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बिलकिस बानो गैंगरेप केस के 11 अभियुक्त जेल से रिहा! जानें- कौन हैं बिलकिस बानो?

गुजरात: गुजरात में 2002 में हुए दंगों के दौरान बिलकिस बानो से गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या में सज़ा काट रहे सभी 11 अभियुक्त रिहा कर दिए गए हैं। गुजरात सरकार की माफ़ी नीति के तहत 15 अगस्त को जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़डिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना को गोधरा उप कारागार से छोड़ दिया गया है।
बता दें कि मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 2008 में बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में 11 अभियुक्तों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थीमुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 2008 में बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में 11 अभियुक्तों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी, बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस सज़ा पर अपनी सहमति की मुहर लगाई थी। सभी अभियुक्त 15 साल से अधिक वक़्त तक सज़ा काट चुके थे। इस आधार पर इनमें से एक अभियुक्त राधेश्याम शाह ने सज़ा में रियायत की गुहार लगाई थी। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस सज़ा पर अपनी सहमति की मुहर लगाई थी।

गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राज कुमार ने बताया कि जेल में 14 साल पूरे होने और दूसरे कारकों जैसे- उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार वगैरह के कारण सज़ा में छूट के आवेदन पर विचार किया गया है।

सज़ा कितने साल की होती है उम्र क़ैद की सज़ा?
दरअसल, उम्रक़ैद की सज़ा पाए क़ैदी को कम से कम चौदह साल जेल में बिताने ही होते हैं। 14 साल के बाद उसकी फ़ाइल को एक बार फिर रिव्यू में डाला जाता है। उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार वगैरह के आधार पर उनकी सज़ा घटाई जा सकती है। अगर सरकार को ऐसा लगता है कि क़ैदी ने अपने अपराध के मुताबिक़ सज़ा पा ली है, तो उसे रिहा भी किया जा सकता है। कई बार क़ैदी को गंभीर रूप से बीमार होने के आधार पर छोड़ दिया जाता है। लेकिन ये ज़रूरी नहीं है। कई बार अपराधी की सज़ा को उम्र भर के लिए बरक़रार रखा जाता है। लेकिन इस प्रावधान के तहत हल्के जुर्म के आरोप में बंद क़ैदियों को छोड़ा जाता है। संगीन मामलों में ऐसा नहीं होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को माफ़ी के मामले पर विचार करने को कहा था। इसके बाद पंचमहल के कलेक्टर सुजल मायात्रा के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई थी। मायात्रा ने ही बताया कि क़ैदियों को माफ़ी देने की मांग पर विचार करने के लिए बनी कमेटी ने सर्वसम्मति से उन्हें रिहा करने का फ़ैसला किया। राज्य सरकार को सिफ़ारिश भेजी गई थी और फिर दोषियों की रिहाई के आदेश मिले। हालांकि, गुजरात सरकार के इस फ़ैसले की आलोचना भी हो रही है।
मानवाधिकार मामलों के वकील शमशाद पठान ने पीटीआई से कहा कि बिलकिस बानो गैंगरेप केस से कम जघन्य अपराधों को अंजाम देने वाले काफ़ी क़ैदी बग़ैर माफ़ी के जेलों में सड़ रहे हैं। गुजरात सरकार बिलकिस बानो मामले के अपराधियों को रिहा करने का जो फ़ैसला किया है उससे अपराध के शिकार लोगों का व्यवस्था में विश्वास कमज़ोर हुआ है।

जानें- क्या हुआ था बिलकिस बानो के साथ?
27 फ़रवरी 2002 को ‘कारसेवकों’ से भरी साबरमती एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में गोधरा के पास आग लगाए जाने से 59 लोगों की मौत के बाद गुजरात में दंगे भड़क उठे थे। दंगाइयों के हमले से बचने के लिए बिलकिस बानो और 15 दूसरे लोगों के साथ गांव से भाग गई थीं। उस वक्त वह 21 साल की थी और पांच महीने की गर्भवती थीं।
गुजरात के दाहोद ज़िले के रंधिकपुर गांव की रहने वाली बिलकिस बानो अपनी साढ़े तीन साल की बेटी सालेहा और परिवार के 15 अन्य सदस्यों के साथ अपने घर से भाग निकली थीं।बकरीद के दिन दंगाइयों ने दाहोद और आसपास के इलाकों में क़हर बरपाया था। दंगाइयों ने कई घरों को जला दिया था, वे कथित तौर पर मुसलमान लोगों का सामान लूट रहे थे।
3 मार्च, 2002 को बिलकिस का परिवार छप्परवाड़ गांव पहुंचा और खेतों मे छिप गया। इस मामले में जो चार्जशीट दायर की गई उसमें कहा गया है कि 12 अभियुक्तों समेत 20-30 लोगों ने लाठियों और जंजीरों से बिलकिस और उसके परिवार के लोगों पर हमला कर दिया।
बिलकिस और चार महिलाओं को पहले मारा गया और फिर उनके साथ रेप किया गया। इनमें बिलकिस की मां भी शामिल थीं। इस हमले में रंधिकपुर के 17 मुसलमानों में से सात मारे गए। ये सभी बिलकिस के परिवार के सदस्य थे। इनमें बिलकिस की भी बेटी भी शामिल थी।
इस घटना के कम से कम तीन घंटे के बाद तक बिलकिस बानो बेहोश रहीं। होश आने पर उसने एक आदिवासी महिला से कपड़ा मांगा। इसके बाद वह एक होमगार्ड से मिलीं जो उन्हें शिकायत दर्ज कराने के लिए लिमखेड़ा थाने ले गया। वहां कांस्टेबल सोमाभाई गोरी ने उनकी शिकायत दर्ज की। बाद में गोरी को अपराधियों को बचाने के आरोप में तीन साल की सज़ा मिली।
बिलकिस को गोधरा रिलीफ़ कैंप पहुंचाया गया और वहां से मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया। ये मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया था।

सीबीआई की जांच में 18 लोग दोषी
थाने में शिकायत दर्ज होने के बाद जांच शुरू हुई, लेकिन पुलिस ने सबूतों के अभाव में केस ख़ारिज कर दिया। इसके बाद बिलकिस मानवाधिकार आयोग पहुंचीं और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट ने क्लोज़र रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया और सीबीआई को मामले की नए सिरे से जांच करने का आदेश दिया। सीबीआई ने चार्जशीट में 18 लोगों को दोषी पाया था। इनमें 5 पुलिसकर्मी समेत दो डॉक्टर भी शामिल थे जिन पर अभियुक्त की मदद करने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप था।
सीबीआई ने कहा कि मारे गए लोगों का पोस्टमार्टम ठीक ढंग से नहीं किया गया ताकि आरोपियों को बचाया जा सके। सीबीआई ने केस हाथ में लेने के बाद शवों को कब्रों से निकालने का आदेश दिया। सीबीआई ने कहा कि पोस्टमार्टम के बाद शवों के सिर अलग कर दिए गए थे ताकि उनकी पहचान न हो सके।

इंसाफ की लंबी लड़ाई
इसके बाद बिलकिस बानो को जान से मारने की धमकी मिलने लगी। धमकियों की वजह से उन्हें दो साल में 20 घर बदलना पड़ा। बिलकिस ने न्याय के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। धमकियां मिलने और इंसाफ़ न मिलने की आशंका को देखते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपना केस गुजरात से बाहर किसी दूसरे राज्य में शिफ़्ट करने की अपील की। तभी मामला मुंबई कोर्ट भेज दिया गया।
सीबीआई की विशेष अदालत ने जनवरी 2008 में 11 लोगों को दोषी क़रार दिया। इन लोगों पर गर्भवती महिला के रेप, हत्या और गैरक़ानूनी तौर पर एक जगह इकट्ठा होने का आरोप लगाया गया था। इसमें भी 7 लोगों को सबूत के अभाव में छोड़ दिया गया। जबकि एक अभियुक्त की मुक़दमे की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। 2008 में फ़ैसला देते हुए सीबीआई ने कहा कि जसवंत नाई, गोविंद नाई और नरेश कुमार मोढ़डिया ने बिलकिस का रेप किया जबकि शैलेश भट्ट ने सलेहा का सिर ज़मीन से टकराकर मार डाला। दूसरे अभियुक्तों को रेप और हत्या का दोषी करार दिया गया था।

बिलकिस ने अदालत में सभी अभियुक्तों को पहचाना था
सीबीआई कोर्ट का फ़ैसला इस बात को ध्यान में रख कर दिया गया था कि बिलकिस ने सुनवाई के दौरान सभी अभियुक्तों को पहचान लिया था। उन्होंने कहा कि इनमें से अधिकतर उनकी जान-पहचान के लोग थे। सीबीआई ने अभियोजन पक्ष की अपील मंज़ूर करते हुए कहा था कि बिलकिस का गैंगरेप किया गया फिर उन्हें बुरी तरह मार-पीटकर अहमदाबाद से 270 किलोमीटर दूर बसे गांव रंधिकपुर में मरने के लिए छोड़ दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में बिलकिस बानो को दो सप्ताह के भीतर 50 लाख रुपये मुआवज़ा, घर और नौकरी देने का आदेश दिया था। इसके पहले की सुनवाई में भी कोर्ट ने इसका आदेश दिया था, लेकिन बिलकिस ने कहा था कि उसे कुछ नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के वकील की उस दलील को ख़ारिज कर दिया था जिसमें मुआवज़े को बहुत अधिक बताया गया था। वकील ने कहा था कि दस लाख रुपये का मुआवज़ा देना काफ़ी होगा। इससे पहले गुजरात सरकार ने बिलकिस को सिर्फ़ पांच लाख रुपये का मुआवज़ा दिया था।

कांग्रेस ने गुजरात सरकार से लेकर पीएम मोदी तक को घेरा, बोली- क्या यही है-‘अमृत महोत्सव है’?
11 दोषियों की रिहाई को लेकर कांग्रेस पार्टी केंद्र सरकार के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी हमालवर है। कांग्रेस ने अभियुक्तों की रिहाई को लेकर सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस मुद्दे पर बीजेपी को जमकर आड़े हाथों लिया। कांग्रेस गुजरात सरकार द्वारा बिलकिस बानो मामले के सभी 11 दोषियों को अपनी छूट नीति के तहत समय से पहले रिहा करने की अनुमति देने के बाद बीजेपी पर जमकर निशाना साधा। दोषियों को रिहा करने की इजाजत देने को लेकर कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पीएम मोदी से कई सवाल पूछे।
कांग्रेस नेता खेड़ा ने कहा कि जहां पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान महिलाओं के मुद्दों कई बड़ी-बड़ी बातें कही। वहीं कुछ घंटे बाद भाजपा शासित गुजरात सरकार ने इस तरह के जघन्य अपराध के अपराधियों को छूट देने की घोषणा की। खेड़ा ने कहा, आपने दोषियों को उनकी सजा के 14 साल बिताने का हवाला देते हुए कहा कि जेल में उनका आचरण अच्छा था, और अपराध की प्रकृति! अगर हम सिर्फ अपराध की प्रकृति पर विचार करते हैं, तो क्या बलात्कार उस श्रेणी में नहीं आता। जिसकी कड़ी से कड़ी सजा दी जाए कि कोई भी सजा काफी नहीं है? और हमने यह भी देखा कि बलात्कार के जो अभियुक्त रिहा किए गए, उनकी आरती उतारी जा रही है, तिलक लगाया जा रहा है। क्या यही है – ‘अमृत महोत्सव है’?

ओवैसी ने पूछा- क्‍या यही महिला सशक्तिकरण का उदाहरण है?
11 दोषियों की रिहाई पर असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला। ओवैसी ने पीएम मोदी से सवाल किया कि क्या दोषियों की रिहाई महिला सशक्तिकरण का एक उदाहरण है?
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने प्रेस कान्‍फ्रेंस कर कहा कि ‘हम इसकी निंदा करते हैं। देश देख रहा है कि कैसे भाजपा महिला सशक्तिकरण और महिलाओं के सम्मान के लिए केवल जुमलेबाजी करती है। लेकिन जब मुस्लिम महिलाओं की बात आती है तो वे उन्हें भूल जाती हैं। उन्‍होंने आरोप लगाया कि भाजपा ऐसे फैसले लेती है…जो एक समुदाय को लाभ पहुंचाते हैं!

अभी त‍क नौकरी या घर नहीं दिया!
बिलकिस बानो के पति याकूब रसूल ने कहा कि उन्हें मीडिया से उनकी रिहाई के बारे में पता चलाा। हमें अभी किसी तरह का नोटिस नहीं मिला। रसूल ने कहा कि गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, परिवार को 50 लाख रुपये का मुआवजा दिया है, लेकिन शीर्ष अदालत के निर्देश के अनुसार, अभी तक नौकरी या घर नहीं दिया है। रसूल ने कहा कि वह अपनी पत्नी और पांच बेटों के साथ छिपकर रहता है, जिनमें सबसे बड़ा 20 साल का है।