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RSS मुख्यालय में दशहरे का जश्न, सरसंघचालक बोले- इतनी बड़ी आबादी, हर किसी को नौकरी कैसे संभव

नागपुर: राष्ट्रीय स्वयं सेवक (RSS) के इतिहास में आज से एक नया अध्याय जुड़ गया है। पहली बार आरएसएस के सबसे बड़े कार्यक्रम में एक महिला को मुख्य अतिथि बनाकर सर्वोच्च स्थान दिया गया है। आरएसएस की पहली महिला मुख्य अतिथि बनने का मौका मिला है प्रसिद्ध पर्वतारोही संतोष यादव को जिनके नाम आज भी लगातार दो-दो बार एवरेस्ट पर चढ़ने का रिकॉर्ड (महिला पर्वतारोही) है।
दरअसल, संतोष यादव भारत में महिला सशक्तिकरण की स्वत: प्रतीक हैं। वह हरियाणा के ऐसे इलाके से आती हैं, जहां पहले बेटियां बोझ समझी जाती थीं। खुद संतोष यादव भी अपने माता-पिता की 6 संतानों में अकेली लड़की हैं। उन्होंने आरएसएस से अपने रिश्ते के बारे में जो खुलासा किया है, वह बहुत ही महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने पहली बार अपनी परंपरा तोड़ते हुए अपने वार्षिक ‘विजयादशमी उत्सव’ के मौके पर नागपुर में मशहूर पर्वतारोही संतोष यादव को मुख्य अतिथि बनाया है। 1925 में आरएएस के गठन के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ था कि सरसंघचालक के साथ आरएसएस मुख्यालय नागपुर में विजयादशमी के कार्यक्रम में किसी महिला ने मंच साझा किया हो। संघ बीते वर्षों में लगातार अपनी नीतियों और कार्य के तरीकों में परिवर्तन कर रहा है और बुधवार को दशहरे के दिन नागपुर में मंच पर जो कुछ दिखा, वह इस संघटन के लिए बहुत बड़ा बदलाव माना जा सकता है।

साथी पर्वतारोही की बचाई थी जान 54वर्षीय संतोष यादव पहली महिला पर्वतारोही हैं, जिन्होंने दो बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। मूल रूप से हरियाणा की रहने वाली संतोष यादव को साल 2000 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। आरएसएस ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा है- ‘आज के आरएसएस विजयादशमी 2022 की मुख्य अतिथि संतोष यादव एक आदर्श व्यक्तित्व और पर्वतारोही हैं। 1992 के अपने एवरेस्ट मिशन के दौरान उन्होंने अपने एक साथी पर्वतारोही मोहन सिंह के साथ ऑक्सीजन साझा करके उनकी जान बचाई थी। उन्हें साल 2000 में पद्मश्री दिया गया था’।

लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या आप संघी हैं?
‘लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या आप संघी हैं?’ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्य कार्यक्रम में संतोष यादव को महिला होने के बावजूद ना सिर्फ मुख्य अतिथि बनाकर बुलाया गया था, बल्कि उन्हें संघ के मंच से अपनी बात रखने का अवसर भी दिया गया।
संघ के ट्विटर पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, इस दौरान यादव ने संघ के साथ अपने रिश्ते के बारे में कहा- ‘लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि क्या आप संघी हैं? यह मेरे व्यवहार की वजह से होता था। तब मुझे नहीं पता था कि संघ क्या है। यह मेरा ‘प्रारब्ध है कि मैं आज यहां पर आपके साथ हूं’।

हरियाणा की हैं पर्वतारोही संतोष यादव
मूल रूप से हरियाणा की हैं पर्वतारोही संतोष यादव संतोष यादव लगातार दो साल 1992 और 1993 में दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ी थीं। संतोष यादव आज जिस सम्मान की पात्र बनी हैं, उसके पीछे उनका लंबा संघर्ष रहा है। हरियाणा जैसे राज्य के रेवाड़ी जिले में जन्मीं वह अपने 6 भाई-बहनों में अकेली लड़की हैं। जब वह ग्रेजुएशन में थीं, तभी उन्हें पहाड़ों पर चढ़ने की प्रेरणा मिली। वह जयपुर के महारानी कॉलेज में पढ़ती थीं। वह अपने होस्टल के कमरे से लोगों को अरावली रेंज की पहाड़ियों पर चढ़ते देखती थीं। इसी से उनमें पर्वतारोहण के प्रति ऐसी ललक जगी कि उन्होंने उत्तराखंड के नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनीयरिंग में दाखिला लिया और पहाड़ों पर चढ़ाई की ट्रेनिंग ली। वह जब माउंट एवरेस्ट पर चढ़ी थीं, तो सिर्फ 20 साल की थीं और सबसे कम उम्र में यह सफलता प्राप्त करने वाली महिला बनीं। लेकिन, साल 2013 में 13 साल की एक लड़की ने उनके इसे रिकॉर्ड को तोड़ दिया।

महिला सशक्तिकरण की शुरुआत घर से हो: भागवत
आरएसएस की स्थापना विजयादशमी के दिन ही साल 1925 में डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। तब से लेकर संघ की परंपरा है कि इस दिन सरसंघचालक मुख्यालय नागपुर से जो लाखों स्वयंसेवकों को संबोधित करते हैं, उससे पूरे साल के लिए संघ की नीति तय होती है। इस मौके पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर के रेशमीबाग मैदान से देश में महिला सशक्तिकरण की पूरजोर वकालत की है। इस मौके पर भागवत बोले कि महिलाओं को ‘जगत जननी’ माना जाता है, लेकिन घरों में उनके साथ ‘दासियों’ जैसा व्यवहार होता है। उन्होंने कहा कि महिला सशक्तिकरण की शुरुआत घरों से ही होना चाहिए और उन्हें समाज में उनका उचित स्थान दिया जाना चाहिए।

इतनी बड़ी आबादी, हर किसी को नौकरी कैसे संभव: भागवत
भागवत ने कहा कि अगर हम खुद से रोजगार का सृजन नहीं करेंगे तो अकेली सरकार कितना रोजगार बढ़ा सकती है। रोजगार लघु उद्योगों में, सहकारिता में, कृषि में सबसे ज्यादा होता है। यह अधिकांश रूप से समाज के हाथ में है। मेरे कहने का यह मतलब नहीं है कि मैं सरकार को उसके दायित्वों से मुक्त कर रहा हूं, हमे उन पर नजर रखने की जरूरत है। मैं कहना चाहता हूं कि अगर सरकार अपना दायित्व पूरा करती है, लेकिन समाज नहीं करता है तो इसका को अर्थ नहीं है। समाज में परिवर्तन लाना होगा। उन्होंने कहा कि जनसंख्या जितनी ज्यादा, बोझ उतना ज्यादा। लेकिन इसे बोझ कह देना पूरी तरह से सही नहीं है। जनसंख्या का ठीक से उपयोग किया जाए तो यह साधन बन सकती है। अधिक जनसंख्या को हम बोझ कहते हैं तो इसका इस्तेमाल डिविडेंट देने वाली आबादी के तौर पर भी किया जा सकता है। चीन बूढ़ा हो रहा है, हम जवान हैं, 30 साल तक जवान रहने वाले हैं। चीन में अधिक जनसंख्या है, वहां पर एक व्यक्ति एक बच्चे का नियम है। लेकिन अब वहां सिर्फ बूढ़े ही बूढ़े हैं, काम कौन करेगा। अब उन्होंने दो बच्चों के सिद्धांत को लागू कर दिया है।
हमे भी सोचना होगा कि 30 साल बाद काम कौन करेगा। जब देश की आबादी की उम्र 50 वर्ष होगी तो क्या वह काम कर पाएगा। यह केवल देश का प्रश्न नहीं है, हमे मातृशक्ति को भी देखना होगा। हमे एक समग्र विचार करके एक नीति बनानी पड़ती है। हमने ऐसी नीति बनाई। भारत सरकार ने नीति बनाई, 2:1 औसत संतान को लागू किया। हमने इसे इतनी अच्छी तरह से लागू किया कि दुनिया को भी यकीन नहीं हो रहा है, लेकिन इससे नीचे आना भी गलत है। बच्चों को सामाजिक प्रशिक्षण परिवार में मिलता है। लिहाजा हर उम्र के लोगों की जरूरत होती है।