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बंगाल: मंच पर जाते ही लगे ‘जयश्रीराम’ के नारे, बिफरीं ममता बोलीं- बुलाकर बेइज्जत करना ठीक नहीं!

कोलकाता: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के मौके पर कोलकाता पहुंचे। पीएम मोदी कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल पहुंचे तो यहां उनका स्वागत उनकी मुखर विरोधी और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया। हालांकि इस मुलाकात में वह गर्मजोशी नहीं दिखी जो एक राज्य के सीएम और देश के पीएम की मुलाकात के दौरान होनी चाहिए थी। साथ में जरूर दिखीं लेकिन ममता की बेरुखी भी साफ झलक रही थी। परंतु, जैसे ही जय श्रीराम के नारे लगे तो मंच पर चढ़ते ही ममता का गुस्सा फूट पड़ा। नारेबाजी से नाराज ममता ने कार्यक्रम में आए लोगों को जमकर सुनाया और कुछ भी बोलने से साफ इनकार कर दिया।
इससे पहले पीएम मोदी ने नेताजी की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी और विक्टोरिया मेमोरियल में उनकी जीवनयात्रा पर लगी प्रदर्शन देखी। इस दौरान भी ममता बनर्जी हाथ बांधे दूर चलती रहीं। एक बार एसपीजी कमांडो आगे आ गए तो ममता ने उन्हें टोका। कुछ देर चलने के बाद वह थोड़ा पीछे रह गईं तो राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उन्हें आगे आने के लिए कहना पड़ा।

मंच पर आकर इसीलिए भड़कीं दीदी
दरअसल, मुख्यमंत्री ममता (दीदी) की स्पीच से ठीक पहले कार्यक्रम में मौजूद कुछ लोगों ने ‘जय श्रीराम’ के नारे लगा दिए। इससे वह नाराज हो गईं। उन्होंने कहा कि सरकारी कार्यक्रम का एक सम्मान होना चाहिए। मैं आभारी हूं पीएम मोदी और सांस्कृतिक मंत्रालय का कि उन्होंने समारोह का आयोजन कोलकाता में किया है और मुझे आमंत्रित किया है। किसी को कार्यक्रम में बुलाकार इस तरह से बेइज्जती करना शोभा नहीं देता है। इसके बाद जय हिंद और जय बांग्ला बोलकर अन्य कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। ममता ने बमुश्किल एक मिनट का भाषण दिया और मंच से नीचे उतर गईं। दरअसल, जब ममता बनर्जी अपने संबोधन के लिए मंच पर चढ़ रही थीं, उसी दौरान नीचे खड़े लोगों ने ‘जय श्रीराम’ की नारेबाजी शुरू कर दी। मंच पर पीएम नरेंद्र मोदी भी मौजूद हैं।

सुबह ही बोला था जुबानी हमला, ‘बेरुखी’ की इंटरनेट मीडिया पर चर्चा
ममता की इस बेरुखी की सोशल मीडिया पर भी खासा चर्चा है। इससे पहले शनिवार सुबह मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता में करीब 9 किलोमीटर लंबी पदयात्र की थी। इस दौरान उन्होंने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर जुबानी हमला बोला था। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने नेताजी का जन्मदिन ‘पराक्रम दिवस’ के तौर पर घोषित कर दिया, मगर मुझसे मशविरा तक नहीं किया।

नेताजी का राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है भाजपाः तृणमूल
तृणमूल कांग्रेस पहले से आरोप लगा रही है कि भाजपा विधानसभा चुनावों को देखते हुए नेताजी के जन्मदिन का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। दरअसल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मनाने के लिए केंद्र सरकार ने एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है जो साल भर के कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करेगी। इस समिति की अध्‍यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। इसके अलावा उनकी 125वीं जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

ममता ने कहा, हम सिर्फ चुनावी साल में नहीं मनाते हैं नेताजी का जन्मदिन!
बीजेपी के नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने को लेकर ममता ने कहा, ऐसा नहीं है कि हम नेताजी की जयंती केवल उन वर्षों में ही मनाते हों जिस वर्ष चुनाव होने वाले हैं। उनकी 125वीं जयंती हम बहुत बड़े पैमाने पर मना रहे हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने नेताजी को देशनायक बताया था। इसलिए हमने इस दिन को देशनायक दिवस बनाने का फैसला किया है। ममता ने इसके साथ ही सुभाष चंद्र बोस को देश का नायक का दर्जा दिए जाने की मांग भी की है।

पीएम मोदी के भाषण की खास बातें…

नेताजी ने कहा था- आजादी मांगूंगा नहीं, छीन लूंगा।
प्रधानमंत्री बोले- आज के दिन सिर्फ नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म ही नहीं हुआ था, बल्कि भारत के आत्मसम्मान का जन्म हुआ था। आज के ही दिन गुलामी के अंधेरे में वह चेतना फूटी थी जिसने दुनिया की सबसे बड़ी सत्ता के सामने खड़े होकर कहा था कि मैं तुमसे आजादी मांगूंगा नहीं, छीन लूंगा।

नेताजी होते तो आज के भारत को देखकर गर्व करते।
मोदी ने कहा- आज नेताजी देखते कि भारत कोराेेना से खुद लड़कर कामयाब हो रहा है। खुद वैक्सीन बना रहा है। दूसरे देशों को वैक्सीन भेजकर मदद भी कर रहा है तो कितने खुश होते।

दोनों नेताओं का लक्ष्य एक ही- बंगालियत से खुद को करीब दिखाना
बंगाल में राज्य के इतिहास और संस्कृति से जुड़े महापुरुषों के प्रति खासा सम्मान रहा है। यहां जनता इसे बंगालियत से जोड़कर देखती है। यहां खेल और कला की शिक्षा हर घर में दी ही जाती है, यही वजह है कि जनता सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सीधे तौर पर जुड़ी होती है। विक्टोरिया मेमोरियल हॉल के मंच पर भी मोदी और ममता दोनों का मकसद इसी बंगालियत से खुद को करीब दिखाना था। हो सकता है इसी बंगाली सेंटीमेंट को जीतने वाले का पलड़ा आने वाले विधानसभा चुनाव में भारी रहे।