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Subrata Roy के ”सहाराश्री” बनने की पूरी कहानी: कभी टीम इंडिया के स्पॉन्सर थे, पूर्व पीएम वाजपेयी ने की थी तारीफ!

मुंबई: आज मुंबई से एक दुःखद खबर सामने आई है। देश के बड़े-बड़े राजनेताओं से लेकर बॉलीवुड तक अपनी ऊँची पहुंच रखने वाले ‘बिग ‎पर्सनालिटी’ के मालिक सहारा ग्रुप के चेयरमैन सुब्रत राय अब हमारे बीच में रहे। मंगलवार की रात मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन उनका हो गया। वे 75 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। ‘सहाराश्री’ बेहतर सोच के साथ-साथ बेहतरीन तरीके से अपने काम को अंजाम देते थे। सुब्रत रॉय हर क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ रखते थे।

सुब्रत रॉय का पार्थिव शरीर विशेष विमान से आज थोड़ी देर में अमौसी एयरपोर्ट पहुंच जाएगा। उनका पार्थिव शरीर गोमती नगर स्थित सहारा सिटी में कल सुबह तक लोगों के दर्शन के लिए रखा जाएगा। उसके बाद उनका अंतिम संस्कार होगा। ऐसी उम्मीद है कि सहारा समूह से जुड़े हुए देशभर के कर्मचारी बड़ी संख्या में वहां पहुंच सकते हैं।

दूरदर्शी सोच और प्रेरक व्यक्तित्व के मालिक ‘सहाराश्री’ का निधन रात 10.30 बजे दिल का दौरा पड़ने के कारण हुआ। सहारा ग्रुप के बयान में कहा गया है कि श्री राय कैंसर से जूझ रहे थे जो शरीर में फैल गया था। इसके अलावा उन्हें रक्तचाप और मधुमेह की भी समस्या थी। उन्हें 12 नवंबर को तबीयत ज्यादा खराब होने पर कोकिला बेन अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय का जन्म 10 जून 1948 को बिहार के अररिया में हुआ। सुब्रत रॉय ने अपने करियर की यात्रा गोरखपुर के सरकारी तकनीकी संस्थान से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा के साथ शुरू की।

बात उनके करियर की शुरुआत की करें तो, सहाराश्री सुब्रत रॉय का शून्य से लेकर शिखर तक का सफर काफी रोचक है। उन्होंने सुब्रत राय से ‘सहाराश्री सुब्रत रॉय’ बनने तक जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे। उन्होंने अपने करिअर की शुरुआत गोरखपुर में नमकीन-स्नैक्स बेचने से की। अपनी लैंब्रेटा स्कूटर पर जया प्रोडक्ट के नाम से स्नैक्स बेचते थे। वे अपने करीबी 13 दोस्तों को कभी नहीं भूले जिन्होंने उनके बुरे समय में साथ दिया। जब करोड़ों के मालिक बने तो उन्होंने सभी पुराने दोस्तों को अपने साथ जोड़ा और कंपनी में बड़ा ओहदा दिया।

इसके बाद 1978 में गोरखपुर में एक छोटे से ऑफिस में सहारा समूह की नींव रखी। इंडस्ट्रियल एरिया में कपड़े और पंखे की फैक्टरी शुरू की। रॉय के नेतृत्व में, सहारा ने कई व्यवसायों में विस्तार किया। वर्ष 1983 में कारोबारी मित्र एसके नाथ ने अलग होकर ‘राप्ती फाइनेंस’ बना ली। इसी साल सुब्रत राय ने लखनऊ में कंपनी का मुख्यालय खोला। रॉय के नेतृत्व में, सहारा ने कई अन्य व्यवसायों में विस्तार किया। सहारा समूह ने 1992 में हिंदी भाषा का समाचार पत्र दैनिक राष्ट्रीय सहारा लॉन्च किया। 1990 के दशक के अंत में पुणे के पास महत्वाकांक्षी एम्बी वैली सिटी परियोजना शुरू की।
1990 के बाद सुब्रत रॉय ने सहारा टीवी के साथ टेलीविजन इंडस्ट्री में प्रवेश किया, जिसे बाद में सहारा वन नाम दिया गया। 2000 के दशक में सहारा ने लंदन के ग्रोसवेनर हाउस होटल और न्यूयॉर्क शहर के प्लाजा होटल जैसी प्रतिष्ठित संपत्तियों के अधिग्रहण के साथ अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं।

सहारा इंडिया परिवार को एक समय टाइम पत्रिका ने भारतीय रेलवे के बाद भारत में दूसरे सबसे बड़े नियोक्ता के रूप में प्रतिष्ठित किया था। जिसमें बताया गया था कि लगभग 1.2 मिलियन लोग सहारा परिवार के साथ जुड़े हैं। सहारा समूह के पास 9 करोड़ से अधिक निवेशक हैं।

‘सहाराश्री का साम्राज्य फाइनेंस, रियल एस्टेट, मीडिया और हॉस्पिटैलिटी से लेकर अन्य सेक्टर्स में फैला। कामयाबी के शिखर पर पहुंचने के बाद भी कभी पुराना समय नहीं भूले। गोरखपुर में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने जीवन के तमाम अनुभव सार्वजनिक किए थे। 18 अप्रैल 2013 को गोरखपुर क्लब में आयोजित सम्मान समारोह में सुब्रत रॉय ने बेबाकी से अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं को सबके सामने रखा था। उन्होंने बताया था कि गोरखपुर उनकी कर्मस्थली रही और वो यहां की हर गलियों से वाकिफ हैं। पढ़ाई-लिखाई और कारोबार की शुरुआत यहीं से की।

सिनेमा रोड स्थित कार्यालय के एक कमरे में दो कुर्सी और एक स्कूटर के साथ उन्होंने दो लाख करोड़ रुपये तक का सफर तय किया। थोड़ी पूंजी हुई तो 1978 में इंडस्ट्रियल एरिया में कपड़े और पंखे की फैक्ट्री शुरू की। इस दौरान लैम्ब्रेटा स्कूटर से पंखा और अन्य उत्पादों को बेचा करते थे। दुकानों पर पंखा पहुंचाने के साथ ही वह दुकानदारों को स्माल सेविंग के बारे में जागरूक करते थे। बैंकिंग की जरूरतों के साथ रोजगार के अवसर के बीच सहारा का ‘गोल्डेन की’ योजना क्रान्तिकारी साबित हुई जिसमें समय-समय पर होने वाली लाटरी ने लोअर मिडिल क्लास में मजबूती से जोड़ा।

सहारा समूह ने एयरलाइंस कंपनी भी खोली थी, जिसके बेड़े में कई जहाज थे। हालांकि यह कारोबार सुब्रत राय को रास नहीं आया, जिसके बाद उन्होंने अपने हाथ वापस खींच लिए। सेबी विवाद के बाद सहारा क्यू शाॅप नाम से कंज्यूमर प्रोडक्ट की रिटेल चेन की शुरुआत की, लेकिन यह काम भी जल्द बंद करना पड़ गया। हालांकि मुंबई में उनका सहारा स्टार होटल बनाने का फैसला सही साबित हुआ।

सुब्रत राय का करीब चार दशक का कारोबारी सफर सफलता की बुलंदियों को छूने वाला साबित हुआ। लखनऊ के सहारा शहर में राजनेताओं, फिल्म कलाकारों और क्रिकेटर्स का लगने वाला जमावड़ा इसका गवाह बन चुका है। समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से उनके करीबी रिश्ते जगजाहिर थे तो भाजपा और कांग्रेस के तमाम बड़े नेता उनके मुरीद थे।

साल 1978 में एक स्कूटर और 42 निवेशकों के साथ शुरू हुई चिटफंड कंपनी से सहारा धीरे-धीरे देश के तमाम उद्योगों में जगह बना ली। रियल स्टेट, टेलीकॉम, टूरिज्म, एयरलाइन, सिनेमा, खेल, बैंकिंग और मीडिया जैसे क्षेत्रों में सुब्रत रॉय सहारा ने हाथ आजमाया। उनकी कंपनी ने न्यूयार्क, लंदन में भी अपने पैर पसारे। एक दौर ऐसा था जब प्रतिष्ठित टाइम्स मैग्जीन ने ‘सहारा ग्रुप’ को भारत में रेलवे के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली कंपनी का तमगा दिया था। सुब्रत रॉय सहारा अपनी कंपनी को एक परिवार कहते हैं और खुद को इसका अभिभावक बताते थे। कुछ साल पहले तक वे भारत के चुनिंदा उद्योगपतियों में गिने जाते थे।

उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम को भी कई सालों तक स्पांसर किया। इसी तरह हॉकी को भी प्रोत्साहित किया। बॉलीवुड स्टार अमिताभ बच्चन, मशहूर स्वर्गीय राजनेता अमर सिंह उनके पारिवारिक सदस्यों की तरह थे। सुब्रत राय बड़े उत्साह से भारत पर्व कार्यक्रम आयोजित करते थे। उनके दोनों बेटों की शादी लखनऊ में शाही अंदाज में हुई थी, जिसमें देश-विदेश से मशहूर हस्तियों को आमंत्रित किया गया था। इस शादी में खर्च की चर्चा सालों तक लोगों की जुबान पर तैरती रही। सहारा समूह गरीब लड़कियों का सामूहिक विवाह समारोह भी भव्य तरीके से आयोजित करता था। गोरखपुर और लखनऊ में श्मशान घाट के पुनरुद्धार का काम भी सहारा समूह ने किया था।

सुब्रत रॉय को कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें ईस्ट लंदन विश्वविद्यालय से बिजनेस लीडरशिप में डॉक्टरेट की उपाधि मिली। उन्हें लंदन में पॉवरब्रांड्स हॉल ऑफ फेम अवार्ड्स में बिजनेस आइकन ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सुब्रत रॉय का जीवन कई उपलब्धियों के साथ साथ विवादों से भी भरा रहा। लोगों ने सहारा कंपनी की कई स्कीमों में अपना पैसा लगाया था, लेकिन कंपनी ने घाटे के चलते लोगों के पैसों का भुगतान नहीं किया और मामला पटना हाईकोर्ट में चला गया। सहारा इंडिया के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में मामला चल रहा था, लेकिन जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सहारा प्रमुख को इस मामले में कोर्ट से राहत मिल गई।

पटना हाईकोर्ट से गिरफ्तारी के आदेश पर तत्काल सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। वह जमानत पर बाहर चल रहे थे, उनका कहना था कि वह कैसे भी करके लोगों तक उनका पैसे पहुंचना चाहते हैं, लेकिन उनके निधन के बाद उनका यह सपना अधूरा रह गया। वहीं निवेशकों के पैसे लौटाने को लेकर सहारा इंडिया का दावा है कि वह सारी रकम सेबी के पास जमा करा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए “सहारा-सेबी रिफंड खाता” स्थापित किया है।

सहारा श्री का निधन एक ऐसे व्यक्ति की विरासत छोड़ गया है जो कभी भारत के सबसे प्रभावशाली व्यवसायियों में से एक था। उनका व्यापारिक साम्राज्य देशभर में लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है। सहारा समूह उनके निधन पर शोक मना रहा है। सुब्रत रॉय की दूरदर्शिता को आने वाले वर्षों तक याद रखा जाएगा।