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महाराष्ट्र में इस साल धूमधाम से मनाया जायेगा दही-हंडी और गणेशोत्सव, सरकार ने दी हरी झंडी

मुंबई,(राजेश जायसवाल): देश भर में फैले कोरोना वायरस प्रकोप के चलते पिछले दो वर्षों से सभी त्योहार फीके पड़ गए। महाराष्ट्र के दो प्रमुख त्योहार दही-हंडी और गणेशोत्सव भी कोरोनावायरस की पाबंदियों के चलते बिलकुल सादगी से मनाया गया था। लेकिन इस साल दही-हंडी और गणेशोत्सव का त्योहार धूमधाम से मनाने की हरी झंडी सरकार ने दे दी है।
पिछले दो वर्षों से कोरोना पाबंदियों के बीच फंसे दही-हंडी और गणेशोत्सव इस वर्ष धूमधाम से मनाया जाएगा। राज्य के नए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा है कि इस वर्ष गणेशोत्सव और दही-हंडी पर्व पर कोई पाबंदी नहीं लगाई जाएगी।

इससे यह अब साफ हो गया है कि इस वर्ष दही-हंडी और गणेशोत्सव बिना किसी रोक-टोक के मनाया जाएगा। इसलिए इस साल लोगों में भारी उत्साह देखने को मिल सकता है। राज्य में गणेशोत्सव मनाने के लिए एसटी प्रशासन को एक्स्ट्रा ट्रेनें जारी करने का आदेश दिया गया है। परिवहन विभाग को ट्रैफिक प्लानिंग के निर्देश दे दिए गए हैं। हाईवे पुलिस को भी प्रमुख हाईवे पर जाम से बचने के निर्देश दिए गए हैं। इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी 18 अगस्त 2022 गुरुवार के दिन मनाई जाएगी और दही-हंडी उत्सव अगले दिन अर्थात 19 अगस्त 2022 को मनाई जाएगी। वहीँ गणेशोत्सव 31 अगस्त से 9 सितंबर तक मनाया जाएगा।

कैसे मनाते हैं दही-हंडी का उत्सव?
महाराष्ट्र में दही-हंडी उत्सव की बड़ी धूम रहती है। यहाँ दही-हंडी को फोड़ने के लिए युवाओं की एक टीम बनाई जाती है। इसके लिए सबसे पहले युवा टीम एक पिरामिड तैयार करते हैं और पिरामिड पर चढ़कर एक व्यक्ति द्वारा सबसे ऊँची बंधी हुई उस दही-हंडी को फोड़ दिया जाता है। अगर कोई भी व्यक्ति उस हांडी को फोड़ने से पहले ही पिरामिड तोड़ देता है, तो वह उनकी असफलता मानी जाती है…तथा जो टीम उस पिरामिड को सफल बनाती है और दही-हंडी तोड़ देती है। वह मंडल प्रतियोगिता जीत जाती है। जिसे देखने के लिए लोग बड़ी संख्या में सुबह से ही घर छोड़कर सड़कों पर आ जाते हैं। इसी प्रकार दही-हंडी का उत्सव मनाया जाता है।
मुंबई के पूर्वी उपनगर घाटकोपर में भाजपा विधायक राम कदम बड़े पैमाने पर दही-हंडी का आयोजन करते हैं। उनके आयोजन में राजनेता, अभिनेता से लेकर कई जानी-मानी हस्तियां शामिल होती हैं।

महाराष्ट्र में कैसे मनाते हैं गणेशोत्सव का त्यौहार?
गणेश चतुर्थी वैसे तो पूरे देश में ही बड़े धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में इस त्योहार का एक अलग ही महत्व है। गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनन्त चतुर्दशी (अनंत चौदस) तक चलने वाला 10 दिवसीय गणेशोत्सव यहां देखते ही बनता है। महाराष्ट्र के कई शहरों में गणेश उत्सव की अलग ही रौनक देखने को मिलती है। पूरे हर्षोउल्लास के साथ मनाये जाने वाले इस त्योहार का गणेश विसर्जन के साथ ही अंत होता है।
हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में हिंदू तिथि के मुताबिक, गणेश उत्सव की शुरूवात भाद्रपद महीने की चतुर्थी को होती है। एक वक्त था जब गणेशोत्सव बड़े पैमाने पर सिर्फ राजसी घरानों में ही मनाया जाता था लेकिन आज ये आम लोगों का त्यौहार बन गया है। महाराष्ट्र के हर गली-मोहल्ले में सार्वजनिक गणेश उत्सव के पंडाल सजे दिखाई देते हैं।

‘लालबाग के राजा’
वैसे तो गणेशोत्सव में सबसे ज्यादा चर्चा में रहते हैं ‘लालबाग के राजा’। यह दक्षिण मुंबई स्थित सबसे प्रसिद्ध गणेश मंडलों में से एक हैं। माना जाता है कि ‘लालबाग के राजा’ अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करने के लिए सुप्रसिद्ध हैं। बड़े-बड़े नेता और सेलिब्रिटी यहां दर्शन करने आते हैं।
‘लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल’ की स्थापना वर्ष 1934 में हुई थी। यह मुंबई के लालबाग, परेल इलाके में स्थित हैं। यह गणेश मंडल अपने 10 दिवसीय समारोह के दौरान लाखों भक्तों को खासा आकर्षित करता है। इस प्रसिद्ध गणपति को ‘नवसाचा गणपति’(इच्छाओं की पूर्ति करने वाले) के रूप में भी जाना जाता है। हर वर्ष केवल दर्शन पाने के लिए यहां करीबन 6 किलोमीटर की लंबी कतार लगती है, लालबाग के गणेश मूर्ति का विसर्जन गिरगांव चौपाटी में 10वें दिन किया जाता है।
इस मंडल की स्थापना वर्ष 1934 में अपने मौजूदा स्थान पर (लालबाग, परेल) हुई थी। पूर्व पार्षद श्री कुंवरजी जेठाभाई शाह, डॉ॰ वी.बी कोरगांवकर और स्थानीय निवासियों के लगातार प्रयासों और समर्थन के बाद, मालिक रजबअली तय्यबअली ने बाजार के निर्माण के लिए एक भूखंड देने का फैसला किया।
मंडल का गठन उस युग में हुआ जब स्वतंत्रता संघर्ष अपने पूरे चरम पर था। लोकमान्य तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ की लोगों की जागृति के लिए ‘सार्वजनिक गणेशोत्सव’ को विचार-विमर्श को माध्यम बनाया था। यहां धार्मिक कर्तव्यों के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक मुद्दों पर भी विचार विमर्श किया जाता था। मुम्बई में गणेश उत्सव के दौरान सभी की नजर मशहूर ‘लालबाग के राजा’ पर होती है…जिन्हें ‘मन्नतों का गणेश’ कहा जाता है। इस मंडल की गणेश प्रतिमा करीब 20 फीट ऊंची होती है।