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नहीं रहे अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वर पुरी! लंबी बीमारी के बाद हुआ निधन

वाराणसी, (राजेश जायसवाल): काशी अन्नपूर्णा मठ मंदिर के महंत रामेश्वर पुरी (67) का शनिवार को एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। महंत के निधन की जानकारी मिलते ही काशी के संत समाज और काशीवासियों में शोक की लहर दौड़ पड़ी। फिलहाल, महंत के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए मंदिर में रखा गया है। रविवार की सुबह उनकी अंतिम यात्रा मंदिर प्रांगण से निकाली जाएगी।
महंत के निधन से दुखी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया कि काशी अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वर पुरी जी के देहावसान से अत्यंत दुख हुआ है। उनका जाना समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने धर्म और आध्यात्म को समाज सेवा से जोड़कर लोगों को सामाजिक कार्यों के लिए निरंतर प्रेरित किया। ऊँ शांति…!

वहीं, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट किया कि काशी अन्नपूर्णा मंदिर के महंत श्रद्धेय रामेश्वर पुरी जी का निधन अत्यंत दु:खद है। आपका जाना आध्यात्मिक जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। प्रभु श्रीराम जी से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान व शोकाकुल अनुयायियों को यह अथाह दुःख सहन करने की शक्ति दें। ऊँ शांति…!

हरिद्वार में कुंभ के दौरान हुए थे संक्रमित
सामाजिक सरोकारों से जुड़े कार्यों के लिए काशी में एक अलग पहचान रखने वाले महंत रामेश्वर पुरी हरिद्वार में कुंभ स्‍नान के दौरान कोरोना संक्रमित हो गए थे। वहां से नयी दिल्‍ली में इलाज कराने के बाद लखनऊ आ गए थे। इसके बाद ठीक होकर वह अन्‍नपूर्णा मंदिर में रह रहे थे। 11 जून को दोबारा उनकी सेहत खराब होने की वजह से उन्हें लखनऊ स्थित मेदांता अस्पताल ले जाकर दोबारा भर्ती कराया गया।
मंदिर के उप महंत शंकर पुरी ने बताया कि विगत 10 दिनों से उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था और उनकी हालत चिंताजनक बनी हुई थी। डॉक्टरों के जवाब देने के बाद शुक्रवार की रात उन्हें मेदांता से वाराणसी लाकर एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। शनिवार को उन्होंने मां भगवती का नाम लेते हुए शरीर का त्याग कर दिया।

2004 में बनाए गए थे अन्नपूर्णा मंदिर के महंत
उत्तर प्रदेश के बांदा के निवासी महंत रामेश्वर पुरी साल1993 में गुजरात से वाराणसी घूमने आए थे। उन्हें 17 अक्टूबर 2004 को महानिर्वाणी अखाड़े से संबद्ध काशी अन्नपूर्णा मठ मंदिर का महंत बनाया गया था। उनके नेतृत्व में काशी अन्नपूर्णा अन्न क्षेत्र ट्रस्ट समाज सेवा के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ता रहा।
उन्होंने शिक्षा, चिकित्सा, वृद्धों, बेसहारों और महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए अनेकों काम किए। हाल ही में मेदांता अस्पताल में भर्ती होने की जानकारी पाकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उप महंत को फोन कर महंत के स्वास्थ्य की जानकारी ली थी। इसके साथ ही दोनों नेताओें ने अस्पताल आकर महंत से मुलाकात की इच्छा जताई थी।

2004 में बनाए गए थे अन्नपूर्णा मंदिर के महंत
2004 में बनाए गए थे अन्नपूर्णा मंदिर के महंत

बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर देवी अन्नपूर्णा का महत्वपूर्ण मंदिर है, जिन्हें ‘अन्न की देवी’ माना जाता है। इन्‍हें तीनों लोकों में खाद्यान्‍न की माता कहा जाता है। कहते है कि माता ने स्‍वयं भगवान शिव को खाना खिलाया था। इस मंदिर की दीवारों पर ऐसे चित्र बने हुए हैं। एक चित्र में देवी कलछी पकड़ी हुई है। इस मंदिर में साल में केवल एक बार अन्नकूट महोत्सव पर मां अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा को सार्वजनिक रूप से एक दिन के लिए दर्शनार्थ निकाला जाता है। तब ही भक्त इनकी अद्भुत छटा के दर्शन कर सकते हैं।
वैसे अन्नपूर्णा मंदिर के प्रांगण में कुछ अन्‍य मूर्तियां स्थापित है, जिनके दर्शन सालभर किए जा सकते हैं। इन मूर्तियों में मां काली, शंकर पार्वती और नरसिंह भगवान के मंदिर में स्‍थापित मूर्तियां शामिल हैं। बताते हैं कि अन्नपूर्णा मंदिर में ही आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्त्रोत् की रचना कर के ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी। ऐसा ही एक श्‍लोक है अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे, ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती। इस में भगवान शिव माता से भिक्षा की याचना कर रहे हैं।

मंदिर से जुड़ी कथा
इस मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन कथा यहां बेहद चर्चित है। कहते हैं एक बार काशी में अकाल पड़ गया था, चारों तरफ तबाही मची हुई थी और लोग भूखों मर रहे थे। उस समय महादेव को भी समझ नहीं आ रहा था कि अब वे क्‍या करें? ऐसे में समस्‍या का हल तलाशने के लिए वे ध्‍यानमग्‍न हो गए, तब उन्हें एक राह दिखी कि मां अन्नपूर्णा ही उनकी नगरी को बचा सकती हैं। इस कार्य की सिद्धि के लिए भगवान शिव ने खुद मां अन्नपूर्णा के पास जाकर भिक्षा मांगी। उसी क्षण मां ने भोलेनाथ को वचन दिया कि आज के बाद काशी में कोई भूखा नहीं रहेगा और उनका खजाना पाते ही लोगों के दुख दूर हो जाएंगे। तभी से अन्‍नकूट के दिन उनके दर्शनों के समय खजाना भी बांटा जाता है। जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि इस खजाने को पाने वाला कभी भी आभाव में नहीं रहता।