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…जब कसाई के तराजू में भगवान् शालिग्राम पहुंचे; जानें- फिर क्या हुआ?

क सदन नाम का कसाई था। वो भगवान् का बहुत बड़ा भक्त था। जीवन यापन के लिए कार्य करना उसने अपना कर्तव्य समझा। गरीब होने के कारण वह शालिग्राम भगवान को तराजू के पलड़े में रखता तो दूसरे पलड़े से दाम के बराबर मांस तौल कर देता। सुबह शाम आते-जाते वह शालिग्राम भगवान को साथ घर लाता और उनकी सेवा एक दास के भाव से करता। मांस तौलते समय बाट के तौर पर जिस पत्थर का प्रयोग वह करता था वस्तुतः वह भगवान शालिग्राम थे, जिससे वह अनभिज्ञ था।
एक दिन उसकी दुकान के सामने से एक ऋषि निकले। ऋषि शालिग्राम को तुरंत देखकर पहचान गए और बहुत दुःखी हुए की भगवान् एक कसाई के तराजू में।
ऋषि ने कसाई से आग्रह किया की इन शालिग्राम भगवान् को मुझे दे दो। मैं इनकी अपने अनुसार सेवा करूँगा। तुम इसका दाम ले लो और अपनी जरुरत के तुला वजन खरीद लो।
हालाँकि, कसाई भी भगवान् का भक्त था लेकिन भगवान् के बारे में सोचा कि प्रभु की सेवा अब अच्छे से होगी, यह सोचकर ऋषि को दे देता है।
ऋषि भगवान को घर लेकर आये और उन्हें गंगाजल से नहलाया, पुष्प सिंहासन पर बैठाया, सुन्दर वस्त्रो से ढका और विधिपूर्वक पूजा कर अपने पूजाघर में रख दिया और उनकी सेवा करने लगा। परन्तु भगवान तो प्रेम के भूखे हैं, मंत्र या विधि की वे जरा भी अपेक्षा नहीं करते।
उसी रात उन्होंने साधु को स्वप्न में कहा- महात्मन आपकी सेवा से मैं अप्रसन्न नहीं हूँ..लेकिन सदन के यहां मुझे बड़ा सुख मिलता था, वहां से उठाकर तुम मुझे यहां क्यों ले आए, मांस तौलते समय उसका स्पर्श पाकर मैं बड़े आनंद का अनुभव करता था। उसके मुख से निकले शब्द मुझे मधुर स्तोत्र जान पड़ते थे। यहां मैं घुटन महसूस कर रहा हूं। अच्छा होता तुम मुझे मेरे भक्त के ही पहुंचा देते। वह आज भूखा सो रहा है, मैं यहाँ पुष्पों के सिंहासन कैसे तृप्त हो सकता हूँ। कृपया आप मुझे मेरे भक्त के पास ही पहुंचा दें।
ऋषि बोले- प्रभु! अवश्य, जैसी आपकी इच्छा। लेकिन, मैं उस कसाई की भक्ति समझा नहीं?
भगवान् शालिग्राम बोले- वह कसाई मेरा बड़ा प्रिय भक्त है। वह सुबह जागकर मेरा ध्यान रखता है। हमेशा अपने साथ रखता है। हमेशा सत्य भाषण करता है, अपने धर्म का पालन सत्य के साथ करता है। मैं हर धर्म पर चलने वाले मनुष्य के साथ रहता हूँ, और अधर्म पर चलने वाले का नाश करता हूँ। वह अपने व्यापार को बड़ी ईमानदारी से करता है। व्यापार के समय वह बार-बार मुझे याद करता है। हमेशा मुझे पर ध्यान रखता है। ऐसे भक्त को मैं कैसे छोड़ सकता हूँ जो मेरी याद में आज भूखा सो रहा है।

ऋषि यह सुनकर भाव-विभल हो गए। सुबह होते ही ऋषि तुरंत शालिग्राम को लेकर सदन के पास पहुंच गए। उन्हें बताया कि यह कोई बाट या पत्थर नहीं, बल्कि साक्षात शालिग्राम भगवान हैं। यह सुन सदन को पश्चाताप हुआ। मन ही मन बोला- मैं भी कितना पापी हूं कि भगवान को अब तक अपवित्र स्थल पर रखता रहा। उन्हें पश्चाताप की मुद्रा में देख ऋषि ने उन्हें अपने सपने की बात बताई और कहा कि भगवान को और कुछ नहीं चाहिए। वह तो बस सच्चे प्यार के भूखे हैं जो आपसे उन्हें मिल रहा है। ऋषि ने शालिग्राम भगवान् को कसाई को सौंपकर, उससे अपनी गलती की क्षमा मांगी और भक्ति का आशीर्वाद दिया।