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महाराष्‍ट्र की राजनीति में दो ‘चाणक्‍यों’ के बीच सियासी जंग…

मुंबई: शनिवार की सुबह महाराष्ट्र की राजनीति में रातों-रात ऐसा भूचाल आया कि शिवसेना सत्‍ता के नजदीक पहुंचकर भी हाथ मलती रह गयी। भारतीय जनता पार्टी ने एनसीपी के अजित पवार के साथ मिलकर सरकार बना डाली। देवेंद्र फडणवीस फिर से मुख्यमंत्री बने और अजित पवार उपमुख्यमंत्री। शनिवार की सुबह राज्य में घटी इस घटना से महाराष्ट्र ही नहीं पूरा देश हैरान रह गया।
फ़िलहाल भारतीय जनता पार्टी ने एनसीपी के अजित पवार के साथ मिलकर सरकार तो बना ली है लेकिन अब उसके सामने चुनौती बहुमत साबित करने की है। पार्टी के नेता इस बात का दावा तो कर रहे हैं कि उनके पास १७० विधायक हैं लेकिन साथ ही यह कवायद भी चल रही है कि इन विधायकों, खासकर छोटी पार्टियों और निर्दलीय विधायकों का समर्थन साथ बना रहे। बहुमत के खेल में ये विधायक अहम कड़ी बन गए हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इन विधायकों का साथ किस राजनीतिक दल को मिलेगा?

कितना किसका दावा
राज्य की 288 सीटों में से 145 सीटें बहुमत के लिए जरूरी हैं। बीजेपी का दावा है कि उसके 105 विधायकों के अलावा उसके पास एनसीपी के पूरे 54 विधायकों का समर्थन है तो है, साथ ही 8 निर्दलीय विधायक भी उसके पाले में हैं। यानी कुल 167 विधायकों पर उसका दावा है। उधर, एनसीपी ने शनिवार को दावा किया है कि उसके पास उसके 49 विधायक अभी भी हैं। ऐसे में विपक्षी खेमे में शिवसेना के 56, एनसीपी के 49, कांग्रेस के 44 और 8 निर्दलीय विधायक माने जा रहे हैं।

17 नवंबर को ही अजित पवार ने दिए थे संकेत
अजित पवार ने पुणे में शरद पवार के घर पर 17 नवंबर को हुई एनसीपी की बैठक में अपने भविष्य के कदम के बारे में संकेत दे दिया था। बैठक में अजित ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि एनसीपी को शिवसेना और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बजाय अगली सरकार बनाने में बीजेपी की मदद करनी चाहिए। उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया क्योंकि तबतक एनसीपी, शिवसेना, कांग्रेस के बीच बातचीत आखिरी चरण में पहुंच चुकी थी। इनके बीच दिल्ली और मुंबई में कई दौर की बातचीत हो चुकी थी।
शुक्रवार शााम फिलहाल के डेप्युटी सीएम अजित पवार ने अपने ही परिवार की पार्टी एनसीपी के एक गुट के विधायकों को तोड़ना शुरू किया।
एनसीपी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, अजित पवार ने अपने दल के कुछ विश्वासपात्र विधायकों को फोन करके पूछा था कि वह किसके साथ हैं। पवार ने विधायकों से सवाल किए कि क्या वह चाचा शरद पवार के साथ जाएंगे या उनके साथ किसी गठबंधन का हिस्सा बनेंगे। विधायकों के जवाब के बाद पवार ने बीजेपी के कुछ नेताओं से भी बातचीत की और फिर रात करीब साढ़े 9 बजे देवेंद्र फडणवीस ने राज्यपाल के पास सरकार बनाने का दावा पेश किया।

एक हफ्ते के भीतर फूटी बगावत की ज्वाला
भले ही अजित के सुझाव को शरद पवार ने तब सिरे से खारिज कर दिया लेकिन वह खतरे को भांपने में नाकाम हो गए। उसके एक हफ्ते के भीतर ही अजित पवार ने बगावत कर शरद पवार और एनसीपी को हक्का-बक्का कर दिया। वैसे पुणे की मीटिंग में एनसीपी नेतृत्व न सिर्फ अजित पवार के मन में क्या चल रहा है, उसे पढ़ने में नाकाम रहा, बल्कि बाद के अन्य संकेतों को भी नहीं पढ़ पाया। मुंबई में शरद पवार के घर पर भी हुई छोटी बैठकों में धनंजय मुंडे और सुनील तटकरे ने भी वैसी ही राय रखी जो अजित पवार ने पुणे बैठक में रखी थी।

देवेंद्र फडणवीस-अजित में होती रही बात, किसी को भनक तक नहीं लगी
सूत्रों ने बताया कि देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के बीच 10 नवंबर को पहली बार इस सिलसिले में बातचीत हुई थी। उसके बाद से ही दोनों नेताओं में हर रोज बात हो रही थी। कई बार तो एक ही दिन में कई बार बातचीत हो रही थी। दोनों जानते थे कि अगर उनके बीच की बात थोड़ी सी भी लीक हो गई तो उनका सारा प्लान गड़बड़ हो जाएगा। अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस में कुछ-कुछ चल रहा है, इसकी जानकारी एनसीपी में सिर्फ धनंजय मुंडे और सुनील तटकरे को ही थी। तटकरे अजित पवार के बेहद करीबी माने जाते हैं। मुंडे का चयन इसलिए हुआ कि फडणवीस को उन पर भरोसा था।

महाराष्‍ट्र की राजनीति में दो ‘चाणक्‍यों’ के बीच सियासी जंग
बताया जाता है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह राजनीति में एक और ऐसे ‘चाणक्‍य’ के खिलाफ थे जिसका अपने दुश्‍मनों को भ्रमित करने और दोस्‍तों को आश्‍चर्य में डालने का लंबा रेकॉर्ड रहा है। शाह और शरद पवार में पुरानी सियासी टक्‍कर रही है। लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के सामने मात खाने के बाद शरद पवार ने महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव में एनसीपी ने पश्चिमी महाराष्‍ट्र में बहुत अच्‍छी वापसी की।

शाह और पवार के बीच सीटों के लिए सियासी जंग
एनसीपी ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से 10 सीटें ज्‍यादा जीतीं जो उसके लिए संतोषजनक रहा। शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे की महत्‍वाकांक्षाओं ने अगर सिर नहीं उठाया होता तो शरद पवार सत्‍ता की दौड़ से बाहर रहते। हालांकि राज्‍य की राजनीतिक परिस्थितियां ऐसी बनीं कि एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए मध्‍यस्‍थ की भूमिका निभानी पड़ी। इसके बाद बीजेपी ने शरद पवार के मंसूबों पर पानी फेरने का फैसला किया। बीजेपी ने शरद पवार के भतीजे को ही तोड़ लिया।
अजित पवार के विद्रोह में अमित शाह की छाप साफ नजर आती है जो शिवसेना को सबक सिखाने के लिए मन बना चुके हैं। इन सबके बीच शाह और शरद पवार के बीच सीटों के लिए सियासी जंग शुरू हो गई है। हालत यह है कि बहुमत के जादुई आंकड़े के लिए दोनों ही खेमों की धड़कनें थमी हुई हैं। शाह के पास सत्‍ता में रहने का फायदा है लेकिन एनसीपी विधायकों को शरद पवार के कद को अनदेखा करना बहुत मुश्किल होगा।

शिवसेना के खेल के बाद बीजेपी ने चला अपना कार्ड
शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के बीच जब सरकार बनाने के लिए बातचीत चल रही थी, तब दिल्ली में सब यही कह रहे थे कि बीजेपी क्‍यों महाराष्‍ट्र को शिवसेना के हाथों में जाने दे रही है? इस यक्ष प्रश्‍न का जवाब शनिवार सुबह आ गया जब देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और अजित पवार ने डेप्‍युटी सीएम पद की शपथ ली। बीजेपी सूत्रों ने बताया कि उन्‍हें आशा थी कि शिवसेना के साथ उनका समझौता हो जाएगा और राज्‍य में दोनों का गठबंधन बना रहेगा।
बीजेपी के एक वरिष्‍ठ नेता ने कहा, ‘पार्टी के एक नेता लगातार एनसीपी के एक धड़े के साथ बातचीत कर रहे थे जो शिवसेना के साथ गठजोड़ का कड़ा विरोध कर रहा था। इन एनसीपी नेताओं को कांग्रेस और शिवसेना के साथ गठजोड़ से बनने वाली सरकार की स्थिरता को लेकर भरोसा नहीं था।’ बीजेपी ने अपने नेताओं से शिवसेना नेताओं पर सियासी हमला करने से परहेज करने को कहा। यह रणनीति सफल नहीं रही। हालांकि जब कांग्रेस ने यह संकेत दे दिया कि वह शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर तैयार है, इसके बाद बीजेपी भी आगे बढ़ गई।