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मुंबई: पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर…शिवसेना ने इशारों-इशारों में कंगना को फिर चेताया!

मुंबई: अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से बॉलिवुड को लेकर चल रहे विवाद पर शिवसेना ने फिल्म जगत का पुरजोर समर्थन किया है। वहीँ बॉलिवुड अभिनेत्री कंगना रनौत और शिवसेना के बीच जुबानी जंग जारी है। ऐसे में शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ ने फिर कंगना रनौत पर निशाना साधा है। ‘सामना’ के संपादकीय में ‘विवाद माफियाओं का पेटदर्द’ शीर्षक के जरिए मुंबई की तुलना ‘पाक अधिकृत कश्मीर’ से करने पर कंगना रनौत पर कटाक्ष किया गया है। साथ ही मुंबई में रहकर महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाने पर ‘सामना’ ने ‘पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर’ वाला उदाहरण पेश किया है।
सामना में कंगना पर निशाना साधते हुए लिखा है- ‘पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता…या खुद कांच के घर में रहकर दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका जाता। जिन्होंने फेंका उन्हें मुंबई और महाराष्ट्र का श्राप लगा।
मुंबई को कम आंकना मतलब खुद ही खुद के लिए गड्ढा खोदने जैसा है। महाराष्ट्र संतों-महात्माओं और क्रांतिकारियों की भूमि है। हिंदवी स्वराज्य के लिए, स्वतंत्रता के लिए और महाराष्ट्र के निर्माण के लिए मुंबई की भूमि यहां के भूमिपूत्रों के खून और पसीने से नहाई है।

महाराष्ट्र के एक हाथ में तलवार तो दूसरे में स्वाभिमान की चिंगारी
सामना में आगे लिखा- ‘स्वाभिमान और त्याग मुंबई के तेजस्वी अलंकार हैं। औरंगजेब की क्रम संभाजीनगर में और प्रतापगढ़ में अफजल खान की क्रब सम्मानपूर्वक बनाने वाला यह विशाल ह्रदय वाला महाराष्ट्र है।
इस महाराष्ट्र के हाथ में छत्रपति शिवाजी महाराज ने भवानी तलवार दी। बालासाहेब ठाकरे ने दूसरे हाथ में स्वाभिमान की चिंगारी रखी। अगर किसी को ऐसा लग रहा हो कि उस चिंगारी पर राख जम गई है तो एक बार फूंक मारकर देख ले!’

कंगना के बयान- मुंबई पाक अधिकृत कश्मीर है
मुंबई पाक अधिकृत कश्मीर है कि नहीं, यह विवाद जिसने पैदा किया, उसी को मुबारक। मुंबई के हिस्से में अक्सर यह विवाद आता रहता है। लेकिन इन विवाद माफियाओं की फिक्र न करते हुए मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित है। ‘शिवसेना प्रमुख हमेशा घोषित तौर पर कहते थे कि देश एक है और अखंड है। राष्ट्रीय एकता तो है ही लेकिन राष्ट्रीय एकता का ये तुनतुना हमेशा मुंबई महाराष्ट्र के बारे में ही क्यों बजाया जाता है? राष्ट्रीय एकता की ये बातें अन्य राज्यों के बारे में क्यों लागू नहीं होती? जो आता है वही महाराष्ट्र को राष्ट्रीय एकता सिखाता है।’

मुंबई में लोग पहले फुटपाथ पर सोते हैं, फिर जुहू-पाली हिल रहने चले जाते हैं
शिवसेना ने शनिवार को कहा कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की आधारशिला एक मराठी ‘दादासाहेब फाल्के’ ने रखी थी। फिल्म इंडस्ट्री में कलाकारों ने अपनी प्रतिभा के दम पर सफलता पाई न कि धर्म के बल पर। पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में छपे संपादकीय में कंगना रनौत के उस ट्वीट पर निशाना साधा गया है जिसमें उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को ‘इस्लाम के प्रभुत्व’ वाली करार दिया था।
दरअसल कंगना रनौत ने अपने एक ट्वीट में कहा था कि उन्होंने ‘इस्लाम के प्रभुत्व’ वाली फिल्म इंडस्ट्री में अपना जीवन और करियर दांव पर लगाया और रानी लक्ष्मीबाई और छत्रपति शिवाजी महाराज पर फिल्में बनाईं। संपादकीय में कहा गया कि फाल्के की रखी गई आधारशिला का फल आज पूरे देश से आए कलाकारों को मिल रहा है।

सामना में कहा गया- ‘मुंबई में इस इंडस्ट्री में अपना भाग्य आजमाने जो आता है वह पहले फुटपाथ पर सोता है और फिर जुहू, पाली हिल और मालाबार हिल में बंगला बनाकर रहने चला जाता है। ये सभी लोग इस शहर और राज्य के हमेशा आभारी रहे हैं जिसने उन्हें उनके सपनों को सच करने का अवसर दिया। उन्होंने मुंबई को कभी धोखा नहीं दिया और शहर के विकास में अपना योगदान दिया।’

शिवसेना बोली- फिल्म इंडस्ट्री से लाखों लोगों को रोजगार मिला
पार्टी मुखपत्र में कहा गया- ‘बहुत से कलाकारों को भारत रत्न और निशान ए पाकिस्तान से नवाजा गया है।’ संयोग से कई साल पहले जब दिलीप कुमार ने निशान ए पाकिस्तान स्वीकार किया था तब शिवसेना ने इसका मुखर होकर विरोध किया था। संपादकीय में यह भी कहा गया कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री लाखों लोगों को रोजगार देता है। इंडस्ट्री में ‘खानों’ के प्रभुत्व पर संपादकीय में कहा गया कि एक समय फिल्म इंडस्ट्री में पंजाबियों और महाराष्ट्रियन लोगों का प्रभुत्व था।

सामना ने कंगना को देशद्रोही, बेईमान बताया
कंगना रनौत के आने से पहले भी शिवसेना के मुखपत्र सामना में कंगना पर हमला बोला था। सामना ने कंगना को बेईमान, देशद्रोही…जैसे शब्दों से तीखा हमला किया था। सामना के संपादकीय में कंगना को बेईमान बताया गया था। यहां तक कि कंगना को देशद्रोही, बेईमान और मानसिक विकृत बताया गया। वहीं मोदी सरकार को देशद्रोही को सुरक्षा देने की बात कही गई थी। साथ ही पत्रकारों को भी देशद्रोही बताकर हरामखोर कहा गया था।