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‘शिवसेना’ पर किसका अधिकार? SC ने मांगी मुख्य दलीलों की लिस्ट, गुरुवार को भी होगी सुनवाई

मुंबई,(राजेश जायसवाल): शिवसेना पर किसका अधिकार? उद्धव गुट असली शिवसेना है या एकनाथ शिंदे? इन्हीं सवाल के जवाब के लिए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। शिंदे गुट और उद्धव गुट के वकीलों की तमाम दलीलों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि वह इससे संंबंधित सभी मामलों की सुनवाई करेगा। सुनवाई कल यांने गुरुवार को भी जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों के मुद्दों की लिस्ट मांगी है।उद्धव गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीले पेश की। सिब्बल का यह कहना है कि यदि एकनाथ शिंदे के साथ दो तिहाई विधायक हैं तो दल-बदल कानून के आर्टिकल 10 के मुताबिक, उन्हें या तो भाजपा में अपना विलय कर लेना था या नई पार्टी बनाना थी। एकनाथ शिंदे गुट का ‘शिवसेना’ पर दावा करना कानूनन गलत है। सुनवाई के दौरान सिब्बल ने यह दलील भी पेश की कि बागी विधायक अपने आचरण से पार्टी की सदस्यता खो चुके हैं। इन्होंने व्हीप का उल्लंघन किया है, पार्टी की बैठकों में हिस्सा नहीं लिया है।

..तो स्पीकर का चुनाव और सरकार का गठन भी असंवैधानिक: सिब्बल
सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील सिब्बल ने अपनी दलीलों में कहा कि एकनाथ शिंदे के साथ गए विधायक अयोग्य हैं तो महाराष्ट्र विधानसभा में स्पीकर का चुनाव और फिर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सरकार का गठन और अब तक लिए गए इस सरकार के सभी फैसले भी असंवैधानिक है।
सिब्बल ने कहा कि एकनाथ शिंदे और उनकी टीम ढाई साल तक सरकार में रहे। तब उन्हें MVA गठबंधन से कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन अचानक ही उन्हें कहीं से ज्ञान प्राप्त हुआ और वो महाराष्ट्र से निकलकर बीजेपी की गोद में जा बैठे। जो ये दिखाता है कि उनके पास पार्टी कैडर का समर्थन नहीं था।
उद्धव गुट की ओर से कपिल सिब्बल ने बहस की शुरुआत की। सीजेआई एनवी रमना ने पूछा कि वो जानना चाहते हैं कि अगर दो तिहाई लोग किसी राजनीतिक दल से अलग होते हैं तो क्या उन्हें नई पार्टी का गठन करना होगा? सीजेआई ने कहा कि क्या नए ग्रुप को चुनाव आयोग के समक्ष रजिस्टर करना होगा या स्पीकर के पास जाना होगा या उन्हें दूसरी पार्टी में शामिल होना होगा?
इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर वो नई पार्टी बनाते हैं तो उन्हें चुनाव आयोग के समक्ष पंजीकरण कराना होगा। लेकिन किसी अन्य पार्टी में विलय होने पर पंजीकरण नहीं कराना होगा। मुद्दा संतुलन का भी है। 1/3 विधायक अभी भी पार्टी में हैं। 2/3 यह नहीं कह सकते कि हम ही पार्टी हैं।

शिंदे गुट के वकील हरीश साल्वे ने दी ये दलीलें
एकनाथ शिंदे गुट की ओर से भी नामचीन वकील हरीश साल्वे ने बहस शुरू की। साल्वे ने कहा कि दलबदल विरोधी कानून उस नेता के लिए नहीं है जो अपनी ही पार्टी के सदस्यों का विश्वास खो चुका है और वो किसी तरह उन्हें बंद करके सत्ता में रखना चाहता है।दलबदल कानून इस मामले में लागू नहीं होता। ये तब होगा जब वो पार्टी से अलग होते हैं। इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है। ये एंटी पार्टी नहीं इंट्रा पार्टी मामला है।
साल्वे ने कहा कि उद्धव ठाकरे के पास बहुमत नहीं है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि आप केंद्रीय चुनाव आयोग के पास क्यों गए?
इस पर शिंदे गुट के वकील साल्वे ने कहा कि मुंबई में बीएमसी के चुनाव आने वाले हैं। वहां शिवसेना का ‘चुनाव चिन्ह’ कौन इस्तेमाल करेगा, यही सवाल है और यह फैसला चुनाव आयोग कर सकता है।
एकनाथ शिंदे और उनके समर्थकों के विधायकों पर साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ये सभी विधायक अभी भी ‘शिवसेना’ का हिस्सा है। ये सभी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिए हैं। सिर्फ फर्क यह है कि इन्हें अपने नेता की राय से सहमति नहीं थी, इसलिए अपना अलग गुट बना लिया। किसी भी लोकतांत्रिक पार्टी में ऐसा हो सकता है।