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सुप्रीम कोर्ट ने मराठों को नौकरी और शिक्षा में दिया जाने वाला आरक्षण असंवैधानिक ठहराया!

नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के फैसले को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। सुप्रीमकोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठों को नौकरी और शिक्षा में दिया जाने वाला आरक्षण असंवैधानिक ठहराया। साथ ही कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम 50 फीसद सीमा तय करने वाले 1992 के इंदिरा साहनी फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने की मांग भी ठुकराई। पांच जजों वाली संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि मराठाओं को कोटा देने वाले महाराष्ट्र के कानून में 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है। मराठा आरक्षण देते समय 50 फीसद आरक्षण का उल्लंघन करने का कोई वैध आधार नहीं था फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि मराठा समुदाय के लोगों को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के रूप में घोषित श्रेणी में नहीं लाया जा सकता है।
बांबे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र में शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था। इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाया। उच्चतम न्यायालय ने 26 मार्च को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

अब मराठा आरक्षण पर फैसला लें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री: उद्धव ठाकरे
सुप्रीम कोर्ट की ओर से मराठा आरक्षण को रद्द करने के फैसले के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि अब मराठा आरक्षण के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तत्काल फैसला करें। यह हमारी हाथ जोड़कर विनती है। सीएम ठाकरे ने कहा कि इससे पहले केंद्र सरकार ने शाह बानो मामले, एट्रोसिटी कानून और अनुच्छेद 370 को रद्द करने के बारे में तत्परता से फैसला लिया है। इसके लिए संविधान में संशोधन किया है। अब केंद्र सरकार वही गति मराठा आरक्षण के मामले में भी दिखाए।
सीएम उद्धव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महाराष्ट्र सरकार को आरक्षण के बारे में फैसला लेने का अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने गायकवाड समिति की सिफारिशों के आधार पर राज्य सरकार की ओर से लिए गए फैसले को कचरे की टोकरी दिखाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण के बारे में फैसला लेने का अधिकार राज्य को नहीं बल्कि केंद्र सरकार और राष्ट्रपति को है। यह आदेश एक प्रकार से छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र का मार्गदर्शन है। मुख्यमंत्री ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि राज्यसभा सदस्य छत्रपति संभाजी राजे पिछले एक साल से मराठा आरक्षण के मामले को लेकर प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांग रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री ने उन्हें मिलने का समय क्यों नहीं दिया?
मुख्यमंत्री ने कहा कि मराठा आरक्षण के बारे में फैसला लेने का अधिकार प्रधानमंत्री को है। इसलिए मेरा यह सवाल है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत नहीं किया जा सकता है। लेकिन इस फैसले को लेकर कोई महाराष्ट्र का वातावरण बिगाड़ने का प्रयास न करे। कोई जनता को भड़काने का प्रयास न करे। सरकार मराठा आरक्षण के लिए कानूनी लड़ाई जीत मिलने तक जारी रखेगी। उद्धव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मराठा आरक्षण को रद्द किया जाना राज्य के किसान, मेहनतकश समाज का दुर्भाग्य है।

अप्रत्याशित और निराशजनक फैसला: अजित पवार
उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने मराठा आरक्षण को रद्द करने के फैसले को अप्रत्याशित, अकल्पनीय और निराशजनक बताया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का गहराई से अध्ययन कर राज्य सरकार अगला कदम उठाने के बारे में फैसला करेगी। उपमुख्यमंत्री ने कहा कि देश के कई राज्यों में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक होते हुए भी मराठा आरक्षण के बारे में विचार न होना कल्पना से परे है। उपमुख्यमंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो नकारा है उसकी भरपाई जिस भी मार्ग से संभव होगा उसको करने के लिए सरकार प्रयासरत रहेगी। मराठा समाज को न्याय व अधिकार देने के लिए सरकार के लिए जो संभव होगा वह किया जाएगा।

अशोक चव्हाण ने लगाया फडणवीस पर बड़ा आरोप, कहा, मराठा आरक्षण पर लोगों को भ्रमित किया
सुप्रीम कोर्ट के मराठा आरक्षण को रद्द करने के फैसले के बाद प्रदेश के पूर्व सीएम, उद्धव सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री तथा राज्य मंत्रिमंडल की मराठा आरक्षण उपसमिति के अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने भाजपा सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को अधिकार नहीं होने के बावजूद फडणवीस ने मराठा आरक्षण को लागू करके विधानमंडल और जनता को भ्रमित किया है। चव्हाण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण के आदेश में कहा है कि 102 वें संविधान संशोधन के बाद राज्यों को आरक्षण देने का अधिकार नहीं बचा है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने फडणवीस सरकार के आरक्षण को फैसले को रद्द किया है। ऐसे में मराठा आरक्षण रद्द होने के लिए महाविकास आघाड़ी सरकार जिम्मेदार कैसे हो गई?
बुधवार को मुख्यमंत्री ने मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों के साथ बैठक की। इसके बाद राज्य अथितिगृह सह्याद्री में सरकार का पक्ष रखने के लिए तीन मंत्री मीडिया के सामने आए। पत्रकारों से बातचीत में चव्हाण ने कहा कि केंद्र सरकार ने102 वें संविधान संशोधन को 14 अगस्त 2018 को किया। इसके बाद फडणवीस सरकार ने 30 नवंबर 2018 को गायकवाड समिति की रिपोर्ट के आधार पर मराठा समाज को आरक्षण देने का फैसला किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि 102 वें संविधान संशोधन में राज्यों को आरक्षण देने का अधिकार नहीं है। चव्हाण ने कहा कि फडणवीस अब कह रहे हैं कि मराठा आरक्षण कानून पहले से था भाजपा सरकार ने केवल उसका विस्तार किया था। लेकिन उसी मराठा आरक्षण कानून में स्पष्ट है कि नया कानून लागू होने के बाद पुराना कानून अपने आप रद्द हो जाता है।
चव्हाण ने कहा कि तमिलनाडू समेत 7 से 8 राज्यों में आरक्षण का फैसला 102 वें संविधान संशोधन से पहले किया गया था लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने मराठा आरक्षण का फैसला संविधान संशोधन के बाद लिया गया है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण के फैसले को अस्वीकार किया है। चव्हाण ने कहा कि संसद की संसदीय समिति के सामने यह मुद्दा उठा था कि 102 वें संविधान संशोधन के बाद राज्य के पास आरक्षण का अधिकार होगा अथवा नहीं। इस पर केंद्र सरकार के मंत्री ने कहा था कि राज्यों का अधिकार बरकरार है। इसलिए अब केंद्र सरकार को यह सिद्ध करना है। चव्हाण ने कहा कि विपक्ष के नेता फडणवीस को लोगों के सामने सच्चाई रखनी चाहिए। कोई जनता को भड़काने का काम न करे।

राज्य सरकार आरक्षण की सिफारिश केंद्र को भेजेगी
चव्हाण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार आरक्षण के लिए किसी विशेष जाति को अधिसूचित करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास है। इसलिए राज्य सरकार की ओर से मराठा आरक्षण के लिए केंद्र सरकार के पास सिफारिश भेजेगी। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग इस सिफारिश का अध्ययन करने के बाद राष्ट्रपति के पास भेजे। इसके बाद राष्ट्रपति उस पर अंतिम फैसला करेंगे।चव्हाण ने कहा कि मराठा आरक्षण की लड़ाई अभी खत्म नहीं है। सरकार कानूनी विकल्पों पर विचार कर रही है।

केंद्र सरकार तत्काल पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करे: नवाब मलिक
प्रदेश के अल्पसंख्यक विकास मंत्री नवाब मलिक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार आरक्षण के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पास सिफारिश भेज सकती है। इसके आधार पर राज्य सरकार मराठा आरक्षण के लिए सिफारिश भेजेगी लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन नहीं किया है। इसलिए केंद्र सरकार को तत्काल राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करना चाहिए। एक सवाल के जवाब में मलिक ने कहा कि फडणवीस और भाजपा पहले दिन से मराठा आरक्षण के विरोध में थे। मराठा आरक्षण के खिलाफ जो लोग सुप्रीम कोर्ट में गए हैं वह सभी भाजपा के गैंग के लोग हैं।