक व पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार को सोमवार को विधानसभा में विपक्ष का नया नेता नामित किया गया। उन्होंने भाजपा नेता फडणवीस का स्थान लिया है। शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के शक्ति परीक्षण से पहले पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे को झटका देते हुए, विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर ने शिंदे को शिवसेना विधायक दल के नेता के रूप में बहाल कर दिया और अजय चौधरी को पद से हटा दिया।
नार्वेकर ने शिवसेना के मुख्य सचेतक के रूप में शिंदे खेमे से भरत गोगावाले की नियुक्ति को भी मान्यता दी और सुनील प्रभु को हटा दिया, जो ठाकरे गुट से हैं। शिवसेना सांसद संजय राउत ने शिंदे के नेतृत्व वाले गुट की वैधता पर सवाल उठाया और कहा कि अलग हुआ समूह असली शिवसेना होने का दावा नहीं कर सकता। दिल्ली में पत्रकारों से राउत ने कहा कि इन विधायकों (शिंदे समूह के) को खुद से कुछ सवाल पूछने चाहिए। उन्होंने चुनाव जीतने के लिए पार्टी के चिह्न और इसके साथ आने वाले सभी लाभों का इस्तेमाल किया तथा फिर उसी पार्टी को तोड़ दिया।
राज्यसभा सदस्य ने कहा, हम निश्चित रूप से इसे अदालत में लड़ेंगे। शिंदे गुट ने शिवसेना छोड़ दी, फिर वे कैसे दावा कर सकते हैं कि उनका समूह मूल पार्टी है, न कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला समूह। ठाकरे नाम शिवसेना का पर्याय है।
बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के पास 55, राकांपा के पास 53, कांग्रेस के पास 44, भाजपा के पास 106, बहुजन विकास आघाड़ी के पास तीन, समाजवादी पार्टी के पास दो, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के पास दो, प्रहार जनशक्ति पार्टी के पास दो, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के पास एक, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पास एक, शेतकरी कामगार पार्टी के पास एक, स्वाभिमानी पक्ष के पास एक, राष्ट्रीय समाज पक्ष के पास एक, जनसुराज्य शक्ति पार्टी के पास एक, क्रांतिकारी शेतकारी पार्टी के पास एक और 13 निर्दलीय विधायक हैं।

क्या बीएमसी चुनाव में समझौता करेंगे उद्धव ठाकरे?
सूत्र बता रहे है कि ‘ठाकरेपन’ के कारण आखिरकार उद्धव ठाकरे की सरकार तो गिर गई। अब एकनाथ शिंदे की सरकार बन गई है। उद्धव ठाकरे के सामने अब शिवसेना को बचाने की बड़ी चुनौती है। इतना ही नहीं राजनीतिक एक्सपर्ट्स अब यह कयास लगा रहे हैं कि दो महीने बाद होने वाले बीएमसी चुनाव में अब उद्धव ठाकरे का अगला कदम क्या होगा? क्या वे शिंदे गुट से हाथ मिलाएंगे या कोई और कदम उठाएंगे।
दरअसल, शिवसेना के कद्दावर नेता शिंदे की बगावत के बाद अब एक राजनीतिक पार्टी के रूप में शिवसेना को बचाने की बड़ी चुनौती उद्धव ठाकरे के सामने है। इसके अलावा अगली बड़ी चुनौती बीएमसी चुनाव है। क्योंकि शिवसेना के लिए बीएमसी चुनाव काफी अहम होगा। शिवसेना की पकड़ बीएमसी में मजबूत है और पार्टी ने इसे काफी समय तक नियंत्रित भी किया है, लेकिन इस बार जमीनी समीकरण बदले हैं।
एक्पर्ट्स का यहां तक मानना है कि बीएमसी चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे बागी विधायकों से संपर्क साध सकते हैं। इतना ही नहीं उद्धव इसके लिए अगर भाजपा से संपर्क करें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। फिलहाल, अभी उद्धव शिवसेना को बचाने में लगे हैं। बीएमसी चुनाव में उनकी क्या भूमिका होगी, यह तब तय होगा जब शिवसेना का संगठन किस ओर बैठेगा यह साफ हो जाएगा।

भाजपा की नज़र बीएमसी चुनाव पर
उधर, सरकार बनते ही भाजपा ने साफ कर दिया था कि उसका अगला लक्ष्य बीएमसी चुनाव हैं। भाजपा ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ये तो झांकी है, मुंबई महानगरपालिका अभी बाकी है। भाजपा राज्य में सत्ता परिवर्तन के साथ ही शिवसेना में बड़ी फूट डालने में सफल हुई और अब उसका अगला लक्ष्य बीएमसी पर कब्जा जमाना है। ठाणे और डोंबिवली में शिवसेना की काफी मजबूत पकड़ है। पिछले चुनाव में एनसीपी ने नवी मुंबई में जीत दर्ज की थी। ऐसे में शिवसेना के विकल्प के तौर पर भाजपा लोगों तक पहुंचेगी।

क्या एक हो सकते हैं भाजपा-शिवसेना?
उद्धव ठाकरे सरकार पर भाजपा जरूर हमलावर रही है लेकिन शिवसेना उसकी पुरानी साझेदार रही है। भाजपा के साथ शिवसेना इसलिए भी जा सकती है क्योंकि कुछ दिन पहले ही डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि हम सिर्फ कुछ समय के लिए अलग हुए थे। लेकिन अब मुझे लगता है कि हम फिर साथ आ गए हैं। हिंदुत्व के वोट कभी भी बंटने नहीं चाहिए। अब फडणवीस का ये रुख काफी मायने रखता है। साथ ही सदन में उन्होंने यह भी कहा कि मेरा बदला लेना मतलब उन्हें माफ़ कर देना है।

उद्धव ठाकरे पर टिकी है सबकी नजर
इतना ही नहीं कई मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि उद्धव गुट के कुछ विधायकों ने इस बात पर सहमति जताई है कि एक बार फिर शिंदे गुट के विधायकों से बातचीत करनी चाहिए। वैसे भी क्योंकि शिवसेना के चुनावी चिन्ह को लेकर एक कानूनी लड़ाई शुरू होने जा रही है, उस स्थिति में अगर बातचीत के जरिए कोई समाधान या समझौता निकल जाता है तो बीएमसी चुनाव में शिवसेना अपने ही चुनावी चिन्ह के साथ मैदान में उतर सकती है। कुल मिलाकर यह उद्धव ठाकरे पर ही निर्भर है कि वे क्या रास्ता निकालते हैं।

बीएमसी का कुल बजट 46 हजार करोड़!
बता दें कि 2017 में बीएमसी चुनाव में शिवसेना ने 84 और बीजेपी 82 सीटों पर जीत हासिल की थी। दोनों ने एक-दूसरे को कांटे की टक्कर दी थी। बीएमसी देश की सबसे ज्यादा बजट वाली महानगर पालिका है। बीएमसी का कुल बजट 46 हजार करोड़ रुपए का है। शिक्षा का बजट बीएमसी अलग से पेश करती है। इस साल बीएमसी के बजट में 17 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है।