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‘National Press Day’ पर वेबिनार: जावड़ेकर बोले- आपातकाल में हमने प्रेस की आजादी के लिए सत्याग्रह किया, जेल काटी

आज हमारे सामने ‘फेकन्यूज’ सबसे बड़ा संकट है, इसके खिलाफ पत्रकारों को लामबंद होना चाहिए: जावड़ेकर

नयी दिल्ली: ‘नेशनल प्रेस डे’ के मौके पर वेबिनार का आयोजन किया गया। जिसमें पत्रकारिता से जुड़ी दिग्गज हस्तियां शामिल हुईं। इस खास मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि मैं यह जानकर खुश हूं कि प्रेस परिषद ‘कोविड-19 के दौरान मीडिया की भूमिका और मीडिया पर इसके प्रभाव जैसे अहम विषय पर राष्ट्रीय प्रेस दिवस मना रही है’।
सोमवार को वेबिनार में राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि मीडियाकर्मी उन कोरोना योद्धाओं में शामिल हैं, जिन्होंने न सिर्फ लोगों को जागरूक किया, बलकि इस महामारी का असर कम करने में भी बड़ी भूमिका निभाई है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर उन्होंने बधाई दी।
‘प्रेस काउंसल ऑफ इंडिया’ की ओर से रखे गए वेबिनार को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि ‘फ्री प्रेस’ हमारे लोकतंत्र की विशेषता और आधारशिला है। लेकिन आज हमारे सामने ‘फेकन्यूज’ सबसे बड़ा संकट है, इसके खिलाफ पत्रकारों को लामबंद होना चाहिए। आपातकाल की चर्चा करते हुए जावड़ेकर ने कहा कि हमने ऐसा दौर भी देखा जब प्रेस पर सेंसरशिप के काले बादल मंडरा रहे थे। यहां तक कहा जाता था कि पहले कांटेंट पुलिस देखेगी, इसके बाद ही उसे रिलीज किया जा सकेगा। जावड़ेकर ने कहा कि हमने इसके विरोध में सत्याग्रह शुरु किया था, इस दौरान 16 महीने तक जेल भी काटनी पड़ी थी। हमने प्रेस की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी।
जावड़ेकर ने कहा कि अपनी बात रखने की आजादी होनी चाहिए, लेकिन उसमें कोई स्वार्थ न छिपा हो। अब देश में प्रेस की आजादी की चर्चा फिर छिड़ी है। जिस तरह प्रेस की आजादी पर हमले हो रहे हैं, वह ठीक नहीं हैं। जावड़ेकर ने कहा कि अब मौका आ गया है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को खुद स्वनियमन (सेल्फ रेगुलेशन) की व्यवस्था पर काम करना चाहिए। प्रेस स्वयं ही अपनी अगुवाई करे, सरकार इसमें पड़ना नहीं चाहती। सरकार की मंशा मीडिया में दखल देने की नहीं है।
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश दुबे ने अपने विचार बेबाकी से रखे। उन्होंने देशभर में पत्रकारों पर हो रहे हमलों पर गंभीर चिन्ता जताई। साथ ही कहा कि लॉकडाउन के दौरान संवाद माध्यम चुनौतियों से जूझते रहे, कोरोना संक्रमण के कारण अखबार बांटने पर भी रोक लग गई थी। महाराष्ट्र के मुख्य सचिव ने 18 अप्रैल को परिपत्र जारी कर अखबार छपाई की छूट तो दे दी थी, लेकिन उस वक्त हॉकर अखबार बांट नहीं सकता था। इसके बाद प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने मामले का संज्ञान लेते हुए सरकार से जवाब मांगा था, तब जाकर आदेश में आंशिक बदलाव किए गए थे। इसी बीच मजदूर और रोज मशक्कत कर दो जून की रोटी जुटाने वालों की तकलीफें जनता तक पहुंच नहीं पा रही थी।

प्रकाश दुबे ने फ्रांस की हालिया घटना का जिक्र करते हुए कहा कि नागरिक स्वतंत्रता को फ्रांसीसी धर्म से अधिक महत्व देते हैं, लेकिन हमारे देश में तब्लीगी जमात से कोरोना फैलने की खबर सुर्खियों में रही। यह तो भारत की तासीर और विरासत का कमाल था कि अदालतों ने इन समुदायों को बेगुनाह बताकर वापस भेजा, जिससे फ्रांस की तरह देश में अव्यवस्था नहीं फैली। जिससे अराजक तत्वों को भी बल नहीं मिल सका। दुबे ने कहा कि संवाद माध्यमों से गलतियां हुईं है। महामारी की अनदेखी कर एक वर्ग मुंबई के फिल्म कलाकार की मौत पर कपोल कल्पना करने और समानांतर अदालत लगाने में जुटा था। हाल ही में देश की सुप्रीम कोर्ट ने एक संपादक को जेल से मुक्ति दिलाई। इससे पहले बोलने के कारण संपादक कभी जेल नहीं भेजे गए थे। इसके अलावा महामारी के दौरान अव्यवस्थाओं को लेकर आवाज उठाने वाले पत्रकारों को प्रशासनिक नाराजगी का सामना करना पड़ा, जिसे लेकर अब एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने उत्तर प्रदेश की सरकार से संपर्क साधा है।