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झारखंड: BJP को झटका, झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने जीती 47 सीटें, हेमंत सोरेन 27 को करेंगे शपथ ग्रहण

झारखंड: झारखंड विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने सोमवार रात तक सभी 81 सीटों के परिणाम घोषित कर दिये हैं और राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व में बने झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने 47 सीटें जीत कर स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया है। झामुमो नेता हेमंत सोरेन ने 27 दिसंबर को मोरहाबादी मैदान में नयी सरकार के शपथग्रहण की घोषणा की है। सत्ताधारी भाजपा के मुख्यमंत्री रघुवर दास और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा चुनाव हार गये हैं और भाजपा को सिर्फ 25 सीटें हासिल हुई। इन चुनावों में झामुमो ने रिकार्ड 30 सीटें जीतीं जिससे वह विधानसभा में सबसे बड़ा दल भी बन गया जबकि सिर्फ 25 सीटें जीत पाने से भाजपा का विधानसभा में सबसे बड़ा दल बनने का सपना भी चकनाचूर हो गया। झारखंड विधानसभा की 81 सीटों के लिए 30 नवंबर से प्रारंभ होकर 20 दिसंबर तक पांच चरणों में हुए चुनावों के अंतिम परिणाम देर रात्रि घोषित हुए और इनके अनुसार जहां भाजपा को सिर्फ 25 सीटें प्राप्त हुईं, वहीं विपक्षी गठबंधन को कुल 47 सीटें प्राप्त हुईं। गठबंधन में झामुमो को जहां 30 सीटें हासिल हुईं वहीं कांग्रेस को भी 16 और राजद को एक सीट प्राप्त हुई। इनके अलावा भाजपा की सरकार में सहयोगी रही आज्सू को भी गठबंधन तोड़ने का जबर्दस्त खामियाजा भुगतना पड़ा और उसे सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा जबकि उसने 53 सीटों पर चुनाव लड़ा था। आज्सू के अध्यक्ष सुदेश महतो सिल्ली से और गोमिया से लंबोदर महतो ही पार्टी की ओर से विधानसभा पहुंच सके। झारखंड विकास मोर्चा ने भी बड़ी उम्मीदों के साथ सबसे अधिक 81 की 81 सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे। लेकिन उसे अपने सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी और विधायक दल के नेता प्रदीप यादव के अलावा सिर्फ एक और सीट पर जीत हासिल हुई और वह शेष 78 सीटों पर हार गई। इनके अलावा इन चुनावों में भाकपा माले लिबरेशन के विनोद सिंह और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कमलेश सिंह तथा दो निर्दलीयों ने भी सफलता हासिल की। जहां हार के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने संवाददाता सम्मेलन में दो टूक कहा कि यह हार उनकी व्यक्तिगत हार है और यह भाजपा की हार नहीं है। वहीं झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने इस जीत को जनता का स्पष्ट जनादेश बताया और कहा कि इससे उन्हें जनता की आकांक्षा पूरा करने के लिए संकल्प लेना होगा। हेमंत सोरेन ने कहा कि आज के चुनाव परिणाम राज्य के इतिहास में नया अध्याय हैं और यह मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने विश्वास दिलाया कि लोगों की उम्मीदें वह टूटने नहीं देंगे। आज के परिणामों में एक खास बात यह भी रही कि जहां महागठबंधन करके कांग्रेस-झामुमो और राजद ने अपने वोटों को जोड़ने में सफलता हासिल की वहीं वर्ष 2014 के विधानसभा और हाल के लोकसभा चुनावों में गठबंधन सहयोगी रहे भाजपा और आज्सू अलग होकर बुरी तरह घाटे में रहे। पिछले विधानसभा चुनावों में जहां भाजपा ने 37 सीटें जीती थीं वहीं वह इस बार सिर्फ 25 पर सिमट गयी। जबकि उसकी सहयोगी रही आज्सू पिछली विधानसभा में सिर्फ आठ सीटें लड़कर पांच सीटों पर जीती थी जबकि इस बार उसने 53 सीटें लड़कर महज दो सीटों पर जीत दर्ज की। कम से कम 12 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां दोनों पार्टियों के मत जोड़ देने से उनके उम्मीदवार की जीत संभव थी। परिणाम पर खुशी जताते हुए हेमंत सोरेन ने कहा, आज हमारे लिए जनता की सेवा के लिए संकल्प का दिन है। उन्होंने कहा कि आज राज्य में जो परिणाम आये हैं वह हम सभी के लिए उत्साह का दिन है। जनता का जनादेश स्पष्ट है। उन्होंने कहा, आज राज्य में आया जनादेश झारखंड के इतिहास में नया अध्याय साबित होगा। यह यहां मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि हम यह पूरा प्रयास करेंगे कि लोगों की उम्मीदें टूटें नहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि महागठबंधन पूरे राज्य के सभी वर्गों, संप्रदायों और क्षेत्रों की आकांक्षाओं का ख्याल रखेगा। हेमंत ने अपने पिता शिबू सोरेन, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पार्टी नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और राजद नेता लालू यादव का धन्यवाद किया और कहा कि आज के परिणाम सभी के परिश्रम का परिणाम हैं। वह अपने पिता से साइकिल पर मिलने पहुंचे जिसे लेकर यहां दिन भर चर्चा होती रही। उन्होंने अधिक कुछ कहने से इनकार कर दिया और कहा कि अभी गठबंधन के सभी सदस्यों के साथ बैठेंगे और सरकार बनाने के लिए और शासन के लिए रणनीति तैयार करेंगे। इस वर्ष मई में आये लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद भाजपा की किसी राज्य विधानसभा चुनाव में यह पहली स्पष्ट हार है। लोकसभा चुनावों में झारखंड में भी भाजपा ने 14 में से 11 सीटें और उसकी सहयोगी आज्सू ने एक सीट जीती थी जबकि कांग्रेस और झामुमो के हाथ सिर्फ एक-एक सीट लगी थी। यहां तक कि झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन भी दुमका लोकसभा सीट से चुनाव हार गये थे। इससे पूर्व महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में वह शिवसेना के साथ गठबंधन में चुनाव जीतकर भी अपनी सरकार नहीं बना सकी और हरियाणा में बहुमत का आंकड़ा न पा सकने के बाद उसने किसी तरह दुष्यन्त चौटाला के साथ मिलकर अपनी सरकार बनायी।
हरियाणा और महाराष्ट्र में उम्मीद से कम प्रदर्शन के बाद झारखंड में बीजेपी को लगे झटके ने विपक्षी दलों की उम्मीदों को बढ़ाने का काम किया है। आदिवासी राज्य में चुनाव नतीजे आने के तुरंत बाद महाराष्ट्र से प्रतिक्रिया सामने आई। बीजेपी से अलग होकर महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी संग सरकार बनाने वाली शिवसेना ने इसे बीजेपी के लिए झटका बताया। शिवसेना ने कहा कि बीजेपी एक बाद एक राज्यों में सत्ता गंवा रही है।
एनसीपी चीफ शरद पवार ने और तीखा हमला बोलते हुए कहा, यह बीजेपी की हार है। जो लोग पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं, यह उनकी जिम्मेदारी है। भले ही वह प्रधानमंत्री हों या फिर पार्टी के अध्यक्ष।उनका सीधा इशारा पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी चीफ अमित शाह की तरफ था।
झारखंड के नतीजे पर विपक्षी दलों के बयानों से साफ है कि वे इसे राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी के घटते कद के तौर पर देख रहे हैं। 81 सीटों वाले झारखंड का राष्ट्रीय राजनीति पर कितना असर होगा, यह साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता, लेकिन विपक्षी दलों को जरूर ताकत मिली है। 2019 के ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत के बाद झारखंड ऐसा राज्य है, जहां पार्टी को विधानसभा चुनाव में करारा झटका लगा है।

राज्यों में विकल्प देने में सक्षम दिख रहा विपक्ष
इससे पहले महाराष्ट्र और हरियाणा में भी बीजेपी का प्रदर्शन उम्मीद से कम रहा था। इससे एक बात यह भी स्पष्ट हुई है कि राज्यों के चुनाव लोकसभा के मुकाबले अलग हैं और विपक्ष भले ही राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर है, लेकिन राज्यों में विकल्प देने में सक्षम है।
यदि झारखंड में बीजेपी की हार से शरद पवार उत्साहित हैं तो इसकी वजह यह है कि 2014-19 के दौरान ज्यादातर राज्यों में बीजेपी सत्ता हासिल कर रही थी। अब स्थिति उससे काफी अलग है। विपक्ष का मानना है कि मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी पर दबाव बढ़ने से न सिर्फ वह कमजोर होगी बल्कि सहयोगी दल भी उस पर अधिक हावी होंगे।

शिवसेना सेक्युलर कैंप में, जेडीयू का भी बदलेगा रुख?
कभी बीजेपी की साझीदार रही शिवसेना अब ‘सेक्युलर कैंप’ में है, इससे अन्य पार्टियां भी अब अपनी रणनीति पर विचार कर सकती हैं। इसका असर बिहार में बीजेपी सहयोगी जेडीयू के रुख के तौर पर भी दिख सकता है। इसके अलावा कई मौकों पर बीजेपी का साथ दे चुके बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस का रुख भी बदल सकता है।

हिंदुत्व के मुद्दों पर मुखर हुए बीजेपी के सहयोगी
भले ही बीजेपी के सहयोगी दल एनडीए छोड़कर न जाएं, लेकिन एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून पर उनकी आपत्तियों से साफ है कि वे हिंदुत्व के अजेंडे पर चुप नहीं रहने वाले जैसा कि उन्होंने पिछले कार्यकाल में किया था।